राज्य सभा चुनाव: जब बीजेपी 10 में से 9 सीट जीत सकती है तो केवल 8 प्रत्याशी क्यों उतारे?
नई दिल्ली. भारतीय जनता पार्टी ने उप्र में 2022 के विधान सभा चुनावों को फतह करने के लिए अभी से एक कदम बढ़ा दिया है. देश के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य में जहां बीजेपी राज्य सभा चुनाव (Rajya Sabha Elections) में 10 में से 9 सीटें आसानी से जीत सकती थी, वहां उसने उम्मीदवार ही केवल 8 उतारे हैं. ऐसे में उप्र की राजनीतिक बिसात पर यह एक जगह खाली छोड़ना एक संकेत है कि राज्य की राजनीति में कुछ पक रहा है.
8 उम्मीदवारों के जरिए सभी जातियों को साधने की कोशिश
राज्य सभा चुनावों के लिए 8 उम्मीदवारों की घोषणा करने में भी बीजेपी (BJP) ने उप्र की सभी जातियों का ध्यान रखने की कोशिश की है. वहीं आश्चर्यजनक तौर पर कांग्रेस (Congress) छोड़कर बीजेपी में आए संजय सिंह (अमेठी) का नाम उम्मीदवारों की सूची से नदारद रहा.
राज्य सभा की 10 सीटों में से 9 पर जीतने की स्थिति होने के बाद भी 8 उम्मीदवार उतारने के पीछे माना जा रहा है कि इससे वह नौवीं सीट पर बसपा (BSP) के उम्मीदवार को मौका दे रही है. वहीं बीजेपी ने 2 राजपूत, 2 ओबीसी, 2 ब्राम्हण, 1 दलित और 1 सिख समुदाय से उम्मीदवार घोषित करके सभी जातिगति समीकरणों को संतुलित करने की कोशिश की है. बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी, अरुण सिंह, पूर्व डीजीपी बृजलाल, नीरज शेखर, हरिद्वार दुबे, गीता शाक्य, बीएल शर्मा और सीमा द्विवेदी को उम्मीदवार बनाया है.
बृजलाल के जरिए दलितों को संदेश
बीजेपी ने बृजलाल, गीता शाक्य और बीएल वर्मा जैसे नए चेहरों को मौका दिया है. सेवानिवृत्त डीजीपी बृजलाल दलित समुदाय से आते हैं और मायावती के करीबी माने जाते हैं, लेकिन उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा के लिए बसपा के बजाय बीजेपी को चुना. हाल के हाथरस मामले में विपक्ष ने बीजेपी को दलितों के विरोधी के तौर पर पेश किया तो बीजेपी ने बृजलाल को राज्य सभा भेजकर दलित समुदाय को एक राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की है.
ब्राह्मण-ठाकुरों को भी साधा
उप्र में ब्राह्मण राजनीति को लेकर विपक्ष लगातार योगी सरकार पर हमलावर है, ऐसे में बीजेपी ने इस पर भी संतुलन बनाने की कोशिश की और पूर्व मंत्री हरिद्वार दुबे और पूर्व विधायक सीमा द्विवेदी को राज्य सभा भेजने का फैसला किया.
वहीं राजपूत-ठाकुर समुदाय को साधने के लिए उन्हें भी 2 उम्मीदवारों के जरिए राज्य सभा में प्रतिनिधित्व देने का फैसला किया. भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और केंद्रीय कार्यालय के प्रभारी अरुण सिंह के साथ पूर्व प्रधानमंत्री स्व.चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर को राज्य सभा चुनाव में उम्मीदवारी दी. नीरज शेखर पिछले साल सपा छोड़ने के बाद बीजेपी में शामिल हुए थे.
इस सब ने डॉ. संजय सिंह के राज्य सभा जाने की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है जो राज्य सभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर बीजेपी में आए थे. उनको राज्य सभा में भेजा जाना तो तय माना जा रहा था लेकिन एक ही समुदाय से 3 उम्मीदवार घोषित करने पर सवाल उठते, लिहाजा पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया.
2022 के विधान सभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए पिछड़ा वर्ग से बीजेपी ने 2 राज्य सभा उम्मीदवार बनाए हैं. औरैया की नेता गीता शाक्य के जरिए बुंदेलखंड, महिलाओं और पिछड़ा वर्ग को प्रतिनिधित्व दिया है. वहीं लोध समुदाय से आने वाले और पूर्व मुख्यमंत्री के कल्याण सिंह के करीबी बीएल वर्मा को उम्मीदवार बनाया है. उप्र में बीजेपी के पारंपरिक मतदाता माने जाने वाले लोध समुदाय को महत्व देकर पार्टी ने पिछड़े वर्गों के लिए भी एक राजनीतिक संदेश दिया है.
बसपा की राह की आसान
बीजेपी के 8 और सपा-बसपा के एक-एक उम्मीदवार मैदान में उतरने के बाद कुल 10 उम्मीदवार मैदान में होंगे. ऐसे में अगर कोई निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में नहीं उतरता है तो सभी को निर्विरोध चुन लिया जाता. लेकिन 8 नामों की घोषणा करके बीजेपी ने सभी को आश्चर्य में डाल दिया है. इस बीच कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि बीजेपी ने बसपा के उम्मीदवार का समर्थन करने के लिए अपनी एक सीट खाली छोड़ी है.
बसपा से रामजी गौतम ने नामांकन दाखिल किया है और बीजेपी के इस कदम के कारण उनके लिए रास्ता आसान भी लग रहा है. बीजेपी उम्मीदवारों की सूची जारी होने के बाद उप्र कांग्रेस ने ट्वीट किया, ‘बीजेपी की हालत पतली है. बसपा उप-चुनावों में बीजेपी को वोट ट्रांसफर करे इसके लिए बसपा-बीजेपी के छुपन-छिपाई गठबंधन का ऐलान हुआ है.’ उप्र विधान सभा में मौजूदा सदस्य संख्या के आधार पर जीतने के लिए 36 वोटों की जरूरत होगी. लिहाजा भाजपा के 8 उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित हैं.