व्हीकल कानून और मजबूर जनता

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार अपने नित नए कानून से जनता को गहरे संकट में डालने का काम कर रही है ,जो विगत वर्षों से जारी है ,नोटबन्दी,जी एस टी,आदि आदि ,मोदी अपने सभी योजनाओं का उद्देश्य कुछ बताते है और रहता कुछ और है । व्हीकल कानून भी इन्ही प्रोग्रामो में से एक है ,सरकार प्रचारित कर रही है कि इससे एक्सीडेंट नही होगा ,तो लोगो की जानमाल बचेगी , सरकार के इस कथन से आम जनता को कितना लाभ होगा ? नही मालूम पर इस प्रत्याशा में हर रोज जनता की जेब खाली जरूर होगा । इतिहास में मोहम्मद बिन तुगलक के बाद अलोकप्रिय योजनाओ और अधिक कर वसूलने वाले शासक की श्रेणी में नरेंद्र मोदी जरूर आ गए है ,तुगलक का हश्र भी क्या हुआ बताने की आवश्यकता नही है ? नरेंद्र मोदी और नितिन गडकरी को पहले सर्वे कराना था कि देश मे वाहन चलाने वाले कौन लोग है? आज देश के अंदर अधिकांश लोग कम आय वाले है जो अपना खर्च काट के या बैंक से लोन लेकर गाड़ी चला रहे है ,ऐसे व्यक्ति से भारी भरकम जुर्माना लगाना कहाँ तक न्यायोचित है? क्या भारी टैक्स से ही सड़क दुर्घटना रुक जाएगा ? ऐसा सोचना बचकाना सोच से ज्यादा नही है ,क्योकि लाइसेंस न होने से या गाड़ी के हेड लाइट में आधी काली पट्टी न होने से,प्रॉपर गाड़ी को न्यूट्रल न कर पाने से,या अन्य कारणों से भी जुर्माना का प्रावधान व्हीकल कानून में है ,इन कमियो और सड़क दुर्घटना से कोई सम्बन्ध नही है पर विद्वान मोदी ऐसा कह रहे है ।जुर्माना का अर्थ सामने वाले को सचेत करना है ताकि वह अपने आप मे सुधार कर ले , जुर्माना का मतलब कतई ये नही है कि पीड़ित को आर्थिक रूप से लूट लिया जाए और सरकारी कोष को भरा जाए जैसे जी एस टी में हो रहा है । भारी जुर्माना से छोटे छोटे फोर व्हीलर व्यवसायी समूल नष्ट हो जाएंगे क्योकि वे फाइनेंस से गाड़ी लेते है ,बड़ी मुश्किल से किश्त पटा पाते है उसमें कहीं माह में एक या दो बार जुर्माना लग गया तो वे कर्ज़ में डूब जाएंगे और किश्त तक नही जमा कर सकते । वही बड़े गाड़ी मालिक सेंडिकेट्स के माध्यम से छोटे व्यवसायियो का धंधा खत्म करने में कोई कसर नही छोड़ेंगे ,फिर अपना मोनो पल्ली चलाएंगे ,जिससे किराया बढेगा,जनता परेशान होगी । मोदी सरकार की समस्या यही है कि बिना प्लानिंग,सलाह के कोई भी योजना लागू कर रही है ,सड़क एक्सीडेंट का सम्बंध खराब सड़के,शराब के नशे में गाड़ी चलाना,सड़क किनारे गाड़ी खड़ी होना है पर बीमा के नाम पर कभी भी मरने वाले की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में नशा का उल्लेख नही होता क्योंकि उसे बीमा क्लेम नही मिलेगा । इस तरह अव्यवहारिक और जनता की आर्थिक स्थिति के आकलन के बिना कोई भी जुर्माना थोपना जनता हितैषी सरकार नही कर सकती है ,और करती है तो वह जन हितैषी नही हो सकती ।