2 वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करने वाले इन लोहारों ने पेश की मिसाल, कोरोना संकट के लिए किया दान


नई दिल्ली. अगर आप अभी तक यह सोच रहे हैं कि आप कोरोना (Corona) संकट में किसी की मदद करने में सक्षम नहीं हैं तो आपको ये खबर जरूर पढ़नी चाहिए. यह ऐसे लोगों की कहानी है जो अपने जीवन यापन के लिए दूसरों पर निर्भर रहते हैं लेकिन कोरोना संकट में इन्होंने बड़ा योगदान दिया है. ये लोग दिल्ली के लोहार हैं जिनका हौसला लोहे से भी मजबूत है.

सड़क के किनारे लोहे के बर्तनों, औजारों को गढ़ना, फुटपाथ पर जीवन बिताना, हर रोज रोटी के लिए संघर्ष करना, ये दिल्ली में रहने वाले गाड़िया लोहार प्रजाति की रोज की कहानी है लेकिन आज हम आपको यह बताना चाहते हैं कि गाड़िया लोहार समाज के इन लोगों ने कोरोना के संकट में मदद के लिए हाथ फैलाए नहीं बल्कि मदद के लिए हाथ बढ़ाएं हैं और हजारों का दान भी किया है.

दिल्ली में गाड़िया लोहार प्रजाति की छोटी-बड़ी 127 से ज्यादा बस्तियां हैं, जहां हजारों लोग रहते हैं. दिल्ली की सेवा भारती संस्था ने इनकी मदद करने की ठानी है. वह मदद तो इन्होंने ली लेकिन उसके बदले में अपने स्वाभिमान की लाज भी रखी और राजधानी में फैले अपने समुदाय के सभी लोगों से इकट्ठा करके मदद की एक बड़ी धनराशि जुटा ही ली जो इन्होंने कोरोना संकट के लिए दान कर दी. महामना मालवीय मिशन और सेवा भारती को इन लोगों ने अपने समाज से जुटाकर 51 हजार रुपए समाज की सहायता के लिए दिए हैं.

गाड़िया लोहार समुदाय की कहानी भी दिलचस्प है.‌ जिनके उत्तर इनके इतिहास में छिपे हैं. गाड़िया लोहारों को भारत में मुगलों के दांत खट्टे करने वाले महान सम्राट महाराणा प्रताप का समाज कहा जाता है. महाराणा प्रताप से प्रेरणा लेने वाला ये समाज आज भी बेहद सादा जीवन गुजारता है.

इन सभी के प्रयास दिखने सुनने में छोटे भले लगें, मगर समाज के भिन्न वर्गों की छोटी-छोटी कोशिशें मिलकर एक बड़ा आंदोलन बनती हैं. ऐसे ही असंख्य भारतीयों का ये आंदोलन भारत राष्ट्र को कोरोना नाम की महामारी पर ना सिर्फ विजय दिलाएगा, बल्कि भारत को विश्वगुरु के रूप में फिर स्थापित करेगा, ये प्रयास ऐसा विश्वास भी दिलाते हैं.

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