प्रेम के बिना मनुष्य का जीवन राक्षस की तरह हो जाता है-कवि आचार्य प्रेम भाटिया
बिलासपुर . —“””प्यार दो प्यार लो —“”” प्रेम ही जीवन का मूल मंत्र है । प्रेम के बिना मनुष्य का जीवन राक्षस की तरह हो जाता है ।इंसान को सहयोगी होना चाहिए ।मानव समाज सहयोग पर आधारित समाज है । सच्चे अर्थों में सहयोग करने वाला ही इंसान होता है। उक्त आशय की बातें विश्व भारती योग संस्थान के संस्थापक योग -कवि आचार्य प्रेम भाटिया ने इंडियन काॅफी हाउस में बुद्धिजीवियों की एक बैठक को संबोधित करते हुए कही।
-“”प्रेम से मिलिए—“” कार्यक्रम में दिल्ली से पधारे, हरियाणा में जन्मे, मुंबई में फिल्मी दुनिया में लंबे समय तक काम करने , कॉर्पोरेट जगत की सच्चाइयों से रूबरू होने , दुनिया की चकाचौंध के भीतर के अंधेरे को देखने के बाद आचार्य योग कवि प्रेम भाटिया ने धर्म -दर्शन- और आध्यात्म की दुनिया में प्रवेश किया । कवि सम्मेलन और मुशायरा के सिद्ध हस्तकवि श्री भाटिया की दस से अधिक किताबें प्रकाशित हैं । योग कवि की “जान-ए- जिंदगी-” और “अच्छी बात- सच्ची बात” नमक काव्य संग्रह बहु चर्चित हैं। अपनी धर्मपत्नी कमल भाटिया के साथ में अपने अनुभव को साझा करते हुए श्री भाटिया ने कहा कि जीवन में कठिनाइयां आती हैं और वह मनुष्य की परीक्षा लेती हैं ।शिक्षक के द्वारा डाँटा गया विद्यार्थी, पिता के द्वारा डाँटा गया पुत्र, सुनार के द्वारा पीटा गया सोना तथा कुम्हार के हाथों से चोट खाया घड़ा आगे चलकर सम्मानित होते हैं। उन्होंने अपनी रचनाएं सुनाईं। योग कवि प्रेम भाटिया का सम्मान छत्तीसगढ़ बिलासा साहित्य मंच के कोलाज कलाकार व्ही.व्ही. रमणा किरण ने कमल का फूल भेंट कर किया। द्वारिका प्रसाद अग्रवाल ने कहा कि- विश्व भारती योग संस्थान के संस्थापक को सुनना एक अनुभव है। उनकी उपस्थिति से हम हर्ष का अनुभव कर रहे हैं। शिक्षाविद श्री विवेक जोगलेकर ने कहा कि श्री भाटिया का -मजहब प्रेम है। यह शेर उन पर सटीक बैठता है —‘””””मैं दिया हूं रोशनी है मेरा मजहब, जहां भी जाऊंगा रौशनी फैलाऊंगा ——-“””””।कवि राकेश पाण्डेय ने कहा भाटिया जी जहां भी जाते हैं -“””प्रेम की सुगंध बिखरते हैं ।जैसे वह कह रहे हों—–“””” मैं दरिया हूं मालूम हूं मुझे अपना हुनर, जिधर चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा —–“”””इस अवसर पर साहित्यकार सतीश जायसवाल ,कृष्ण कुमार , पत्रकार उमेश सोनी , इंजीनियर आशीष खण्डेलवाल, अनुराधा सिंह,शरण्या, टिंकू बग्गा, डॉ. राजीव अवस्थी,अध्यापक संजय पाण्डेय आदि विद्वतजन मौजूद थे। गोष्टी का समापन इस शेर से हुआ —–“””मैं इतना भी बड़ा नहीं कि कुछ सुन न सकूं और मैं इतना छोटा भी नहीं कि कुछ कह भी न सकूं —–“”””प्रेम भाटिया जी का आभार उपस्थित जनों ने माना।