तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में छत्तीसगढ़ राज्य के पारंपरिक वैद्यराज हुए शामिल
बिलासपुर. डा हरी सिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय सागर में स्वदेशी ज्ञान अध्ययन केंद्र एवं मानव विज्ञान विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में छत्तीसगढ़ राज्य के पारंपरिक वैद्यों के ज्ञान और छत्तीसगढ़ राज्य की आदिवासी जनजाति एवं प्राचीन प्रथाओं का का प्रर्दशन किया गया। परंपरागत वनौषधि प्रशिक्षित वैद्य संघ छत्तीसगढ़ के सचिव निर्मल अवस्थी से प्राप्त जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य के विभिन्न क्षेत्रों से 25 पारंपरिक वैद्यों ने सम्मेलन में भाग लिया इस अवसर पर 69 शोध पत्र प्रस्तुत किए गए उन्होंने ने बताया कि स्वदेशी ज्ञान एवं प्रामाणिक प्रथाएं हमारी हजारों वर्ष पुरानी है जो लिपिबद्ध हुई हैं। भारत अपने प्रामाणिक ज्ञान को विश्व पटल पर स्थापित करने की ओर बढ़ रहा है।मानव विज्ञान और मनोविज्ञान एक दूसरे के पूरक हैं। इसमें स्वदेशी ज्ञान एवं प्रथाओं पर अध्ययन करने के लिए गहन शोध करके एक पैमाने पर प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। निर्मल अवस्थी ने कहा कि भारत की लोक स्वास्थ्य परंपरा विश्व में अनोखी है किन्तु इसे नई पीढ़ी अपनाने में संकोच करती है जिससे कम उम्र में ही लोग विभिन्न रोगों से ग्रसित हो रहें हैं,वहीं विश्व के विकसित देश भारतीय ग्रंथों का अध्ययन व भारतीय परंपराओं व प्रथाओं के प्रति रुचि रखते हैं और अपना रहें हैं। सम्मेलन के प्रभारी प्रो. काशी कैलाश नाथ शर्मा ने बताया कि उपनिषद,शास्त्रों के अध्ययन की जरूरत है। हमारी हजारों वर्ष पुरानी परंपराओं पर शोध के बाद लिपि बद्ध हुई है इनके। प्रमाण मांगना कुछ लोगों की अज्ञानता है। अवस्थी ने कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य की आदिवासी जनजाति परंपरागत वनौषधि चिकित्सा पद्धति और लोक स्वास्थ्य परंपरा के संरक्षण संवर्धन और लोक व्यापी और वन हेल्थ पालसी को सार्वभौमिक रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से हम सभी आगे बढ़ रहें हैं।