सर्जना की दुनिया की आतंरिक परतें हैं श्रीमाल की किताबों में
वर्धा. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के क्षेत्रीय केंद्र कोलकाता में कार्यरत प्रसिद्ध कला चिंतक, समीक्षक एवं कवि श्री राकेश श्रीमाल, कोलकाता लिखित-संपादित कला-संस्कृति की पुस्तकों का विमोचन एवं चर्चा का आयोजन बैकस्टेज शब्द पर्व में किया गया। ‘मिट्टी की तरह मिट्टी’, ‘कलाचर्या’ और ‘कोरोना काल में चित्रकार’ किताबों का विमोचन समीक्षकों, कलाकारों और संस्कृतिकर्मियों ने किया। विमोचन करने वालों में प्रो. संतोष भदौरिया, प्रो. अजय जैतली, डॉ. बसन्त त्रिपाठी, डॉ. बृजेश पाण्डेय, डॉ. अमितेश कुमार, डॉ. धनंजय चोपड़ा, डॉ. जूही शुक्ला, प्रवीण शेखर थे। समारोह इलाहाबाद विश्वविद्यालय अतिथि गृह सभागार में हुआ।
प्रसिद्ध कला समीक्षक राकेश श्रीमाल ने पुस्तकों की रचना प्रक्रिया के बारे में बताया और कहा कि लॉक डाउन में चित्रकार मित्रों से लिखवाने का ख्याल आया। वह लॉक डाउन में बाहर नहीं जा पा रहे थे लेकिन स्मृतियों में पीछे जा रहे थे। श्री श्रीमाल ने कहा चित्रकला बार-बार देखने की चीज है। यह नींद जैसे हैं, जहां नहीं पता होता कि हम कहां हैं। हर जगह अर्थ की खोज नहीं करनी चाहिए। जाने-माने समीक्षक प्रो. संतोष भदौरिया ने कहा कि यह किताबें कला की दुनिया का दरवाजा हैं। इनमें वैविध्य है, बहुलता का रंग है। यह किताबें सत्ता प्रतिष्ठानों से सवाल करती हैं। इनमें कहने का ढंग मुकम्मल, अनूठा और विशिष्ट है। कला की दुनिया को जानने के लिए तीनों किताबें पाठ्य पुस्तक की तरह है। प्रसिद्ध चित्रकार प्रो. अजय जेटली ने कहा कि कोई कला मध्यम क्राफ्ट बाहर निकल कर की तरह ऊंचाई की ओर जाता है, यह इन किताबों से जाहिर होता है। ‘मिट्टी की तरह मिट्टी’ में राकेश श्रीमाल और सीरज सक्सेना की कला दृष्टि समृद्धि संगीत जैसी है। पुस्तक में प्रश्न सार्वभौमिक हैं। यह सवाल पूरी कला जगत से है।
जाने-माने समीक्षक और कवि डॉ. बसंत त्रिपाठी ने कहा कि किताब ‘मिट्टी की तरह मिट्टी’ में सर्जना की दुनिया की आंतरिक परतों को बातचीत के माध्यम से साझा किया गया है। इस अद्भुत किताब का एक एक पन्ना श्रीमाल जी ने गढ़ा है। इसमें हर प्रश्न पूर्ण है और हर उत्तर अपने आप में निबंध है। सीरज ने दार्शनिक की तरह जवाब दिए हैं। ‘मिट्टी की तरह मिट्टी’ किताब एक कलाकृति है। जो आनंद कलाकृति को देखते हुए भावुक को होता है, इस किताब को पढ़ते हुए वैसा ही अनुभव होता है। भाषा व साहित्य के बड़े विद्वान डॉ. बृजेश कुमार पांडेय ने कहा कि कला को लेकर ऐसी बातचीत दुर्लभ है। अब से पहले इस तरह की कोई किताब हिंदी में नहीं थी। कला एवं संवेदना की गहराई से लिखी इस किताब में कविता, समीक्षा, सृजन के विविध रंगों को एक साथ पढ़ने का आनंद मिलता है। यह किताब जीवन दर्शन के लिए अनुभूतियों और अनुभवों को संपन्न करती है।
सुपरिचित रंग समीक्षक डॉ. अमितेश कुमार ने कहा कि विविध सन्दर्भों को समेटे कला आस्वादन की ऐसी किताबें हिंदी में नहीं हैं। कला माध्यम को समझने के लिए यह आवश्यक किताब है। इनमें कला संसार को व्यापकता में दर्ज किया गया है। यह हिंदी समाज के लिए जरूरी किताब है। जानी-मानी चित्रकार डॉ. जूही शुक्ला ने कहा कि किताब ‘मिट्टी की तरह मिट्टी’ में राकेश जी ने कलाकार के हृदय की परतें खोली हैं। यह संवाद की खूबसूरत शैली है जिसमें आध्यात्मिकता और भौतिकता एक साथ दिखती है।
अतिथियों का स्वागत अमर सिंह, भास्कर शर्मा, सिद्धार्थ पाल, अनुज कुमार, अंजल सिंह, प्रत्यूष वर्सने, आलोक राज, रजनीश यादव ने किया। संचालन डॉ. धनंजय चोपड़ा, धन्यवाद ज्ञापन प्रवीण शेखर ने किया। इस मौके पर सुरेंद्र राही, शिव कुमार राय, संजय पांडे, गुरपिंदर रमन, धर्मेंद्र यादव, डॉ. ताहिरा परवीन, डॉ. शमेनाज़ शेख, डॉ. धीरेंद्र सिंह, शिवम सिंह, अजीत बहादुर, देवेंद्र सिंह, अजय केसरी, जुगेश कुमार गुप्ता, प्रदीप्त आदि उपस्थित रहे।