कैसा घर, कैसी सुरक्षा : हमें तो जीना यहां और मारना यहां इसके सिवा जाना कहां


बिलासपुर/अनीश गंधर्व. पुराना बस स्टैंड और रेल्वे परिक्षेत्र में भिक्षा मांगने वाले भिक्षुक खुले आसमान के नीचे अपना जीवन यापन कर रहे हैं। मानसिक संतुलन खो चुके हैं, ये किसी की नहीं सुनते, सड़क की गंदगी को ही हवा महल समझते हैं और इन्हें किसी से कोई शिकायत भी नही है। संकट के इस दौर में भी कोई न कोई इन्हें भोजन परोस जाता हैं। रिक्शा चलाकर फुटपाथ में रहने वालों का भी पेट इन दिनों दया धर्म के सहारे चल रहा है। कोरोना का संक्रमण तेजी से फैल रहा है। अब सही में लगने लगा है कि सबका मालिक एक है। एक ओर जहां अस्पतालों में लोग घुट घुट कर मर रहे हैं तो दूसरी ओर फ़टे चिथड़े कपड़ों में सड़क की गंदगी में लोग आराम से जी रहे हैं, उन्हें कोरोना का जरा भी भय नही हैं, उन्हें पेट की भूख की चिंता हैं। अपने घरों में कैद होकर भी लोग संक्रमित हो रहे हैं, अस्पताल में रोजाना 1000 के पार नए मरीज आ रहे हैं। कोरोना पीड़ित मरीजों को बेड नसीब नही हो रहा है, मृतकों का दाह संस्कार भी ठीक से नही हो पा रहा है। सभी सहमे हुए हैं। प्रशासनिक व्यवस्था भी डगमगा रही है। ऐसे में सड़क पर गुजर बसर करने वालों की कोई शुध लेने वाला नहीं हैं। इन्हें वैक्सीन कौन लगाये? इनका कोरोना टेस्ट कौन करेगा ? अगर ये पॉजेटिव हैं तो खतरा और बढ़ जाएगा। भगवान भरोसे चल रहे चिकित्सा व्यवस्था के जैसे फुटपाथ में जीने वालों का भी भगवान ही मालिक है।

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