धर्मांतरण पर उमर गौतम का बड़ा खुलासा! ‘दावत से इस्लाम तक’ पॉलिसी का करता था इस्तेमाल
नई दिल्ली. धर्मांतरण पर आईडीसी इस्लामिक दवाह सेंटर के संस्थापक उमर गौतम ने पूछताछ में बड़ा खुलासा किया है. ज़ी न्यूज़ को मिली जानकारी के मुताबिक, उमर गौतम ने धर्मांतरण के लिए रिवर्ट पॉलिसी बनाई थी जिसमें ये कहा जाता था कि कोई भी इंसान इस्लाम धर्म मे पैदा लेता है, लेकिन किसी कारण से वो दूसरे धर्म मे चला जाता है. इसलिए रिवर्ट के जरिए उन्हें फिर से इस्लाम धर्म मे वापस लाना ही उसका काम है.
‘दावत से इस्लाम’ पॉलिसी का इस्तेमाल
पूछताछ में उमर गौतम ने बताया कि दावत से इस्लाम का मतलब ये है कि धर्मांतरण के लिए पहले गेट टू गेदर के जरिए मिलना और फिर इस्लाम की मोटिवेशनल स्पीच के जरिये लोगो का दिल जीतना. उमर गौतम ने बताया कि दावत का ये भी मतलब है कि लोगों का दिल जीत लो, ईश्वर एक ही है वो भी खुदा.
धर्मांतरण के लिए सबसे पहले गीता पढ़ाया जाता है, फिर कुरान पढ़ाते हैं फिर दोनों का अंतर बताया जाता है. फिर धर्मग्रंथ गीता के बारे में और इसकी कमियों को बताया जाता है. उसके बाद मुस्लिम ग्रंथ हदीस पढ़ाया जाता है.
हदीस पढ़ाने के बाद किसी व्यक्ति का ब्रेन वॉश हो जाता है और फिर धीरे धीरे उसे इस्लाम के प्रति आकर्षित कर लिया जाता है.
मूक-बधिरों को इसलिए बनाया जाता था टारगेट
धर्म परिवर्तन के लिए मूक-बधिर लोगों को टारगेट करने के पीछे मकसद ये होता था कि ये न तो बोल सकते है, न ही सुन सकते हैं. ये बस साइन लैंग्वेज समझते हैं, जबकि ज्यादातर लोग साइन लैंग्वेज नहीं समझते. किसी को इनके एजेंडे के बारे में शक न हो इसलिए ऐसे लोगों को चुना जाता है. वहीं मूक बधिर लोगों को लेकर इन्हें लगता है कि ये आसानी से इस्लाम धर्म के प्रति आकर्षित हो जाएंगे और धर्म परिवर्तन के लिए मान जाएंगे. इन लोगों में उनके परिवार के प्रति भी नफरत पैदा की जाती है. इन्हें समझाया जाता है कि तुम मूक बधिर हो तुम्हारी शादी घरवाले नहीं करवाएंगे. कोई भी लड़की तुम से शादी नहीं करेगी, लेकिन अगर तुम इस्लाम कबूल करोगे, तो तुम्हारी शादी एक अच्छी लड़की से करवाएंगे. इनसे ही भी कहा जाता है कि समाज में न तो कोई तुम्हें नौकरी देगा और न ही पैसे. हम तुम्हें पैसे भी देंगे ओर शादी भी करवा देंगे.
इस्लाम धर्म की संख्या को बढ़ाना एकमात्र लक्ष्य
इस्लाम धर्म मजबूती से रखेगा, जबकि हिन्दू धर्म से ये संभव नहीं है. डेफ सेंटर में साइन लैंग्वेज सिखाने वाले टीचर को पैसे की लालच देकर अपने धर्मांतरण के मिशन के साथ जोड़ देते थे ओर टीचर्स के माध्यम से मूक बधिर छात्रों का इस्लाम धर्म अपनाने के लिए ब्रेन वॉश किया जाता है. अधिक से अधिक लोगों का धर्मांतरण कर इस्लाम धर्म की संख्या को बढ़ाना एकमात्र लक्ष्य था. इसके लिए इस्लामिक देशों से काफी मदद भी मिली.
इस्लामिक दवाह सेंटर की शुरुआत
उमर गौतम ने पूछताछ ये भी बताया कि असम से सांसद अजमल बदरूद्दीन के कहने पर साल 2011 से 2012 के बीच आईडीसी इस्लामिक दवाह सेंटर की स्थापना की गई. जामिया नगर के इस्लामिक दवाह सेंटर से 600 से ज्यादा धर्मांतरण से जुड़े कागजात बरामद हुए हैं.
इसके अलावा गुरुग्राम, दिल्ली के जिन बड़े डेफ सेंटर्स के बारे में भी जानकारी मिली है. उनकी भूमिका भी सवालों के घेरे में है. इन डेफ सेंटर्स की जांच शुरू कर दी गई है. यूपी एटीएस के सूत्रों के मुताबिक, राजधानी दिल्ली में 150 लोगों के धर्मांतरण के डॉक्यूमेंट बरामद हुए हैं. इसके अलावा उत्तर प्रदेश में 160 से 180 के करीब सर्टिफिकेट मिले हैं. जिसकी जांच की जा रही है. धर्मांतरण का ये नेटवर्क देश के अलग अलग राज्यों राजस्थान, बिहार, झारखंड, हरियाणा, आंध्र प्रदेश समेत 15 राज्यों में फैला हुआ है.