नाविक दिवस : भवसागर को पार करने और आनंद प्राप्ति के लिए केवल शाब्दिक ज्ञान पर्याप्त नहीं – महेश अग्रवाल

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र  स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल कई वर्षो से निःशुल्क योग प्रशिक्षण के द्वारा लोगों को स्वस्थ जीवन जीने की कला सीखा रहें है वर्तमान में भी ऑनलाइन माध्यम से यह क्रम अनवरत चल रहा है | योग प्रशिक्षण के दौरान केंद्र पर सभी समाज की जयंती, महापुरुषों की जयंती, सभी धार्मिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय पर्व उत्साह पूर्वक मनाये जाते है, स्वच्छता, नशामुक्ति वृक्षारोपण, पर्यावरण, शिक्षा, खेलकूद जैसे विषय पर जागरूकता अभियान एवं सभी राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय दिवस का महत्व एवं जीवन में उपयोगिता बताते हुए साधकों को स्वस्थ रहते हुए सेवा कार्य करते रहने के लिए प्रेरित किया जाता है |

अंतर्राष्ट्रीय नाविक दिवस के अवसर पर योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि वे सभी लोग जो नाव , जलयान , या पनडुब्बी आदि चलाते हैं या उस पर कोई अन्य जिम्मेदारी निभाते हैं, उन्हें नाविक  कहते हैं। पर्यायवाची शब्द  केवट, खेवट, मल्लाह, खिवैया।भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली का नाम भी भारत के मछुवारों को समर्पित करते हुए नाविक रखा गया है |

अंतर्राष्ट्रीय नाविक दिवस 25 जून को  दुनिया की अर्थव्यवस्था और समाज में नाविकों के योगदान को धन्यवाद देने और उनके द्वारा काम पर उठाए जाने वाले जोखिम को सलाम करने के लिए मनाया जाता है हमारे दैनिक जीवन में उपयोग में आने वाले लगभग सभी चीजें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समुद्री परिवहन द्वारा प्रभावित हैं. आईएमओ के अनुमान के मुताबिक दुनिया के माल–व्यापार का लगभग 90 फीसदी जहाजों द्वारा ही ले जाया जाता है. नाविक न सिर्फ जहाजों के संचालन के लिए बल्कि मालवाहक जहाज के सुरक्षित और सुचारू वितरण के लिए भी जिम्मेदार होते हैं. इस साल की थीम ‘सीफर्स: एट कोर ऑफ शिपिंग फ्यूचर’ है।

योग गुरु अग्रवाल ने नाविक की भूमिका को अध्यात्म से जोड़ते हुए बताया ज्यादातर लोग, शारीरिक व मानसिक लक्ष्यों की प्राप्ति में पूरा जीवन गुजार देते हैं, लेकिन अध्यात्म से अनभिज्ञ रहते हैं। ऐसे में मौत आने पर हमारे पास किसी भी तरह का आध्यात्मिक ज्ञान नहीं होता, ताकि हम जीवन को सुरक्षित कर सकें। जब हमें मालूम चलता है कि हम गंभीर बीमार हैं या हमारी जान को खतरा है, हमें नहीं मालूम होता कि तब क्या किया जाए। हम जीवन व मृत्यु के अर्थ को समझने की कोशिश नहीं करते।  जिन लोगों ने ध्यान के जरिए अध्यात्म को सीखने की कोशिश की, उन्हें किसी चीज का भय नहीं सताता। ऐसे लोग अपने अंत का सामना भी शांतिपूर्वक व बिना डरे करते हैं। वे जीवित रहते हुए भी मृत्यु की भव्यता के दर्शन कर चुके होते हैं। वे शरीर व चेतन से ऊपर उठने की कला सीख जाते हैं। शारीरिक अंत नजदीक आने पर उन्हें कैसा डर। वे जानते हैं कि ज़िंदगी की नाव डूबने पर कैसे तैरकर बाहर निकला जाए। बहुत सारे लोग शारीरिक अंत की सच्चाई को नजरअंदाज कर देते हैं और तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। ऐसे लोगों को मौत के नजदीक आने पर सच्चाई का ज्ञान होता है। तब वे पश्चाताप करते हैं कि उन्होंने ईश्वर व आत्मा को समझने की कोशिश क्यों नहीं की। जिंदगी के शुरुआती दौर में आध्यात्मिक ज्ञान लेने वाले लोग, शारीरिक चेतना से ऊपर उठकर लौकिक अनुभव प्राप्त करते हैं। तैराकी की तरह अध्यात्म भी अभ्यास से सीखा जा सकता है। रोजाना ध्यान लगाने से हमारी आध्यात्मिक क्षमताएं विकसित होती हैं और हम अपने भीतर लौकिक शक्ति महसूस कर सकते हैं।

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