November 23, 2024

देवशयनी एकादशी : भारतीय संस्कृति के सभी पर्व हमें त्याग, तप, साधना, संयम, स्वाध्याय, सत्य, अहिंसा, आर्जव , ब्रह्मचर्य, शौच, अपरिग्रह का संदेश देते है – योग गुरु

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र  स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि मान्यताओं के मुताबिक देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु चार माह यानी देव उठनी एकादशी तक के लिए योग निद्रा में जाएंगे। इसे शयन करना भी कहा जाता है। इन दौरान भक्ति, भजन, प्रवचन आदि अनुष्ठान तो होंगे, परंतु सगाई, विवाह, जनेऊ, मुंडन, देव प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठा जैसे मांगलिक कार्य नहीं होंगे। इस अवधि को चातुर्मास भी कहते हैं। इन अवधि में सावन, हरियाली अमावस्या, गुरु पूर्णिमा, रक्षा बंधन, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, गणेशोत्सव आदि कई बड़े पर्व आएंगे, जिन पर पूजा-अर्चना की जा सकेगी। देवउठनी एकादशी 15 नवम्बर पर समाप्त होगी भगवान के विश्राम की अवधि, उसी दिन से मांगलिक कार्य भी प्रारंभ होंगे।
योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि चातुर्मास अवधि में भगवान विष्णु के विश्राम करने पर सृष्टि की सत्ता संचालन का प्रभार भगवान शिव के पास रहेगा। इसी दौरान श्रावण मास आएगा और एक माह उनकी विशेष पूजा होगी। गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक भगवान गणेश पूजे जाएंगे, वहीं श्रीकृष्ण जन्माष्टमी आएगी तब कन्हैया जी के लीला प्रसंग शुरू होंगे।  भगवान विष्णु को जगत का पालनहार माना जाता है। शुभ व मांगलिक कार्यों के लिए उनका जागृत रहना जरूरी होता है। इसलिए देव शयनी एकादशी से देव उठनी एकादशी तक मांगलिक कार्य बंद रहते हैं।  त्याग से संसार चलता है। अगर पेड़ फल देना, नदी जल देना, अग्नि उष्णता देना और सूर्य प्रकाश देना बंद कर दे, तो जीवन अस्त-व्यस्त हो जाएगा। त्याग मुक्ति का मार्ग है। शांति का घर है। आत्मशुद्धि के उद्देश्य से विकार भाव छोड़ना तथा स्व-पर उपकार की दृष्टि से धन आदि का दान करना त्याग धर्म है। आध्यात्मिक दृष्टि से राग, द्वेष, क्रोध, मान आदि विकार भावों का आत्मा से छूट जाना ही त्याग धर्म है। इसी तरह सांसारिक ऐश्वर्य छोड़कर आध्यात्मिक ऐश्वर्य की उपलब्धि का पुरुषार्थ करना ही त्याग है। प्रकृति का भी यह नियम है कि जो निरंतर देता है, वह निर्बाध प्राप्त भी करता है। आज का दिया हुआ कल हजार गुना होकर लौटता है।
त्याग का महत्व – त्याग और दान, दोनों सगे भाई हैं। इनसे नष्ट होता है पाप  त्याग से पाप का मूलधन समाप्त हो जाता है और दान से पाप का ब्याज।  दान में अहंकार हो सकता है, मगर त्याग में अहंकार का विसर्जन जरूरी है। दान प्रिय वस्तु का होता है मगर त्याग अप्रिय वस्तु का। याद रखना चाहिए, जो दान दिखावे के लिए अहंकार से भरकर किया जाता है, वह दुर्गति को प्राप्त होता है। लेकिन जो त्यागपूर्वक दान करते हैं वह भोगभूमि और चक्रवर्ती के समान वैभव प्राप्त करते हैं। दान सत्पात्र को देना चाहिए।
उत्तम त्याग – त्याग कैसे करें, प्रकृति से सीखना चाहिए, सांस ग्रहण करना जितना जरूरी है, उसे छोड़ना भी उतना ही अनिवार्य है। अर्जन और विसर्जन, ग्रहण और त्याग प्रकृति का शाश्वत नियम है। जहां ग्रहण है वहां त्याग अनिवार्य है। पूरी प्रकृति ग्रहण और त्याग का उदाहरण है। बादल समुद्र से जल लेते हैं, संग्रह होता है, लेकिन अपने पास नहीं रखते बल्कि बरसा देते हैं, यही त्याग है। यदि समुद्र बादलों को जल न दे, तो वह नदियों के द्वारा अनंत जल राशि प्राप्त नहीं कर सकता। पेड़, धरती से उसका रस ग्रहण करते हैं। उसे फल के रूप में सबको लौटा भी देते हैं। गाय घास खाती है और दूध बनाकर सबको देती है। प्रकृति का यही संदेश है; यदि तुमने ग्रहण किया है तो उसके साथ त्याग भी करो। त्याग, किसी भी वस्तु को अपना मानना छोड़ने का नाम त्याग जीवन का अहम तथ्य है। त्याग से हमें आत्मसंतुष्टि मिलती है तथा त्याग करने से ही हम बड़े भी बन सकते हैं। जो मांगता है वह भिखारी है, लेकिन जो त्यागता है, वह संत है। जो वस्तु अपनी नहीं है, उसमें ‘मेरा’पना छोड़ना ही त्याग कहलाता है। वह त्याग जब सम्यक दर्शन के साथ होता है, तब ‘उत्तम त्याग धर्म’ कहलाता है। त्याग, मात्र उसे अपना मानना छोड़ना’ के भाव का नाम है। त्याग ‘पर’ (दूसरी) वस्तु का किया जाता है, जबकि दान अपनी वस्तु का। पर वस्तु हमारी न थी, न है और न होगी। हमने मात्र अपने ज्ञान में उसको अपना मान रखा है। यही त्याग का मनोविज्ञान है।उत्तम आंकिनचन्य  – व्यक्ति और समाज को उन्नति के लिए बनना होगा आकिंचन्य, सबका भला ही मुख्य संदेश | उत्तम संयम- स्वस्थ सोच के साथ नियंत्रित जीवन जीना ही संयम धर्म, हर साधना के लिए अनिवार्य लक्षण | उत्तम सत्य – जो शब्द सबका हित करे, सुनने में सुखद हो और संशय न पैदा करे, वही उत्तम सत्य धर्म है | उत्तम आर्जव – कुटिलता अधर्म है इससे दूर रहकर जीवन को सरल और सहज बनाना ही आर्जव धर्म का मूल है | उत्तम तप – कर्मो को समूल नष्ट करने के लिए तप का महत्व ईश्वर की शक्ति को पहचानने का सही रास्ता है | उत्तम शौच – यह लक्षण पवित्रता का प्रतिक है, तन की पवित्रता तो बाहर की है, सच्ची पवित्रता तो मन की है | उत्तम ब्रह्माचर्य – यह धर्म आत्मा का श्रृंगार है, इसे धारण कर सदाचार की और बढ़ें, इससे ही कल्याण होगा |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Previous post शरीर का सबसे मजबूत अंग क्या कौन सा होता है? जानें ऐसे रोचक सवालों के जवाब
Next post पेगासस स्पाइवेयर मामले में कांग्रेस आज करेगा राजभवन मार्च
error: Content is protected !!