पिछले जन्म के पापों से मुक्ति दिलाती है अजा एकादशी, ये करने से होंगी मनोकामनाएं पूरी


नई दिल्ली. पूरे साल में कुल 24 एकादशी आती हैं,  जिसमें से सिंतबर महीने की पहली एकादशी है अजा एकादशी. मान्यताओं के अनुसार अजा एकादशी (Aja Ekadashi)पिछ्ले जन्म के पापों से मुक्ति दिलाती है. हिंदू धर्म में एकादशी बहुत अहम मानी जाती है. एकादशी के दिन लोग भक्ति भाव के साथ भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करते हैं. बता दें कि सिंतबर महीने की पहली एकादशी 3 सितंबर को है. भाद्रपद में आने वाली इस कृष्ण एकादशी को अजा एकादशी के नाम से जाना जाता है. इसे आनंदा एकादशी (Ananda Ekadashi) भी कहा जाता है. इस एकादशी व्रत का पालन करने से विष्णु लोक प्राप्त होता है. यह भी माना जाता है कि अजा एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को ‘अश्वमेघ यज्ञ’ (Ashwamedha Yagya)के समान फल मिलता है.

अजा एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त

इस बार अजा एकादशी 2 सितंबर की सुबह 6 बजकर 21 मिनट से ही शुरू हो जाएगी और यह 3 सितंबर की सुबह 07 बजकर 44 मिनट तक रहेगी. व्रत का पारण 4 सितंबर की सुबह 8 बजकर 23 मिनट का है.

अजा एकादशी से जुड़ी एक पौराणिक कथा

अजा एकादशी (Aja Ekadashi) का महत्व प्राचीन काल से जाना जाता है. इससे जुड़ी अलग-अलग पौराणिक कथाएं हैं. कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने ‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’ (Brahmavaivarta Purana)में पांडवों में सबसे बड़े युधिष्ठिर को इस व्रत का महत्व बताया था.

अजा एकादशी से जुड़ी दूसरी पौराणिक कहानी राजा हरिश्चंद्र (Raja Harishchandra)से जुड़ी हुई है, जो न्यायप्रिय, परोपकारी, ईमानदार और दयालु होने के लिए जाने जाते थे. कथा के अनुसार एक दिन, हरिश्चंद्र ने अपना राज्य, धन, अपनी सारी संपत्ति, के साथ अपने परिवार को भी खो दिया था. इसके बाद, उन्होंने एक श्मशान में काम करना शुरू कर दिया. एक दिन जब ऋषि गौतम ने उन्हें इतनी दयनीय अवस्था में देखा, तो सुझाव दिया कि हरिश्चंद्र को अपने पिछले जन्म के दौरान किए गए पापों से छुटकारा पाने के लिए एकादशी का व्रत रखना चाहिए. इसके बाद हरिश्चंद्र ने एकादशी का व्रत रखा. उनकी भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें वह सब कुछ वापस दे दिया.

इस प्रकार यह व्रत व्यक्ति को मोक्ष का मार्ग चुनने के लिए प्रेरित करता है और व्यक्ति जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्राप्त करता है.

अजा एकादशी व्रत पूजन विधि

एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना चाहिए. इसके बाद पूजा स्थल की साफ-सफाई करके साफ-सुथरे कपड़े पहनकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. पूरे विधि विधान से पूजा पाठ करने के बाद सभी को चरणामृत बांटा जाता है. अगले दिन यानी द्वादशी को किसी ब्राह्मण को भोज कराने के बाद ही व्रत रखने वाला अपने व्रत का पारण कर सकता है.

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