संतों ने मराठी साहित्य को देश-दुनिया में फैलाने का काम किया : भीकू रामजी इदाते
वर्धा. मराठी भाषा गौरव दिवस पर रिद्धपुर स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के सर्वज्ञ श्री चक्रधर स्वामी मराठी भाषा तथा तत्त्वज्ञान अध्ययन केंद्र पर सोमवार 28 फरवरी को ‘मराठी संत परंपरा से साहित्य विस्तार’ विषय पर आयोजित व्याख्यान में बतौर मुख्य अतिथि भारत सरकार के सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय के विमुक्त घुमंतू तथा अर्ध-घुमंतू समुदाय विकास एवं कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष भीकू रामजी इदाते ने कहा कि मराठी भाषी संतों ने सांस्कृतिक और धार्मिक जागरण कर मराठी साहित्य को देश और दुनिया में फैलाने का काम किया है।
रिद्धपुर, जिला अमरावती के श्रुति-स्मृति भवन, श्री गुरूकुल गोविंद आश्रम शाला, वाजेस्वरी परिसर में मराठी भाषा गौरव दिवस का आयोजन ऑनलाइन यथा ऑफलाइन माध्यम से किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने की। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री प्रभु प्रबोधन संस्था, रिद्धपुर के सरचिटणीस श्री पुरुषोत्तम नागपुरे तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में महानुभाव आश्रम राजापेठ, अमरावती के परम पूज्य कविश्वर कुलाचार्य कारंजेकर बाबा (मोहन बाबा) मंचासीन थे।
भीकू रामजी इदाते ने मराठी भाषा की परंपरा और समृद्ध संत साहित्य का संदर्भ देते हुए अपने उद्बोधन में कहा कि मराठी का इतिहास पंद्रहवी शताब्दी से शुरू होता है। श्रावण बेळगोळ में गोमटेश्वर की प्रतिमा के परिसर में चामुंडे राजे द्वारा किये गये अनुसंधान में इसका प्रथम संदर्भ प्राप्त होता है। वहां जो 75 शिलालेख मिले थे वे सभी मराठी में देवनागरी लिपि में लिखे गये थे। मराठी साहित्य के आद्य कवि मुकुंद राज ने विवेकसिंधु ग्रंथ लिखा और संत ज्ञानेश्वर ने ज्ञानेश्वरी के माध्यम से संस्कृत का ज्ञान-विज्ञान सरल भाषा में तक्तालिन मराठी भाषा में लाया और भारतीय संस्कृति को नए परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने का काम किया। श्री इदाते ने कहा कि संत नामदेव महाराज ने पंजाब तक का सफर किया और अपने साहित्य से एकात्मता का संदेश दिया। उनके पदों को गुरु ग्रंथ साहिब में भी स्थान मिला है। चक्रधर स्वामी ने आठसौ वर्ष पूर्व वैज्ञानित सत्य लोगों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए सामाजिक परिवर्तन का नया अध्याय शुरू किया। संत तुकाराम महाराज ने अभंगों की रचना कर साहित्य को समृद्ध किया। संत रामदास स्वामी ने श्लोकों के माध्यम से लोगों को जीवन जिने का सूत्र दिया। संत एकनाथ ने भारूड के माध्यम से सामाजिक समरसता का उदाहरण प्रस्तुत किया। श्री इदाते ने अपने सारगर्भित वक्तव्य में वामन पंडित, रघुनाथ पंडित से लेकर राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज, संत गुलाबराव महाराज आदि संतों के सामाजिक और साहित्यिक कार्यों पर प्रकाश डालते हुए मराठी साहित्य में उनके महत्वपूर्ण योगदान की विस्तार से चर्चा की।
अध्यक्षीय उद्बोधन में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने मराठी भाषा और संत परंपरा की चर्चा करते हुए इस पर प्रसन्नता व्यक्त की कि मराठी भाषा गौरव दिवस जिस धरती पर मनाया जाना चाहिए वहां मनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि रिद्धपुर केंद्र अत्यंत तेजी से प्रारंभ हुआ है, इसे ईश्वरानुग्रह ही माना जाना चाहिए। यहां स्नातकोत्तर की कक्षाएं प्रारंभ हुई है और आने वाले दिनो में तत्वज्ञान के पाठ्यक्रम भी प्रारंभ होंगे। उन्होंने घोषणा की कि रिद्धपुर में पाण्डुलिपि संसाधन केंद्र की स्थापना भी की जाएगी। कुलपति प्रो. शुक्ल ने विश्वास जताया कि यह केंद्र भारतीय परंपरा को सामान्य जन तक पहुचाने कार्य करेगा तथा भविष्य में विश्वविद्यालय की स्थापना की दिशा में यह केंद्र नीव का काम करेगा।
कार्यक्रम में पुरुषोत्तम नागपुरे ने आशा व्यक्त की कि संत साहित्य की परंपरा को लोगों तक पहुचाने का काम इस केंद्र के माध्यम से हो सकेगा। उन्होंने कहा कि संतों ने समता का मंत्र ममता से दिया और समाज में समता प्रस्थापित करने का कार्य किया। उन्होंने चक्रधर स्वामी के तत्वज्ञान और दर्शन की चर्चा करते हुए रिद्धपुर केंद्र के द्वारा उनके कार्य के विस्तार की अपेक्षा भी व्यक्त की।
कुलाचार्य कारंजेकर बाबा ने अपने वक्तव्य में लीळाचरित्र ग्रंथ की चर्चा करते हुए कहा कि चक्रधर स्वामी ने सालबर्डी की पहाडियों में 12 वर्ष तक मौन रहकर अपने तत्वज्ञान का प्रचार-प्रसार सामान्य जन तक किया। उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं। इस दौरान एम.ए. मराठी के विद्यार्थी आकाश गजभिये और छात्रा योगिता माथुरकर ने मराठी कविताओं का वाचन किया। कार्यक्रम का स्वागत एवं प्रास्ताविक वक्तव्य केंद्र के प्रभारी डॉ. राजेश लेहकपुरे ने दिया। स्वागत गीत गांधर्व संगीत समुह ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का प्रारंभ दीप प्रज्ज्वालन, कुलगीत और अतिथियों द्वारा महात्मा गांधी, चक्रधर स्वामी और मां सरस्वती के फोटो पर माल्यार्पण कर किया गया। कार्यक्रम का संचालन केंद्र की सहायक प्रोफेसर डॉ. सुषमा लोखंडे ने किया तथा आभार सहायक प्रोफेसर डॉ. धर्मेंद्र शंभरकर ने ज्ञापित किया। कार्यक्रम का समापन पसायदान से किया गया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के प्रो.के. बालराजु, अनिकेत आंबेकर सहित गणमान्य नागरिक, केंद्र से जुड़े कर्मचारी, विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। कार्यक्रम में ऑनलाइन माध्यम से भी अध्यापक, अधिकारी, शोधार्थी एवं विद्यार्थियों ने सहभागिता की।