छंदशाला की मासिक काव्य गोष्ठी संपन्न
गीत और घनाक्षरी की बही रसधार – काव्य रसिक हुए आनंदित
बिलासपुर. छंदशाला की मासिक काव्यगोष्ठी का आयोजन सांई आनंदम् उसलापुर में किया गया । इस आयोजन में छंदशाला के सभी सदस्य रचनाकार उपस्थित रहे ।इस काव्य गोष्ठी की खास बात यह रही कि गोष्ठी पूर्णतः गीत और घनाक्षरी छंद पर आधारित थी जिसमें छंदशाला के कवियों ने एक से बढ़कर एक गीत और घनाक्षरी की प्रस्तुति दी । वरिष्ठ कवि देवेन्द्र शर्मा पुष्प ने
“श्वेत श्याम बादलों की ओढ़ लो चदरिया , शीत छांह की विशेष कामना हमारी है “गीत पढ़कर ग्रीष्म में शीतलता की रसधार बहा दी तो वरिष्ठ कवि विजय कल्याणी तिवारी ने “जतन व्यर्थ थे,मन उल्लास नहीं आया ,अब श्रापित सा लगा आज अपनी छाया” गाकर भावविभोर कर दिया। वहीं वरिष्ठ कवि शैलेन्द्र गुप्ता ने घनाक्षरी “अंग -अंग की कहानी, सुन लो मेरी जुबानी अलग -अलग सभीअंग काम पायो है” तो रेखराम साहू ने गजल “नूर नज़रों में नज़ारों में रहीमो राम का,तंग़ नज़री ने मग़र वो नूर पहचाना नहीं” , डॉ सुनीता मिश्रा ने” घना कुहासा इधर उधर है मूरख मन भरमाया है,जीवन है बस चार दिनों का , नहीं समझ क्यों पाया है” गाकर बहुत तालियां बटोरी। कवि पी डी वैष्णव ने कोई अतिथि या विशेष व्यक्ति आ जाय।चार विस्कुट के साथ हो जाय चाय, ओमप्रकाश भट्ट ने धर्म व्याख्यान नित नए होते रहे पंख शालीनता के कुतरते रहे, पूर्णिमा तिवारी ने बाँसुरी की हर तान, मन को करे विभोर , वरिष्ठ कवि अमृत पाठक और जगतारण डहिरे ने छत्तीसगढ़ी गीत गाकर समां बांध दिया और हूपसिंह क्षत्रिय ने गीत तुमको मालूम नहीं क्या मुझे मिल गया
एक तुम मिल गये मुझको सब मिल गया और राजेंद्र रुंगटा ने समसामयिक कविता का पाठ किया।
आपको बता दें कि शहर में आपदा काल में गठित छंदशाला इकलौती ऐसी संस्था है जिसमें छंदबद्ध रचनाओं का अभ्यास और पाठ किया जाता है और छंदशाला के रचनाकारों का तीन साझा संग्रह और अनेकों व्यक्तिगत संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।आज की काव्यगोष्ठी में 12 कवियों एवं कवयित्रियों ने काव्य पाठ किया और उपस्थित साहित्य रसिकों ने गीतों को अनुपम बताया।
छंदशाला के काव्यानुशासित वातावरण में यह काव्य गोष्ठी अमिट छाप छोड़ गयी जिसमें श्रोता आकंठ डूबे रहे ।कार्यक्रम का सफल संचालन छंदशाला की संयोजिका और कवयित्री डॉ.सुनीता मिश्र ने किया ।
कार्यक्रम में छंदशाला परिवार के सदस्य एवं नगर के कवि, रचनाकार एवं श्रोता उपस्थित थे ।