चिल्हाटी जमीन घोटाला : 17 एकड़ सरकारी तालाब में अवैध प्लाटिंग


बिलासपुर/अनिश गंधर्व. सरकारी और तालाब मद की जमीनों में अवैध प्लाटिंग कराने वाले पटवारी व तहसीलदार पर कार्रवाई नहीं होना राज्य सरकार के मुंह पर करारा तमाचा है। सरकारी जमीनों को संरक्षित करने की जिम्मेदारी पटवारी व तहसीलदार के हाथों में होती है और यही पटवारी व तहसीलदार एसडीएम कलेक्टर से सांठगांठ कर सरकारी जमीनों में जमकर बंदरबांट करते चले आ रहे हैं। जमीन माफियाओं से ज्यादा खतरनाक हो चुके ये सरकारी दलाल तालाब मद की जमीनों को भी बेच खा चुके हैं।

शहर से लगे ग्राम चिल्हाटी की लगभग 17 एकड़ तालाब को पाटकर अवैध प्लाटिंग कर बेचा जा चुका है करीब 20 से 30 करोड़ रूपये की संपत्ति सरकारी अधिकारियों ने डकार ली है। शहर के आस पास के गांवों के तालाबों में मछली पालन भले ही नहीं हो रहा है पर इन तालाबों में जमीन दलाल पल रह रहे हैं जो मौका मिलते ही तालाब को ही लीगल जा रहे हैं। भाजपा शासनकाल में हुए उल्टे-सीधे कार्यों पर अब कांग्रेसी भी पर्दा डाल रहे हैं। गरीब आदिवासी मद की जमीनों को बेच खाने वाले तहसीलदार-पटवारी व जमीन दलालों के आगे कानून-कायदा बौना हो चुका है। रिश्वतखोरी की दलदल में फंसे जिला प्रशासन के आला अधिकारी कानून को अपनी जेब में लेकर घूम रहे हैं। राज्य में आदिवासी मद की भूमियों के अलावा सरकारी जमीनों को रसूखदारों ने बेच दिया है। राजस्व विभाग के आदमखोर अधिकारियों की काली करतूतों से तंग आकर छत्तीसगढ़ की जनता राजस्व विभाग को बंद करने भगवान से विनती कर रहे हैं।

भाजपा शासन में 15 सालो के कार्यकाल के दौरान चिल्हाटी के तत्कालीन पटवारी रहे अशोक जायसवाल ने अपने पद का दुरूपयोग करते हुए शासन को करोडो का नुकसान पहुचाते हुए भ्रष्टाचार को अंजाम दिया है, तत्कालीन चिल्हाटी पटवारी रहे अशोक जायसवाल ने ग्राम पंचायत चिल्हाटी के तालाब को 2017-18 में बिना जांच किये तालाब की जमीन को भूमाफिया को विक्रय कर दिया जबकि कानून के जानकार मानते हैं कि खसरा नंबर 224 जो कि तालाब और बंधिया के नाम पर भूअभिलेख निस्तार पत्रक में दर्ज है तो फिर किसी के भी पक्ष में नामंत्रण का आदेश देते समय तहसीलदार ने मौजा चिल्हाटी हल्का न 19/29 में स्थित, संबंधित खसरा नंबर में उपस्थित 17 एकड़ लगभग तालाब की भूमि के संबंध में विचार क्यों नहीं किया गया ये अपने आप में एक बड़ा सवाल है।

राजस्व अधिकारी का कार्य होता है कि वह राजस्व अभिलेखों जैसे कि निस्तार पत्रक और वाजिब उल अर्ज में दर्ज प्रविष्टियों के आधार पर ही किसी भूमि की खरीदी बिक्री की अनुमति और नामांतरण की अनुमति देता है। तत्कालीन पटवारी अशोक जायसवाल एवं तहसीलदार ने ऐसे किसी दस्तावेज की जांच किए बिना ही सीधे-सीधे भू माफियाओं के पक्ष में निर्णय दे दिया और कभी भी उन्होंने चिल्हाटी के वाजिब उल अर्ज में दर्ज तालाब और बधिया को ढूंढने की ना तो कोशिश की और ना ही कभी बचाने की कोशिश की । इस जमीन घोटाले की पूर्व में भी शिकायत की गई थी परंतु कोई भी कार्यवाही तत्कालीन तहसीलदार द्वारा नहीं की गई बार-बार तहसीलदार को मौखिक रूप से बताया भी गया परंतु उन्होंने कभी भी उक्त संबंध में कोई भी जांच करने की इच्छा जाहिर नहीं की। तालाब मद की 17 एकड़ सरकारी जमीन को तत्कालीन पटवारी रहे अशोक जायसवाल ने अपने रिश्तेदारों के नाम दर्ज कर बेच दिया है जिसकी शिकायत की गई है। चिल्हाटी में बडे पैमाने पर किए गए जमीन घोटाले की जांच केन्द्रीय जांच दल से कराने से कईयों के चेहरे बेनाकाब हो जाएंगे।

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