इन मुद्दों पर भी नैंसी पेलोसी से चिढ़ा है चीन, दुनिया में कई बार हुई फजीहत
नैंसी पेलोसी. ये नाम पिछले 24 घंटे से सुर्खियों में है. अमेरिकी संसद के निचले सदन में हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव की स्पीकर नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे ने दुनिया के दो ताकतवार देशों अमेरिका और चीन के बीच तनाव को बहुत बढ़ा दिया है.
पेलोसी के इस ताइवान दौरे को चीन ने अपनी संप्रभुता पर हमला मानते हुए इसे उकसावे वाली कार्रवाई करार दिया है. चीन इस वजह से भी तमतमाया हुआ है क्योंकि नैंसी पेलोसी बीते कई दशक से चीन पर लोकतांत्रिक अधिकारों की हत्या करने का आरोप लगाते हुए वैश्विक मंच पर उसे घेरती रही हैं.
थियानमेन चौक पर प्रदर्शनकारियों के दमन का विरोध
वर्ष 1989 में चीन की राजधानी बीजिंग में एक बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ था जिसे चीनी सरकार ने बलपूर्वक कुचल दिया था. बीजिंग के थियानमेन चौक पर सरकार की नीतियों का विरोध करने पहुंचे सैकड़ों प्रदर्शनकारियों पर चीनी सरकार ने टैंक चलवा दिया था. इस प्रदर्शन में अधिकतर छात्र थे, जिन पर हुई बर्बर कार्रवाई से पूरी दुनिया में चीन की किरकिरी हुई थी.
इस घटना के लगभग दो साल के बाद सितंबर में नैंसी पेलोसी चीन में ठीक उसी जगह यानी थियानमेन चौक पहुंचीं, जहां प्रदर्शनकारियों की मौत हुई थी. पेलोसी के साथ इस दौरान यूएस रिप्रजेंटेटिव बेन जोस और जॉन मिलर भी मौजूद थे. पेलोसी ने प्रदर्शनकारियों के समर्थन में वहां बैनर लहराया था. काले रंग के इस बैनर पर लिखा था ‘To Those Who Died For Democracy In China’, यानि उनके लिए… जिन्होंने चीन में लोकतंत्र के लिए जान दे दी. पेलोसी के इस समर्थन को कवर करने के लिए वहां पहुंची मीडिया पर भी चीन ने बल प्रयोग करते हुए उन्हें कवरेज करने से रोका था. चीन की कम्युनिस्ट सरकार का खुलकर इस तरह विरोध करने का पेलासी का अंदाज उन्हें सुर्खियों में ले आया.
थियानमेन चौक पर पेलोसी कुछ ऐसा करेंगी, इसका अंदाजा चीन को बिलकुल नहीं था. पेलोसी के बिना अनुमति के इस दौरे का और विरोध करने के तरीके का चीन के विदेश मंत्रालय ने विरोध किया था. बाद में पेलोसी ने अमेरिकी सदन में भी इस घटना का जिक्र करते हुए चीन की आलोचना की थी.
तभी से पेलोसी लगातार चीन की नीतियों का विरोध करती रही हैं. हाल ही में थियानमेन चौक पर हिंसा की 33वीं बरसी पर भी पेलोसी ने एक बयान जारी कर चीन की कम्युनिस्ट सरकार को आड़े हाथ लेते हुए प्रदर्शनकारियों के साहस को सलाम किया था. इससे पहले इस घटना की 30वीं बरसी पर वर्ष 2019 में भी पेलोसी ने वॉशिंगटन में ही ‘टैंक मैन स्टेच्यू’ का उद्घाटन किया था. यानि कम्युनिस्ट सरकार के उस क्रूर एक्शन की पूरी दुनिया को याद दिलाते हुए पेलोसी चीन को लगातार घेरती रही हैं.
तिब्बत के मुद्दे पर भी चीन को घेरा
पेलोसी ने तिब्बत का मुद्दा भी कई बार दुनिया के सामने रखा है. वर्ष 2002 में पेलोसी ने चीन के तत्कालीन उप राष्ट्रपति हू जिंताओ को लेटर लिखकर चीन और तिब्बत में गिरफ्तार किए गए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की रिहाई की मांग की थी. उनकी इस मांग को खारिज कर दिया गया. बाद में जब हू जिंताओ राष्ट्रपति बने, तब फिर से उन्होंने राजनीतिक कैदियों की रिहाई की थी.
2008 के बीजिंग ओलंपिक की मेजबानी का किया विरोध
2008 में ओलंपिक की चीन को मेजबानी देने का भी पेलोसी ने विरोध किया था. मानवाधिकार उल्लंघन का हवाला देते हुए पेलोसी ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश से बीजिंग ओलंपिक का बहिष्कार करने की मांग की थी. हालांकि बुश ने उनकी मांग नहीं मानी.
चीन में उइगर मुसलमानों के मानवाधिकार की पैरवी
चीन में उइगर मुसलमानों के मानवाधिकार की भी पेलोसी लगातार वकालत करती रही हैं. 2020 में उन्होंने उइगर ह्यूमन राइट्स पॉलिसी एक्ट पर साइन भी किया था और पूरी दुनिया से इस मुद्दे पर चीन का विरोध करने की अपील की थी.
2022 में बीजिंग विंटर ओलंपिक का भी बहिष्कार
साल 2022 के बीजिंग विंटर ओलंपिक के विरोध में भी पेलोसी ने मुहिम चलाई थी. हालांकि इस बार रणनीति के तहत अमेरिका ने भी विंटर ओलंपिक का राजनयिक बहिष्कार किया था.पेलोसी ने अपील करते हुए कहा था कि चीन में एक तरफ़ जनसंहार चल रहा है और इस बीच दुनिया भर के राष्ट्राध्यक्ष वहां जाएंगे. ऐसी स्थिति में मानवाधिकारों पर बोलने का आपके पास कोई अधिकार नहीं रह जाता है.
पेलोसी इससे पहले चीन का कई बार दौरा कर चुकी हैं, लेकिन इस बार पड़ोसी मुल्क ताइवान का दौरा चीन का नागवार गुजर रहा है. हालांकि अमेरिका पेलोसी के इस दौरे को ऑफिशियल नहीं बता रहा, लेकिन जिस तैयारी के साथ अपने प्रतिनिधिमंडल के साथ पेलोसी ने ताइवान में लैंड किया है, वो एशिया का तापमान बढ़ाने वाला है. सिंगापुर, जापान, साउथ कोरिया, मलेशिया और ताइवान दौरे पर निकलीं नैंसी पेलोसी पर पूरी दुनिया की नजर है.
1987 से कैलिफोर्निया की सांसद रहीं नैंसी पेलोसी के कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिका के अगले राष्ट्रपति के चुनाव में वे उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के बाद दूसरे नंबर की प्रतियोगी मानी जा रही हैं. ऐसे में ताइवान के प्रति उनका नजरिया क्या है, ये चीन के लिए बेहद मायने रखता है.