November 25, 2024

जन्माष्टमी : भारतीय संस्कृति के सभी पर्व सत्य, अहिंसा, स्नेह, सहयोग, सौहार्द्र, सहिष्णुता की शिक्षा देते है – योग गुरु महेश अग्रवाल

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र  स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि हम सब इस जन्माष्टमी, कृष्ण को पुजें और उन्हें अपने जीवन में उतारे भी। जीवन संग्राम में शान्ति एवं मानसिक संतुलन बनाये रखना सुखी जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक है। ऋषि, महात्माओं ने सत्संग की महिमा गायी है। आधुनिक व्यस्त जीवन पद्धति में लोगों को सत्संग मिलना कठिन है, जीवन मशीनवत् हो गया है, कोई प्रेरणा नहीं, कोई दिशा नहीं, मन अशान्त, तन रोगी, गृहस्थी जंजाल लगने लगती है, ऐसी अवस्था में हजारों संतप्त और किंकर्तव्यविमूढ़ों को जीवन की नयी दिशा, उत्साह, प्रेरणा, स्वास्थ्य एवं शान्ति देने के लिए सत्संग स्वरूप पर्व  एवं सद्-साहित्य ही मदद दे सकता है।
योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि कृष्ण ने केवल कहा नहीं, अपने शब्दों को साकार करके भी दिखाया। जैसे गीता के रूप में उनकी वाणी अनुकरणीय है, वैसे ही उनका जीवन भी, कृष्ण ने सिखाया कि रिश्ते कैसे निभाए जाते हैं, अपने पूरे परिवेश को प्रेम से कैसे भरा जाता है और जीवन के उतार-चढ़ाव का सामना मुस्कराते हुए कैसे किया जाता है।
योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि आखिर मनुष्य चाहता क्या है? अधिक से अधिक आनन्द, यहीं न? यदि प्रभु तुमको एक बड़ा अफसर बनाकर जीवन-सुख के समस्त भौतिक साधन दें तो क्या तुम सुखी हो जाओगे? यदि नहीं तो आखिर तुम चाहते क्या हो? तुम्हारे जीवन का उद्देश्य क्या है? तुम शायद यह कहोगे कि तुम्हारा लक्ष्य है, अरबपति बनना अच्छा मान लो तुम अरबपति भी बन गए और भी कुछ चाहिए क्या? हाँ, शायद एक पुत्र पुत्र की कामना पूर्ण होने के पश्चात् तुम और कुछ पाने की कामना करोगे? तुम जितनी इच्छाएँ करते जाओगे, उतनी ही देर तुम्हें आनन्द पाने में लगेगी। याद रखो कि लक्ष्य की प्राप्ति हो जाने पर सारी इच्छाओं की पूर्ति हो ही जाती है।
जीवन में सम्पत्ति, स्त्री, सन्तान आदि सभी रेलवे स्टेशनों की तरह आएँगे और चले भी जाएँगे। जीवन की प्रत्येक इच्छा ‘आने वाले’ स्टेशन के समान है। ऐसे ही स्टेशन और भी हैं। जीवन की इन इच्छाओं को पार करते  हुए, कहीं भूल  कर इन्हें जीवन का परम लक्ष्य न समझ बैठना।
जो कुछ भी होता है, वह सब भगवान् का संकल्प ही है। अपनी इच्छाओं को सर्वोपरि समझने वालों को शूल भी चुभते हैं, फूल भी मिलते हैं। अगर तुम प्रत्येक घटना में प्रभु के संकल्प की धारणा करोगे तो अनासक्त बन जाओगे। यही है  गीता की शिक्षा। गीता जीवन का ‘टाईम-टेबल’ है।  यह सफल जीवन की कुंजी है । गीता का एक ही शब्द समझ कर उस पर मनन किया जाए तो वही शब्द सारी गीता कह देता है।
‘अनासक्ति, योग, मत्सर, शरणागति, कर्मयोग, वैराग्य, स्थितप्रज्ञता’ : इनमें से कोई एक शब्द चुन कर मनन करना शुरू कर दो।* परन्तु हममें से अधिकतर लोग करते क्या हैं? थोड़ी देर गीता-पाठ कर लिया और समझ लिया कि कर्तव्यों की इति श्री हो गई। न तो हम उस पर मनन करते हैं, न ही निदिध्यासन ही। क्या हम यह तो नहीं सोचते कि भगवान् गीता पढ़ते देख कर हम पर खुश हो जाएँगे? माताएँ, रामायण भी पढ़ती हैं, और पानी भरते समय कुएँ पर आपस में झगड़ती भी हैं। पण्डितजन वेदान्त भी पढ़ते हैं, साथ-साथ मेहतर, विधवा अथवा खाली बर्तन देखकर इस आशंका से भयभीत हो जाते हैं कि कुछ-न-कुछ अनिष्ट होने वाला है। यह भी कैसा अन्धविश्वास! धर्म निश्चय ही इससे भिन्न और ऊपर है।
गीता कहती है—’भगवान् एक है; मानवता एक है; जीवन एक है; विश्व एक है; अनेकता है क्या; एक ही का विस्तार न?”
एक अकेला ही कई रूपों में प्रकट हो रहा है। हमने ही भगवान् के कई नाम घर दिए हैं, और विविध रूपों में उसकी कल्पना की है। इसका कारण है, राचियों की विचित्रता। अगर तुम साकार राम पर ध्यान करते हो तो कभी न कभी यह अनुभव करोगे ही कि साकार निराकार में परिणत हो गया है। भगवान् की आँखें नहीं, फिर भी वह देखता है; उसके हाथ नहीं, फिर भी वह काम करता है; उसके और नहीं, फिर भी वह चलता है; उसके नाक नहीं, फिर भी वह सूँघता है; उसके मुँह नहीं, फिर भी वह खाता है। वह लिंग, जाति, वर्ण, शरीर और अन्य सभी परिणामों से परे है। हिन्दू मुसलमान, ईसाई अथवा सिक्खों का कोई अलग-अलग भगवान् थोड़े ही है! जो कुछ तुम देखते हो, वही ईश्वर रूप है। जो कुछ भी तुम सुनते हो, वही ईश्वर-रूप है। अनन्त देवों के परम देव परमात्मा पर से श्रद्धा कभी न खोना।
बिजली पावर हाऊस से आती है। परन्तु परमात्मा की महिमा सर्वव्यापिणी है। आकाशवाणी से अभी भी संगीत प्रसारित हो रहा है। आवश्यक है कि तुम अपना रेडियो मिला लो। इसी प्रकार प्रभु की महिमा सदैव तुम्हारे अन्दर है। तुम्हें अपने मन-रूपी रेडियो को मिला कर उसकी कृपा का अनुभव करना है। उस पर परम श्रद्धा रखो; क्योंकि उसकी कृपा न तो सूर्य की तरह जागती है, न चन्द्रमा की तरह क्षीण ही होती है। अमर है उसका प्रकाश, जो सबको समान रूप से प्रकाशित करता रहता है।

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