कबीर का आध्यात्मिक संसार आज के मनुष्य के लिए संजीवनी की तरह है : प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्ल

वर्धा. कबीर जयंती के अवसर पर आज़ादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत मंगलवार 14 जून को ‘कबीर का चिंतन : वैश्विक प्रयोजनीयता’ विषय पर महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के हिंदी एवं तुलनात्‍मक साहित्‍य विभाग तथा दर्शन एवं संस्‍कृति विभाग के संयुक्‍त तत्‍वावधान में आयोजित वेबीनार की अध्‍यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्‍ल ने कहा कि वैश्विक परिदृश्य में कबीर का आध्यात्मिक संसार आज के मनुष्य के लिए संजीवनी की तरह है। कबीर की वाणी की आक्रामकता का अर्थ जड़़ता पर प्रहार करने का है। सत्य और सरलता उनके विचार के केंद्र में है। वर्तमान समय में कबीर के विवेक सम्पन्न विचारों की आवश्यकता है।

इस अवसर पर सारस्‍वत अतिथि  के रूप में हिंदुस्‍तानी एकेडमी, प्रयागराज के अध्‍यक्ष प्रो. उदय प्रताप सिंह और काशी हिंदू विश्‍वविद्यालय, वाराणसी की प्रो. सुमन जैन ने संबोधित किया।  प्रो. सुमन जैन ने कहा कि कबीर सत्य के पुजारी थे। समाज का तार्किक और वैज्ञानिक समाधान उनके साहित्य में प्राप्त होता है। कबीर मध्यकाल के रचनाकारों में श्रमनिष्ठ रचनाकार है।प्रो. उदय प्रताप सिंह ने कबीर की अनेक साखी को उधृत करते हुए कहा कि उनके विचार आज के समय भी चरितार्थ होते हैं। कबीर ने एकता को साधने के लिए भक्ति के माध्यम से प्रेम की बात की है। उनकी आध्यात्मिक चेतना अहंकार को त्यागकर वैश्विक समाज से जुड़ने के लिए प्रेरित करती है।

 कार्यक्रम का संचालन दर्शन एवं संस्‍कृति विभाग के अध्‍यक्ष डॉ. जयंत उपाध्‍याय ने किया। उन्होंने कहा कि कबीर ने मनुष्य की दशा को नई दिशा दी। सत्य के पक्षधर्मी कबीर वैश्विक परिप्रेक्ष्य में अद्वितीय, अप्रतिम और अनोखे हैं।

स्वागत वक्तव्य कार्यक्रम के संयोजक तथा साहित्‍य विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. अवधेश कुमार ने दिया। प्रारंभ में कबीर वाणी का गायन ताना- बाना समूह के मूलगादी मठ वाराणसी के सदस्य देवेंद्र दास देव, गौरव, कृष्णा और डॉ. भागीरथी ने किया। विश्वविद्यालय के कुलगीत से कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। आभार प्रो. अवधेश कुमार ने ज्ञापित किया। इस अवसर पर प्रतिकुलपति प्रो. चंद्रकांत रागीट सहित अधिष्ठातागण, विभागाध्यक्ष तथा बड़ी संख्या में शोधार्थी एवं विद्यार्थी जुड़े थे।

 

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