February 18, 2022
संत रविदास जयंती – संतों के उपदेशों एवं शिक्षाओं से आज भी समाज को मार्गदर्शन मिलता है : योग गुरु महेश अग्रवाल
भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि संत रविदास का जन्म हिन्दू कैलेंडर के आधार पर माघ माह की पूर्णिमा तिथि को हुआ था, इसलिए हर साल इस दिन रविदास जयंती मनाते हैं । संत रविदास धार्मिक प्रवृति के दयालु एवं परोपकारी व्यक्ति थे। उनका जीवन दूसरों की भलाई करने में और समाज का मार्गदर्शन करने में व्यतीत हुआ। वे भक्तिकालीन संत एवं महान समाज सुधारक थे। उनके उपदेशों एवं शिक्षाओं से आज भी समाज को मार्गदर्शन मिलता है । संत रविदास को रैदास, गुरु रविदास, रोहिदास जैसे नामों से भी जाना जाता है।
योग गुरु महेश अग्रवाल ने इस अवसर पर बताया कि दैनिक साधना के कुछ नियम है। योग के विषय में लोगों का ऐसा मत बन गया है कि योगाभ्यास प्रातःकाल में ही किया जा सकता है, और इस कारण वे साधना के व्यापक दृष्टिकोण से वंचित रह जाते हैं। साधना साध्य नहीं है, यह मन और शरीर के बीच सामंजस्य स्थापित करने का एक साधन है। साधना करने के फलस्वरूप हमारा दृष्टिकोण बदल जाता है। हमारा चिन्तन स्पष्ट हो जाता है। पूरी जीवन प्रक्रिया विकसित होने लगती है। प्रातःकाल कुछ देर योग साधना करने से पूरे दिन लाभ प्राप्त होता रहता है। जागरूकता और मानसिक नियन्त्रण की उपलब्धि होती है और इसके कारण हम प्रतिक्षण प्रफुल्लित रहने लगते हैं। *तब प्रत्येक स्थिति एक आसन, प्रत्येक श्वास एक प्राणायाम एवं प्रत्येक भंगिमा एक मुद्रा और प्रत्येक भावना ध्यान की एक प्रक्रिया बन जाती है।*
भोजन करते समय : भोजन के समय यह सुनिश्चित कर लें कि आपकी श्वास धीमी, सहज एवं मन्द है। आपकी सजगता भोजन को मुँह में डालने के पूर्व तथा पश्चात् , दोनों समय पूरी तरह से आपके भोजन पर रहनी चाहिए। इस तरह से आप भोजन के प्रत्येक ग्रास के मुख में प्रविष्ट होकर लार के साथ मिलने और नीचे उतरने की प्रक्रिया से उत्पन्न संवेदना का रसास्वादन कर सकेंगे। प्रत्येक ग्रास के स्वाद, ताप एवं गुणों का अनुभव करते हुए ही उसे गले से नीचे उतारा जाना चाहिए एवं भोजन के पेट में उतरने और होने वाली पाचन क्रिया का ख्याल रखना चाहिए। इसे भोजन का ध्यान कह सकते हैं। जैसे ही पेट भर जाए, भोजन करना रोक देना चाहिए। यदि इसके बाद भी आप पेट में भोजन भरना जारी रखेंगे तो आप भले ही खा लें, आपको पेट भारीपन का अनुभव होने लगेगा। कई लोगों में यहीं से अपच की शुरूआत होती है। भोजन के पश्चात् वज्रासन में बैठिए। आरम्भ में जितनी देर सम्भव हो उतनी ही देर बैठने का प्रयत्न कीजिए। तत्पश्चात् धीरे-धीरे अवधि को 20 मिनट तक बढ़ाइये । वज्रासन में बैठने पर आप अनुभव करेंगे कि यद्यपि आपने अधिक भोजन कर लिया था, फिर भी भारीपन में कमी हो गई है एवं आपको भोजन से पूर्ण सन्तुष्टि मिली है। अपनी पाचन प्रणाली का मानसिक अवलोकन कीजिए। इससे आपको और भी हल्कापन अनुभव होगा। प्रत्येक आन्तरिक प्रक्रिया, संवेदना तथा अनुभव का ख्याल रखिए। अपने शरीर विज्ञान तथा आन्तरिक अंगों की कार्यप्रणाली के ज्ञान का प्रयोग करके भोजन की प्रत्येक गतिविधि का अवलोकन करें।
शौचालय में : बच्चो को शौच जाने का प्रशिक्षण देना सामान्य विवेक का उपयोग कर एक प्रयास करना है, जिसमें त्रुटियों की भी संभावना रहती हैं। जिन लोगों को सही प्रशिक्षण नहीं मिला, जो उनके जीवन में अवरोधकारी बन रहा है, और जिसके परिणाम वे आज भुगत रहे हैं, ऐसे लोग थोड़ी सजगता और योग के सरल अभ्यासों द्वारा सभी प्रकार से क्षतिपूर्ति कर अच्छे स्वास्थ्य को प्राप्त कर सकते हैं। बच्चों के लिए सबसे उत्तम है उकडूँ बैठना। यह शारीरिक स्थिति शरीर की प्राकृतिक क्रिया में सहायक होती है और वस्तुतः कब्ज से पीड़ित लोगों के लिए सर्वोत्तम है। आधुनिक कुर्सीनुमा शौचालयों के प्रचलन के पूर्व लोग शौच के लिए इसी स्थिति में बैठा करते थे। किन्तु दुर्भाग्यवश अब बहुत से लोग उकहूँ नहीं बैठ पाते। इस प्राकृतिक आसन में बैठने का प्रयास करते हुए वे सामने की ओर झुक जाते है, जिससे उत्सर्जक अंगों पर दबाव पड़ता है और ऊर्जा प्रवाह बाधित हो जाता है।
तनाव तथा दबाव की अवस्था में : जब आप अत्यधिक तनाव अनुभव करें तो मन एवं शरीर को तनाव से मुक्त करने के कुछ विशेष अभ्यास कीजिए। इनमें योगनिद्रा एवं शवासन सर्वोत्तम हैं। यदि आपको लेटने का समय न हो तो बैठे हुए भी किसी समय कहीं भी शिथिलतापूर्वक श्वास का ख्याल कर सकते हैं। इसे आप बस या रेल में सफर करते हुए, भोजन करते समय एवं बात करते समय भी कर सकते हैं। इस अभ्यास में केवल श्वास के प्रति सजग होने की आवश्यकता है, अधिमानतः उदर प्रदेश में। श्वास की लयबद्ध गति का अनुभव कीजिए और श्वास को यथासम्भव शान्त, मन्द एवं सहज बनाए रखने का प्रयास कीजिए। अनुभव कीजिए जैसे आप वस्तुतः श्वास पर आरोहण कर रहे हैं। प्रत्येक प्रश्वास के साथ आप शरीर की अशुद्धियों, विषाक्त तत्त्वों, चिन्ताओं, तनावों, समस्याओं एवं कुण्ठाओं को बाहर निकाल रहे हैं। आपकी प्रत्येक श्वास गर्म सुनहरी तथा प्राणदायिनी ऊर्जा है। प्रत्येक श्वास के साथ अधिकाधिक शिथिलता एवं स्फूर्ति का अनुभव कीजिए दिन में जब भी सम्भव हो, प्रायः इसका अभ्यास किया जाना चाहिए। अपने सभी दैनिक कार्यों के साथ इसका अभ्यास करने का प्रयास कीजिए। प्रारम्भ में अपनी स्मृति को जाग्रत करने के लिए आप एक विशेष तरीके का उपयोग कर सकते हैं। उदाहरणार्थ, जितनी बार आप घड़ी देखें, इस अभ्यास को कम से कम पाँच मिनट तक करें।
दैनिक जीवन की सभी आवश्यकताओं के अनुसार योग के अभ्यासों को अपनाया जा सकता है। पुराने तनावों तथा अपचन को दूर करने के लिए इन अभ्यासों के साथ-साथ कर्मयोग, भक्तियोग एवं ज्ञानयोग का समन्वय किया जाना चाहिए। यह समन्वित अभिगम चेतना को उन्नत करने तथा असामंजस्य एवं सभी स्तरों पर रोगों के कारणों को दूर करने का एक सशक्त माध्यम है।