April 27, 2024

50–55 सीटों पर चुनाव लड़ेगा सर्व आदिवासी समाज, पूर्व और वर्तमान मुख्यमंत्री ने समाज को चुनाव लड़ने पर मजबूर किया….अरविंद नेताम 

हर तरफ आदिवासियों का शोषण और उनकी हत्याएं हो रही है मगर सरकार को फर्क नहीं पड़ रहा है… नागवंशी
आदिवासियों के नाम पर दूसरे कर रहे नौकरी कार्यवाई नही … अकबर राम कोर्राम
बिलासपुर. सर्व आदिवासी समाज सामाजिक क्रियाकलापों के बाद अब राजनीति के क्षेत्र में भी कूद पड़ा है। 20 साल पुरानी इस संस्था में आदिवासी समाज के कई वरिष्ठ सामाजिक और राजनीतिक लोग शामिल हैं जो अधिक से अधिक समाज को लाभ दिलाने के लिए तमाम तरह के प्रयास कर रहे हैं।बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर द्वारा संविधान में दी गई व्यवस्था को लागू कराने की मांग उनके द्वारा लगातार की जा रही है।मगर राज्य सरकार आदिवासियों की समस्याओं पर ध्यान नहीं दे रही है या फिर देना नहीं चाहती है। इसी बात से नाराज होकर समाज अब राजनीति के क्षेत्र में सामने आ रहा है।ये कहना है पूर्व केंद्रीय मंत्री व सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष अरविंद नेताम का।शनिवार को बिलासपुर प्रेस क्लब में चर्चा करते हुए आदिवासी मुखिया ने माना कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।उनको आदिवासियों के हितों से कोई लेना देना नहीं है। यहां तक कि संविधान के नियमों का भी उनके द्वारा पालन नहीं कराया जा रहा है।समाज की पीड़ा बताते हुए उन्होंने कहा कि पेशा कानून आदिवासियों के लिए संरक्षण के लिए कानून है मगर राज्य सरकार की ओर से इस मामले में किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं आती है। इसलिए परेशान होकर समाज ने राजनीति के क्षेत्र में जाने का कदम उठाया है। समाज सामाजिक आंदोलन से जाता है ना कि राजनीतिक आंदोलन से। उन्होंने कहा कि बहुत कठिन समय आ गए हैं आदिवासियों के लिए। जल जंगल जमीन बचाने के लिए खतरा मोल लेना पड़ रहा है। श्री नेताम ने कहा कि जो सीटें आरक्षित है वहां से  चुनाव तो लड़ा ही जाएगा साथ ही जिन क्षेत्रों में 20 से 40 फ़ीसदी आदिवासी मतदाता हैं वहां भी चुनाव लड़ाया जाएगा। उन्होंने कहा कि लगभग 50 से 55 सीटों पर सर्व आदिवासी समाज चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है।उन्होंने यह भी कहा कि विभिन्न छोटे दलों से भी उनकी चर्चा चल रही है अगर वह भी साथ आ गए तो एडजस्ट करके चुनाव लड़ा जाएगा। बस्तर के हालात बताते हुए उन्होंने कहा कि लगभग 20 से 25 जगह आंदोलन किए जा रहे हैं मगर ना सरकार न प्रशासन किसी तरह से आंदोलन को खत्म कराने या चर्चा करने के लिए तैयार है। सर्व आदिवासी समाज के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बी एस रावटे ने समाज की पीड़ा बताई, कहा कि विभिन्न दलों से आदिवासी नेता सांसद और विधायक या अन्य जनप्रतिनिधि जरूर बन जाते हैं मगर दलों में जाने के बाद वह दल की भाषा बोलने लगते हैं और समाज को उपेक्षित कर देते हैं। उन्होंने इस पर चिंता जताई। तमाम आदिवासी परेशानियों को लेकर 23 सूत्री मांगों को पूरा कराने 29 मई को पूरे प्रदेश भर में जिला स्तर पर कलेक्टर कार्यालय का घेराव कर ज्ञापन सौंपने का निर्णय लिये जाने की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि प्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री सपना हो गया है। बस्तर में संवैधानिक मूलभूत अधिकार भी लोगों को प्राप्त नहीं है। निर्दोष आदिवासियों को मारा जा रहा है।फोर्स बढ़ाकर आदिवासियों के साथ ज्यादतियां की जा रही है। तमाम तरह के घोटालों का अंबार लगा हुआ है, सरकार भी ध्यान नहीं दे रही है। विभिन्न दलों में आदिवासी समाज के 29 विधायक हैं मगर सभी राजनीतिक दलों का पट्टा लगाकर बैठ गए हैं,और समाज के लिए गूंगे बहरे हो गए हैं। इस मौके पर बिलासपुर के पूर्व एडिशनल एसपी व गोंडवाना गोंड़ महासभा के अध्यक्ष अकबर राम कोर्राम ने कहा कि समाज का काम सामाजिक काम करना होता है मगर पूर्व और वर्तमान मुख्यमंत्रियों ने चुनाव लड़ने के लिए उन्हें बाध्य कर दिया है। 2016 में बीजेपी की गवर्नमेंट में आदिवासियों को जमीन लीज पर दिए जाने का आदेश निकाला गया था हजारों एकड़ जमीन पिछले दरवाजे से दूसरों के पास जा रही हैं। 700 फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर लोग विभिन्न संस्थानों में काम कर रहे हैं, मगर कार्यवाही नहीं हो रही है। आदिवासी इंजीनियर और मेडिकल छात्रों को परिवार की ढाई लाख रुपए सालाना आय होने पर छात्रवृत्ति  जारी नही की जा रही है जबकि दूसरे समाज को 8 लाख रुपए होने के बाद भी उन्हें छात्रवृत्ति दी जा रही है।भर्ती पदोन्नति रोस्टर के हिसाब से नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि आदिवासियों के सामाजिक ताना-बाना को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है,इसलिए 23 सूत्रीय मांग पूरा कराने की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।प्रदेश सचिव विनोद नागवंशी ने बताया कि आजादी के 75 साल बाद भी आदिवासियों की पहचान मुख्यमंत्रियों के फोटो से दिखाई पड़ती है जिसमें वे चप्पल और जूते बांटते हुए बड़े-बड़े फ्लेक्स टांगे हुए होते हैं। आदिवासियों को 32 फीसदी आरक्षण देने को लेकर कोई भी चर्चा नहीं हो रही है। पेसा बनने के बाद ग्रामसभा के अधिकारों को ही छीन लिया गया है। आदिवासी निरीह जिंदगी जी रहे है।नक्सल समस्या में भी आदिवासी ही मारे जा रहे हैं। सड़क बनाना हो तो आदिवासी की जमीन ली जा रही है, या कुछ भी कार्य किए जा रहे हैं आदिवासियों की जमीन छीन ली जा रही है। यही नहीं फॉरेस्ट एक्ट में लगातार कार्यवाही कर आदिवासियों को प्रताड़ित किया जा रहा है।पत्रकारों से चर्चा के दौरान कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बीएस रावटे, प्रदेश प्रभारी जीवराखन मरई, जिला अध्यक्ष कांकेर मानक दरपट्टी और बिलासपुर जिला अध्यक्ष रमेश चंद्र श्याम सहित अन्य आदिवासी नेता यहां मौजूद रहे।

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