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विनायक दामोदर सावरकर की जयंती उनके अनुयायी मना रहे है और मेरे जहन में बहुत सी बाते आ रही है : राजेन्द्र तिवारी

उनको “वीर” शब्द से संबोधित उनके स्वयं के द्वारा किया गया था, सावरकर ने एक पत्रिका में छद्म नाम से लेख लिखा था और उसमें वीर शब्द से स्वयं को संबोधित किया था..   “जब गांधी जी सावरकर से मिलने लंदन के इंडिया हाउस में पहुँचे, उस समय श्री सावरकर मछली तल रहे थे, तो

खुद को जानना ही सच्चा धर्म है

बिलासपुर. आमतौर पर लोग धर्म के अर्थ को लेकर दिग्भ्रमित है वे धर्म शब्द को एक खास चश्मे से वशीभूत होकर देखते हैं धर्म का अर्थ कोई विशिष्ट परंपरा सम्प्रदाय या दर्शनशास्त्र से नहीं है धर्म सत्य है और असत्य भय है सत्य की इच्छा होती हैं कि सभी उसे जान लें और असत्य को

कृषि मंत्री की चिट्ठी की पावती

(बादल सरोज) प्रिय भाई नरेन्द्र सिंह जी, किसानों के नाम लिखी आपकी चिट्ठी पढ़ी। काश, आपने इसमें संवेदना के दो शब्द भारत के उन 30 इंसानों के बारे में लिखे होते, जो 26 नवम्बर से आपकी सरकार के द्वारा दिल्ली की बॉर्डर्स पर अनावश्यक रूप से रोककर रखे जाने के चलते असमय ही काल के

काली कमाई के सौदागर, ये कैसे देशभक्त?

देशभक्ति, यह शब्द आज कल बहुत प्रचलन मे है। जिसे देखो वही देशभक्ति का गाना गा रहा है। अभी कुछ दिन पहले पूरे देश मे थाली बजा कर, दीया जलाकर देशभक्ति दिखाने की होड़ मची हुई थी। इससे खुशी भी हुई कि समस्त देशवासी देशभक्त है। लेकिन अब बारीकी से नजर डालता हूं तो देखता हूं कि
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