तिरंगा हमें सामाजिक समरसता व राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बांधता है, इसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य : योग गुरु महेश अग्रवाल

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र  स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के द्वारा 26 जनवरी 74 वें  गणतंत्र दिवस  एवं वसंत पंचमी के अवसर पर प्रातः 8 बजे  योग साधकों एवं गुरुजनों द्वारा सामूहिक योग साधना करके सभी देशवासियों को जीवन में खुशहाली समृद्धि एवं स्वास्थ्य प्राप्त हो इसके लिए प्रार्थना की गई। देश भक्ति गीत संगीत के साथ पर्व धूमधाम से मनाया गया। साथ ही विद्या की देवी माता सरस्वती की पूजा अर्चना की गई। प्रमुख रुप से  योगाचार्य महेश अग्रवाल, डॉ. नरेंद्र भार्गव मधुमेह मुक्त भारत अभियान के राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रचारक, सुनील सोलंकी,  सुदीप्ता रॉय, शिप्रा जैन, श्रद्धा गणपते, वसुंधरा पंडित, संगीता सदावरते उपस्थित रहें।भारतीय संस्कृति के सभी पर्व योग की शिक्षा के साथ अनुशासन, स्वच्छता, आत्मीयता, संकल्पों को गति, दिनचर्या में परिवर्तन एवं शुभ भाव में रहने का संदेश देते है। नई विद्या सीखने की शुरुआत के लिए सबसे अच्छा दिन वसंत पंचमी है। देवी सरस्वती विद्या की देवी है और विद्या को सभी प्रकार के धन में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। विद्या से ही सभी तरह की सुख – सुविधा और धन -संपत्ति प्राप्त की जा सकती है। योग करने से आत्मविश्वास बढ़ता है एवं जीवन में अनुशासन व्यक्ति को परिवार समाज एवं देश के लिए सेवा के लिए तैयार करता है ।
योग गुरू अग्रवाल ने इस अवसर पर सभी को शुभकामनायें देते हुए कहा कि शारीरिक अस्वस्थता आध्यात्मिक मार्ग में सबसे बड़ी रुकावट है। खासकर कोष्ठबद्धता ऐसा रोग है जिससे जनसंख्या का अधिकांश भाग पीड़ित है और जो आज के युग में प्रचलित मुख्य रोग हो गया है। भयंकर बीमारियों का मूल कारण भी यही है। सात्त्विक, सन्तुलित और हल्के भोजन के सिवा कुछ एक योगासनों के अभ्यास  यदि नियमित रूप से करोगे, तो कुछ एक सुस्वास्थ्य और दीर्घ जीवन ही नहीं, अपितु शान्ति और समृद्धि का भी आनन्दोपभोग करोगे। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए शरीर की मूल आवश्यकताएँ हैं पाचन क्रिया ठीक हो, स्नायुमण्डल सन्तुलित हो , श्वास-प्रश्वास क्रिया ठीक रहे, सन्धि-केन्द्र जटिल न रहें।, रक्तसंचार नियमित रहे तथा उसका समविभाजन हो। व्यायाम के द्वारा शरीर के मात्र कुछ भागों की ही पुष्टि होती है, न तो शरीर की उपर्युक्त मूल आवश्यकताओं की पूर्ति हो पाती है और न आन्तरिक अवयवों (हृदय, फेफड़े, आमाशय, मलाशय, यकृत, प्लीहा आदि) को ही पोषण मिलता है। योगासनों के अभ्यास में शरीर, मन, प्राण तथा इन्द्रियों में समता तथा सन्तुलन ले आने की अपूर्व शक्ति है। यह प्रयोग करके देखा गया है कि शरीर में कारणवशात् पैदा हुई अनियमितता भी दूर हो जाती है और असाध्य रोग भी निर्मूल हो जाते हैं।
योग गुरू अग्रवाल ने कहा कि व्यक्ति अपना जीवन योगमय तभी बना सकता है जब उसके प्रत्येक कार्य में पवित्रता और सात्त्विकता हो। गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस देश के ऐसे त्योहार हैं जिनके माध्यम से देश में एकता और अखंडता दिखती है। हर दिल और हर घर में देश के तिरंगे के प्रति सम्मान दिखता है। जब तिरंगे के प्रति यह सम्मान आत्मसात होकर देश की सेवा में बदल जाता है तो वही सच्चा गणतंत्र दिवस होता है। तिरंगा हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान का प्रतीक है। इसी तिरंगे के लिए वीर सेनानियों ने अपने जीवन का सर्वोच्च बलिदान दिया है। इसके केसरिया, सफेद और हरा रंग क्रमश: उत्सर्ग, शांति और समृद्धि के प्रतीक हैं। इसके मान-सम्मान की रक्षा करना प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है। तीन रंग का तिरंगा हम सभी को सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय एकता के एक सूत्र में बांधता है। हम सभी संकल्प लें कि वैश्विक मंच पर भारत की आवाज सदैव प्रखरता के साथ गुंजायमान हो, तथा हर नागरिक अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए आत्मनिर्भर भारत के संकल्पों को साकार करें। तिरंगा हमारी पहचान है, और सम्मान भी हमें कर्तव्यबोध के साथ राष्ट्र, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना चाहिए। देश के नव-निर्माण के लिये आज ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता है जिनने प्रलोभनों को ठुकरा दिया हो। ऐसे ही व्यक्तियों ने जीवन में योग का शुभारम्भ किया है। उनके हाथों में राष्ट्र अवश्य सुरक्षित है। वर्तमान हिंसात्मक प्रवृत्तियों में लिप्त राष्ट्र के कर्णाधार यहाँ इतना समझ लें कि जो अब भयंकर हिंसा कर सकते हैं, वे ही हाथ रक्षा भी कर सकते हैं। देश, शान्ति, समृद्धि और सुख का भार जिनके सिर पर है, वे यदि अपने को योगमय बना दें तो जीवन की सफलता शत-प्रतिशत निश्चित है। योग का अर्थ क्या है? राजयोग, ज्ञानयोग, हठयोग? नहीं, ‘योगः कर्मसु कौशलम्’। जो भी कार्य हमारे हाथ में हो, उसे कुशलतापूर्वक पूरा करना, अर्थात् जीवन के जिस योग में भी हो, उसे कुशलतापूर्वक पूरा करना। उस कर्तव्य का पूर्ण पालन हम तभी कर सकते हैं जब हम जान लें कि प्रत्येक व्यक्ति का कार्य दो भागों में बँटा रहता है। एक स्वजाति के प्रति और दूसरा समाज के प्रति।

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