किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ गांव-गांव में प्रदर्शन : भाजपा नेताओं के कार्यालयों, घरों के सामने जलाई प्रतियां

संयुक्त किसान मोर्चा और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आह्वान पर छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के विभिन्न घटक संगठनों ने आज गांव-गांव में किसान विरोधी काले कानूनों की प्रतियां जलाई। कई स्थानों पर ये प्रदर्शन भाजपाई नेताओं के घरों और कार्यालयों के आगे भी आयोजित किये गए। ये प्रदर्शन किसान आंदोलन के 20 से ज्यादा संगठनों की अगुआई में कोरबा, राजनांदगांव, सूरजपुर, सरगुजा, दुर्ग, कोरिया, बालोद, रायगढ़, कांकेर, चांपा, मरवाही, बिलासपुर, धमतरी, जशपुर, बलौदाबाजार व बस्तर सहित 20 से ज्यादा जिलों में आयोजित किये गए। हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति व किसान सभा सहित कुछ संगठनों ने कोरबा व बिलासपुर में आज के इस प्रदर्शन को पर्यावरण दिवस के साथ भी जोड़कर मनाया। बिलासपुर में भाजपा सांसद अरुण साव के बंगले के सामने प्रदर्शन किया गया। किसान संघर्ष समन्वय समिति के कोर ग्रुप के सदस्य हन्नान मोल्ला, छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के संयोजक सुदेश टीकम और छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते ने इस सफल और प्रभावशाली आंदोलन के लिए प्रदेश के किसान समुदाय को बधाई दी है और कहा कि किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ पिछले एक साल से जारी यह आंदोलन इन काले कानूनों की वापसी तक जारी रहेगा।

आज यहां जारी एक बयान में छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के नेताओं ने बताया कि पिछले साल 5 जून को ही इन किसान विरोधी कानूनों को अध्यादेशों के रूप में देश की जनता पर थोपा गया था। इन कानूनों का असली मकसद न्यूनतम समर्थन मूल्य और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था से छुटकारा पाना है। उन्होंने कहा कि देश मे खाद्य तेलों की कीमतों में हुई दुगुनी वृद्धि का इन कानूनों से सीधा संबंध है। इन कानूनों के बनने के कुछ दिनों के अंदर ही कालाबाज़ारी और जमाखोरी बढ़ गई है और बाजार की महंगाई में आग लग है। इसलिए ये किसानों, ग्रामीण गरीबों और आम जनता की बर्बादी का कानून है।

कहा कि इस देश का किसान आंदोलन अपनी खेती-किसानी को बचाने के लिए इस देश के पर्यावरण और जैव-विविधता को बचाने तथा विस्थापन के खिलाफ भी लड़ रहा है। 5 जून 1974 को ही लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने तत्कालीन केंद्र सरकार के तानाशाहीपूर्ण रूख के खिलाफ ‘संपूर्ण क्रांति’ का बिगुल फूंका था। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार संपूर्ण क्रांति के आंदोलन ने देश की आम जनता को आपातकाल से मुक्ति दिलाई थी, उसी प्रकार कृषि कानूनों के खिलाफ यह देशव्यापी किसान आंदोलन भी देश की जनता को मोदी सरकार की कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों से मुक्ति दिलाने की लड़ाई लड़ रहा है।
(छत्तीसगढ़ किसान आन्दोलन की ओर से सुदेश टीकम, संजय पराते (मो : 094242-31650), आलोक शुक्ला, रमाकांत बंजारे, नंदकुमार कश्यप, आनंद मिश्रा, दीपक साहू, जिला किसान संघ (राजनांदगांव), छत्तीसगढ़ किसान सभा, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति (कोरबा, सरगुजा), किसान संघर्ष समिति (कुरूद), आदिवासी महासभा (बस्तर), दलित-आदिवासी मजदूर संगठन (रायगढ़), दलित-आदिवासी मंच (सोनाखान), भारत जन आन्दोलन, गाँव गणराज्य अभियान (सरगुजा), आदिवासी जन वन अधिकार मंच (कांकेर), पेंड्रावन जलाशय बचाओ किसान संघर्ष समिति (बंगोली, रायपुर), उद्योग प्रभावित किसान संघ (बलौदाबाजार), रिछारिया केम्पेन, आदिवासी एकता महासभा (आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच), छत्तीसगढ़ प्रदेश किसान सभा, छत्तीसगढ़ किसान महासभा, परलकोट किसान कल्याण संघ, अखिल भारतीय किसान-खेत मजदूर संगठन, वनाधिकार संघर्ष समिति (धमतरी), आंचलिक किसान संघ (सरिया) आदि संगठनों की ओर से जारी संयुक्त विज्ञप्ति)

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