एड्स (AIDS) जैसी बीमारी को लोग आज भी हेय की दृष्टि ये देखते हैं। यह एक ऐसी बीमारी है , जिसमें मनुष्य के शरीर में संक्रमण से लडऩे की क्षमता कम हो जाती है। इसे एचआईवी संक्रमण की लास्ट स्टेज माना जाता है। यानि जिस व्यक्ति को पिछले 10 सालों से एचआईवी है, उसे एड्स होने की संभावना ज्यादा रहती है। ऐसा तब होता है जब एक सामान्य व्यक्ति एचआईवी संक्रमित व्यक्ति के वीर्य या रक्त के संपर्क में आता है।
इतने सालों और तमाम शोधों के बाद भी इस खतरनाक बीमारी का न तो कोई इलाज है और न ही इसके लिए कोई वैक्सीन बन पाई है। विश्व एड्स वैक्सीन डे (World AIDS Vaccine Day) के मौके पर हम आपको बताते हैं कि हमारे पास एचआईवी वायरस के लिए सुरक्षित , प्रभावी और किफायती टीका क्यों नहीं है।

आज हम सभी कोरोनावायरस से जूझ रहे हैं। इसके लिए शोधकर्ता वायरस को हराने के लिए सेफ वैक्सीन की खोज में लगे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 2018 के अंत तक दुनिया में लगभग 37.9 मिलियन लोग एचआईवी , एड्स के साथ जीवन बिता रहे हैं। चौकानें वाली बात है कि उसी वर्ष दुनिया में एचआईवी से जुड़ी बीमारियों से 770000 ने दम तोड़ा है।
डब्ल्यूएचओ (WHO) के आंकड़ों से पता चला है कि महामारी की शुरूआत से अब तक 75 मिलियन लोग एचआईवी वायरस से संक्रमित हुए हैं और 32 मिलियन लोग एचआईवी से मर चुके हैं। बदतर होते हालातों के बावजदू और कई परीक्षण के बाद भी हमें एक सुरक्षित और प्रभावी टीका नहीं मिल पा रहा है।
हमारे पास अब तक क्यों नहीं है HIV Vaccine

मनुष्य की प्रतिरक्षा प्रणाली-
सबसे पहले आपको बता दें कि जरूरी नहीं कि सभी लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली एचआईवी वायरस पर रिस्पॉंन्ड करे। यह वायरस व्यक्ति के इम्यून सिस्टम पर अटैक करता है, खासतौर से सीडी-4 सेल्स पर। जबकि इम्यून सिस्टम एचआईवी एंटीबॉडी का उत्पादन करती है। यह केवल रोग की प्रगति को धीमा कर सकती है, लेकिन वायरस को रोक या मारने की क्षमता इसमें नहीं होती।
वायरस का म्यूटेट होना

दूसरा कारण यह है कि एचआईवी वायरस का बहुत तेजी से म्यूटेट यानि उत्परिवर्तित होना। यही वजह है कि चाहकर भी इसके खिलाफ काम करने वाला टीका बनाना वैज्ञानिकों के लिए कठिन हो गया है। हालांकि वैक्सीन वायरस को किसी एक रूप में लक्षित करता है, लेकिन अगर वायरस उत्परिवर्तित होता है, तो इस पर काम करना कठिन ही नहीं नामुमकिन है।
रोगजनकों का उपयोग न हो पाना

लोग नहीं जानते, लेकिन ज्यादातर मामलों में टीका बनाने के लिए वैज्ञानिक मारे गए या कमजोर रोगजनकों का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन दिक्कत ये है कि एचआईवी के मामले में ये तकनीक काम नहीं कर सकती। इसका कारण है कि मारे गए एचआईवी वायरस शरीर में वायरस के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर करने के लिए बहुत खास तरह से काम नहीं करते हैं। इतना ही नहीं, वायरस के किसी भी जीवित रूप का उपयोग करना जोखिम से भरा हो सकता है।
वायरस का DNA में छिप जाना

उन लोगों को वैक्सीन की बहुत ज्यादा जरूरत है, जो एचआईवी संक्रमण जैसे संक्रमण का सामना कर रहे हैं। एड्स के आगे बढऩे से पहले उन्हें एचआईवी रहने के कारण वायरस डीएनए में छिप जाता है। इसका मतलब ये है कि वायरस की छिपी हुई कॉपीज को नष्ट नहीं किया जा सकता है। इसलिए एक वैक्सीन जो ज्यादा समय लेती है, वह एचआइवी जैसे संक्रमण को दूर करने के लिए प्रभावी नहीं हो सकती।
टेस्ट के लिए नहीं मिल रहा एनिमल मॉडल

इंसान पर परीक्षण करने से पहले टीके की सुरक्षा और प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए किसी जानवर का उपयोग किया जाता है। हालांकि, शोधकर्ताओं को ऐसा करने के लिए कोई अच्छा एनिमल मॉडल नहीं मिल पा रहा है।
इन सभी चुनौतियों का सामना करने के बावजूद वैज्ञानिक एक सुरक्षित और प्रभावी टीका खोजने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। उम्मीद है उनका यह प्रयास महामारी को नियंत्रित करने और समाप्त करने में मदद करेगा।