कलेक्टर ने रोका-छेका के तैयारियों का लिया जायजा

बलरामपुर/धीरेन्द्र कुमार द्विवेदी. छत्तीसगढ़ में रोका-छेका जैसी व्यवस्थाएं प्राचीन समय से चल रही है। नई फसल की बुआई के पूर्व पशुपालक अपने पशुओं को खुले में न छोड़कर चरवाहों के माध्यम से चरने के लिए भेज देते थे। ऐसे समय में पशुओं के खुले में चराई से फसलों का नुकसान होता है। राज्य शासन द्वारा इस आशय से गोठानों के माध्यम से 19 जून को प्रदेश भर में रोका-छेका की व्यवस्था लागू करने का निर्णय लिया गया है। कलेक्टर  श्याम धावड़े ने विकासखंड वाड्रफनगर के स्याही स्थित गोठान पहुंचकर रोका-छेका की तैयारियों का जायजा लिया। गोठान पहुंचकर उन्होंने ग्राम पंचायत के सचिव से बात कर उनके तैयारियों के बारे मे जाना। गोठान में आने वाले पशुओं की संख्या तथा गांव में कुल पशुधन के बारे में जानकारी लेते हुए शत्-प्रतिशत् पशुओं को गोठान में लाने को कहा। रोका-छेका के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि कृषक एवं पशुपालक समुदाय की प्राचीन परम्परा को सहेजने का प्रयास राज्य शासन ने किया है। ग्रामीण अंचलों के पशुपालक प्रारम्भ से ही नई फसल के बुआई के पूर्व पशुधन को चरवाहों के माध्यम से खेतों से दूर भेज देते थे, ताकि फसलों का नुकसान न हो। पशुपालकों और जनप्रतिनिधियों से मेरा आग्रह है कि रोका-छेका की व्यवस्था को पूर्ण रूप से लागू करायें ताकि शासन की मंशानुरूप कृषकों की फसल सुरक्षित हो। गोठान प्रबंधन समिति बैठक कर चरवाहों के द्वारा पशुओं का गौठान में व्यवस्थापन कर गौठान में उचित व्यवस्था करें। पशुओं के लिए चिकित्सा सुविधा, चारे की व्यवस्था तथा उचित रख-रखाव से गौठान का वास्तविक उद्देश्य पूर्ण होगा। ग्रामीण जनप्रतिनिधि तथा सरपंच, पंच मुनादी के माध्यम से व्यापक प्रचार-प्रसार करें। आज 19 जून को गौठान में विभिन्न गतिविधियां भी आयोजित की जा रही हैं, जिसमें सभी बढ़ चढ़कर भागीदार बनें।

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