लम्बी क़ानूनी लड़ाई के बाद दोषमुक्त हुए डॉ.जयराम अय्यर, पढ़े पूरी कहानी

बिलासपुर. एक डॉक्टर पर मरीज के परिजन इलाज में लापरवाही बरतने का आरोप तो लगा देते है,मगर लगाया गया आरोप जब तक सिद्ध नही होता तब तक उस डॉक्टर के साथ क्या होता है, कैसा होता है, इस बात का दुःख तो सिर्फ उस डॉक्टर का परिवार और वह स्वयं जानता है। शहर, समाज, सहकर्मी से लेकर हर जगह उसे ज़िल्लतों का सामना करना पड़ता है, हम बात कर रहे है शहर के प्रतिष्ठित कार्डियोलॉजिस्ट डॉ.जयराम अय्यर की जो कभी अपोलो में पदस्थ थे; किंतु 11 साल पहले उन्हें इलाज में लापरवाही बरतने का आरोप लगाकर बर्खास्त कर दिया गया, और यहाँ तक कि थाने में उनके ख़िलाफ़ मामला भी दर्ज कराया गया, जिसके बाद कोर्ट में 11 साल तक वो इस निराधार आरोप के विरुद्ध लड़ाई लड़ते रहे.. इतने लम्बे संघर्ष के बाद अंतत: माननीय न्यायालय द्वारा डॉक्टर अय्यर को दोषमुक्त करार दिया गया।किंतु सवाल यह उठता है कि दोषमुक्त होकर भी वह कहा जाये क्या करे उम्र60 की हो गई, यदि ऐसा नहीं होता तो कानूनी लड़ाई के 11 साल डॉक्टर अय्यर के उपलब्धियों से भरे होते, साथ ही शहर को 11 साल एक अच्छे डॉक्टर से वंचित रहना पड़ा।वही इस मामले के बाद उनको घर व शहर छोड़ना पड़ा,एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में अपना चिकित्सीय धर्म निभाते रहे। इस बीच सामाजिक,आर्थिक,व्यवसायिक नुकसान अलग हुआ जिसकी भरपाई शायद कोई ना करे। डॉक्टर द्वारा इलाज में लापरवाही का आरोप तो हम आसानी लगा देते हैं किंतु जो किसी भी लापरवाही बरतने के मामले में शामिल ना हुआ हो उसे दोषी ठहराया जाये, और मामला इतने साल चले…. यदि इसके बाद भी वह दोषमुक्त हो भी जाए…तब भी क्या कर सकता है। सारे अवसर, उपलब्धि, उम्र तो स्वयं को बेगुनाह सिद्ध करने में लग गये।ऐसे कई मामले होंगे जिसमें डॉक्टर अय्यर जैसे कई लोग पीड़ित होंगे लेकिन इतने सालों में कितने मरीजों को वह स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ नही मिल पाया होगा जिसकी उम्मीद में मरीज ऐसे डॉक्टर को भगवान का ही रूप मानते होंगे!सोचिएगा?
यह था मामला : अपोलो के भूतपूर्व सीनियर कंसल्टेन्ट कार्डियोलाजिस्ट डॉ. जयराम अय्यर तत्कालीन महापौर अशोक पिंगले की इलाज के दौरान हुई मौत के मामले में कोर्ट से बरी हो गये हैं।दो अगस्त 2008 को शहर के तत्कालीन महापौर अशोक पिंगले को सीने में दर्द की शिकायत के बाद अपोलो अस्पताल में दाखिल कराया गया था। 10 दिन बाद उनकी मौत हो गई। अभियोजन के अनुसार उनकी मौत 11 अगस्त की रात हो गई थी लेकिन इस बात को जान-बूझकर छिपा कर रखा गया और 12 अगस्त को सुबह तीन बजे उनके मौत की जानकारी दी गई।महापौर की मौत हो जाने की खबर 11 अगस्त की रात में फैल गई थी और बड़ी संख्या में उनके समर्थकों व शुभचिंतकों की भीड़ भी अपोलो अस्पताल पहुंच गई थी। उनकी मृत्यु की पुष्टि होने के बाद उत्तेजित समर्थकों ने काफी हंगामा किया और अस्पताल परिसर में तोड़फोड़ भी की। अपोलो अस्पताल के तत्कालीन प्रशासन ने उनका इलाज करने वाले डॉक्टर जयराम अय्यर को बर्खास्त कर दिया। इधर पुलिस ने डॉक्टर के खिलाफ गैरइरादतन हत्या 304 ए, साक्ष्य मिटाने की धारा 201 तथा मृत्यु की जानकारी छिपाने पर 468 आईपीसी के तहत अपराध दर्ज कर लिया।बाद में उनके परिजनों की ओर से हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर डॉ. अय्यर और पिंगले की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति मांगी गई। कोर्ट ने डॉ. अय्यर के खिलाफ धारा 201 और 304 ए को हटा दिया और धारा 468 के तहत सुनवाई के लिए निचली कोर्ट को आदेश दिया। राज्य शासन ने दो धाराओं को हटाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी, पर हाईकोर्ट का आदेश वहां बरकरार रखा गया। उनके खिलाफ साक्ष्य छिपाने व लापरवाही के कारण हत्या की धाराएं हटाकर केवल कूट रचना कर जानकारी छिपाने के अपराध में मुकदमा चलाने की अनुमति दी गई। वारंट जारी होने के बाद डॉ. अय्यर ने कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया। बाद में उन्हें जमानत मिल गई।मामले की सुनवाई मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में चली। इस मामले में सोमवार को आये फैसले में डॉ. अय्यर को दोषमुक्त कर दिया गया। कोर्ट का मानना था कि अभियोजन पक्ष की दलीलों में सबूतों का अभाव था, जिसके चलते आरोप सिद्ध नहीं होता।