देश के ६०० नामचीन वकीलों का फूटा गुस्सा, मीडिया पर लगाम लगे कोर्ट को प्रभावित करने की कोशिश का आरोप
नई दिल्ली. इन दिनों विभिन्न मामलों में न्यायपालिका पर बाहरी दबाव बढ़ता जा रहा है। कुछ प्रभावशाली लोगों और मीडिया द्वारा न्याय को प्रभावित करने की कोशिशें की जा रही हैं। ऐसे में न्यायपालिका खतरे में है। इस आशय की चिट्ठी देश के ६०० वकीलों ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को लिखी है। सोशल मीडिया पर ऐसे मीडिया को गोदी मीडिया कहा जाता है। अब वकीलों के पत्र लिखने के बाद सोशल मीडिया पर चर्चा हो रही है कि ऐसे मीडिया समूह न्यायपालिका को प्रभावित कर देश से ‘गद्दारी’ करने की कोशिश कर रहे हैं।
गौरतलब है कि देश में जल्द ही लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं। इस बीच देश के नामचीन वकीलों का गुस्सा फूट पड़ा है और उनके पत्र से ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो वे ऐसे मीडिया पर लगाम लगाने के पक्ष में हैं। वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को यह चिट्ठी लिखकर कहा है कि एक विशेष ग्रुप देश में न्यायपालिका को कमजोर करने में जुटा हुआ है। इन वकीलों ने चिट्ठी में लिखा है कि इस खास ग्रुप का काम अदालती फैसलों को प्रभावित करने के लिए दबाव डालना है, विशेष रूप से ऐसे मामलों में जिनसे या तो नेता जुड़े हुए हैं या फिर जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। चिट्ठी में कहा गया है कि इनकी गतिविधियां देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने और न्यायिक प्रक्रिया में विश्वास के लिए खतरा हैं। सीजेआई को चिट्ठी लिखने वालों में वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे के अलावा मनन कुमार मिश्रा, आदिश अग्रवाल, चेतन मित्तल, पिंकी आनंद, हितेश जैन, उज्ज्वला पवार, उदय होल्ला, स्वरूपमा चतुर्वेदी आदि शामिल हैं।
इन वकीलों का कहना है कि यह खास ग्रुप कई तरीकों से न्यायपालिका के कामकाज को प्रभावित करने की कोशिश करता है, जिनमें न्यायपालिका के तथाकथित सुनहरे युग के बारे में गलत नैरेटिव पेश करने से लेकर अदालतों की मौजूदा कार्यवाहियों पर सवाल उठाना और अदालतों में जनता के विश्वास को कम करना शामिल हैं। चिट्ठी में कहा गया है कि यह ग्रुप अपने पॉलिटिकल एजेंडे के आधार पर अदालती पैâसलों की सराहना या फिर आलोचना करता है। असल में ये ग्रुप ‘माई वे या हाईवे’ वाली थ्योरी में विश्वास करता है। साथ ही बेंच फिक्सिंग की थ्योरी भी इन्हीं की गढ़ी हुई है।
वकीलों का आरोप है कि ये अजीब है कि नेता किसी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हैं और फिर अदालत में उनका बचाव करते हैं। ऐसे में अगर अदालत का पैâसला उनके मनमाफिक नहीं आता तो वे कोर्ट के भीतर ही या फिर मीडिया के जरिए अदालत की आलोचना करना शुरू कर देते हैं। चिट्ठी में कहा गया है कि कुछ तत्व जजों को प्रभावित करने या फिर कुछ चुनिंदा मामलों में अपने पक्ष में पैâसला देने के लिए जजों पर दबाव डालने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा सोशल मीडिया पर झूठ फैलाकर किया जा रहा है।