ऑनलाइन पिज़्ज़ा ऑर्डर करना, जिंदगी पे भारी पड़ा..क्वारंटाइन में गए लोगों की कहानी सुनिए


(1) जगह-दिल्ली, इलाका- मालवीय नगर…मनीष शर्मा उन 72 लोगों में से है जिन्हें क्वॉरेंटाइन किया गया है. मनीष प्राइवेट कंपनी में जॉब करते हैं.  लॉकडाउन में सब्जी मिलने की दिक्कत थी, बच्चों के कहने पर पिज्जा बुला लिया, बस… वही सबसे बड़ी गलती थी.

पिज़्ज़ा डिलीवरी बाय कोरोना पॉजिटिव था। पिज़्ज़ा जिंदगी पर भारी पड़ गया। मनीष शर्मा कहते हैं कि हमें क्वॉरेंटाइन किया गया है जोकि प्रोसीजर और एहतियात के हिसाब से सही है लेकिन समाज के लोगों ने अब हमें अनटचेबल बना दिया। बालकनी में निकल जाओ तो कुछ लोगों को दिक्कत होने लगती है।

मैं घर का कूड़ा बाहर डालने नीचे गया तो बवाल हो गया , कुछ देर में पुलिस आ गई ,किसी ने फोन कर दिया था, पुलिस कहने लगी कि आपके बाहर घूमने का वीडियो है पर वीडियो था नहीं। हम क्वॉरेंटाइन में हैं तो कूड़ा निस्तारण कैसे करें? जिस समय क्वॉरेंटाइन किया जा रहा था उस समय हमें हिदायत दी थी कि दूर दूर से घर के सभी काम कर सकते हैं घर से बाहर नहीं घूमना है। मैं ऐसा ही कर रहा था।

मेरे घर की फोटो व्हाट्स अप पर वायरल हो गई,लोग मैसेज करने लगे, फोन करने लगे, फोन पर कोरोना के बारे में तरह-तरह की स्टोरी बताने लगे जिससे मन में डर जैसा बैठ गया, सबसे बड़ी बात लोगों का नज़रिया बदल गया, विश्वास नहीं होता कि ये वही लोग हैं जो कुछ समय पहले मुझ से बहुत अच्छे से बात करते थे।

मुझे या परिवार में किसी को सींम्प्टंस नहीं दिखाई दिए,अभी टेस्ट भी नहीं हुआ है, तब भी ऐसा लग रहा है जैसे पूरी दुनिया से अलग हो गए हैं। विश्वास पूरी तरह हिल चुका है. Zomato कंपनी ने पिज़्ज़ा डिलीवरी ब्वॉय भेजा उसको यह तस्दीक करनी थी कि वह बीमार ना हो. उसने भी इसको छुपाया. उसको तो जेल में डाल देना चाहिए। बिटिया मानसी और बेटे कुणाल के मन पर भी बुरा असर पड़ा है। वो भी दहशत में है, आने वाले समय में कुछ समय तक ऑनलाइन आर्डर नहीं करुंगा,खुद खरीदने जाऊंगा. मुझे नहीं मालूम कब तक मैं ऐसा करूंगा। पुलिस का चक्कर न हो इसलिए कूड़ा फेंकने का रास्ता निकाल लिया है मुझे कहा गया है कि एक रस्सी में बाल्टी लगा लो और उसमें कूड़ा रखकर थर्ड फ्लोर से नीचे दे दिया करो. पर कूड़े का निदान हमने कहीं और कर लिया, रस्सी का इस्तेमाल हम सब्जी लेने के लिए करने लगे। सबसे बस ये कहना है कि हमें तिरस्कार नहीं आपका सपोर्ट चाहिए.

(2) जगह- भोपाल, इलाका- आकृति इको सिटी…. अभिषेक जैन खुद डॉक्टर हैं , दूसरे डॉक्टरों के संपर्क में आए थे, डॉक्टर पॉजिटिव थे, यह बाद में पता लगा। उनको भी क्वॉरेंटाइन कर दिया। अभिषेक कहते हैं कि क्वॉरेंटाइन के बाद जिंदगी जेल जैसी हो गई। लोगों ने फोन‌ पर ,व्हाट्स ऐप पर बुरा बुरा बोलना शुरु कर दिया । यकीन नहीं होता कि ये वही लोग थे जिन्होंने डॉक्टर्स के सम्मान में थालियां बजाई थी। क्वॉरेंटाइन में एक रूम में ही बंद होना था, खाना कमरे के बाहर रख दिया जाता था। कमरे की बालकनी में जाने पर भी लोग घूरने लगते थे।

व्हाट्सऐप ग्रुप में देखा कोई रेसिडेंट अकेले भी सोसाइटी में नीचे किसी काम से दिखाई दिया तो उसकी फोटो खींच कर ग्रुप में डाल रहे थे। आपस में भी लड़ रहे कि तुम दिख कैसे गई। मैं कमरे से बाहर बिल्कुल नहीं निकला। जो मैसेज आ रहे थे उसमें ,लोग ढांढस नहीं बांध रहे थे बल्कि जख्म कुरेदने जैसी हरकत कर रहे थे,कहते कि जाने की ज़रूरत क्या थी,सबको खतरे में डाल दिया, मैंने कहा मैं डॉक्टर हूं मुझे तो जाना ही पड़ेगा। सोचो अगर मैं डॉक्टर नहीं होता तो ये लोग क्या क्या आरोप लगाते।

फिर मेरा कोरोना टेस्ट हुआ, 36 घंटे में रिपोर्ट आई ,वो 36 घंटे सबसे भारी थे ,दिमाग पूरा हिला हिला लग रहा था ,इस समय मुझे मेंटल सपोर्ट की ज़रूरत थी , वाइफ से जितना मिलना था उतना सपोर्ट मिला , लेकिन आस पास के लोगों से निराशा मिली। रिपोर्ट आई मैं नेगेटिव निकला, मुझसे ज्यादा खुशी सोसायटी के लोगों को हुई। ऐसा लगा जैसे कि लोगों को मेरी रिपोर्ट का मुझसे ज्यादा इंतजार था।सोचिए अगर रिपोर्ट पॉजिटिव आती तो यह लोग मेरे परिवार का जीना हराम कर देते इतना तो तय दिख रहा था। सोचता हूं लोगों को बदलना चाहिए विपरीत परिस्थिति संकट के समय सहायता करनी चाहिए , वह समाज कहीं खो गया है।

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