सरकार बदलने के बाद भी नहीं कराई गई चिल्हाटी व मोपका में हुए जमीन घोटालों की जांच
बिलासपुर/अनिश गंधर्व. शहर से लगे ग्राम मोपका व चिल्हाटी के ग्रामीण आज भी झूठी आश लेकर शासन प्रशासन का मुंह ताक रहे हैं। इन ग्रामीणों का कहना है कि सरकारी जमीनों की रख रखाव के लिये राजस्व विभाग की स्थापना की गई है लेकिन राजस्व विभाग के अधिकारी ही अगर बे-ईमान हो गये है तो जनमत से सरकार में बैठे लोग ही न्याय दिला पायेंगे? इसके बाद भी ग्रामीणों को निराशा ही हाथ लगी। अब तो शायद भगवान भी जमीन पर उतर आये तो भी मोपका और चिल्हाटी के ग्रामीणों को न्याय मिलने वाला नहीं है। राज्य में लगातार 15 वर्षों तक रमन सिंह की भाजपा सरकार बनी रही, किसी की कोई सुनने वाला नहीं था, इस दौरान राजस्व विभाग के अधिकारी कर्मचारी जमीन दलालों की गोद में बैठकर सरकारी व तालाब मद की जमीनों को फर्जी तरीके से बेचते रहे। बड़ी मुश्किल से 15 वर्षों बाद राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी तो लोगों को लगा कि सरकारी जमीनों में हुए महाघोटालों की जांच होगी और दोषी अधिकारी कर्मचारी सलाखों में होंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बल्कि सरकारी जमीनों में घोटाला बढऩे लगा और घोटालेबाज अधिकारियों को पदोन्नत किया जाने लगा है।
वर्ष 2017 से 2019 तक जिला प्रशासन को अवगत कराया जाता रहा है कि चिल्हाटी के खसरा नंबर 224 की 17 एकड़ डबरी को राजस्व विभाग के अधिकारी जमीनों दलालों को बेच रहे हैं। शिकायतकर्ताओं ने आरोप लगाते हुए कहा था कि तत्कालीन पटवारी व तहसीलदार खसरा नंबर 224 की डबरी को बेचने के लिए कूट रचना कर 224/1 और 224/380 दर्शाकर बिना भौतिक सत्यापन के फर्जी दावेदारों के नाम चढ़ा कर नामांतरण और रजिस्ट्री करा रहे हैं। किंतु तहसीलदार और पटवारी पर एक आंच तक नहीं पहुंची। इसी तरह मोपका में खसरा नंबर 845 की 15 एकड़ सरकारी जमीन को कूट रचना कर भू-माफियाओं के हाथों बेच दिया गया। इन दोनों बेशकीमती जमीनों की कीमत 50 करोड़ से ज्यादा है। अब सवाल यह उठता है कि भाजपा शासनकाल में हुए इस महाघोटाले की जांच अगर मौजूदा कांग्रेस की सरकार नहीं कराएगी तो भला कौन करेगा? वर्ततान में भाजपा व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अब एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं, कांग्रेसियों का कहना है कि भाजपा शासन काल में सरकारी जमीनों की जमकर बंदरबांट हुई। इधर भाजपा नेताओं ने कहा है कि कांग्रेस के राज में जमीनें चलने व उडऩे लगी है। भाजपा शासनकाल में जिन अधिकारियों ने सरकारी और तालाब मद की जमीनों में हेराफेरी की उन अधिकारियों को कांग्रेस शासनकाल में पदोन्नत किया जा रहा है।
आंख मूंद कर दी गई अनुमति
खसरा नंबर 224 जो कि तालाब और बंधिया के नाम पर भूअभिलेख निस्तार पत्रक में दर्ज है तो फिर किसी के भी पक्ष में नामंत्रण का आदेश देते समय तहसीलदार ने मौजा चिल्हाटी हल्का न 19/29 में स्थित, संबंधित खसरा नंबर में उपस्थित 17 एकड़ लगभग तालाब की भूमि के संबंध में विचार क्यों नहीं किया गया ये अपने आप में एक बड़ा सवाल है। तत्कालीन पटवारी एवं तहसीलदार ने ऐसे किसी दस्तावेज की जांच किए बिना ही सीधे-सीधे भू माफियाओं के पक्ष में निर्णय दे दिया और कभी भी उन्होंने चिल्हाटी के वाजिब उल अर्ज में दर्ज तालाब और बधिया को ढूंढने की ना तो कोशिश की और ना ही कभी बचाने की कोशिश की आज उस क्षेत्र की सभी भूमि भू माफियाओं को भेज दी गई है।
छला जा रहा है छत्तीसगढिय़ा
भाजपा शासनकाल में हुए महाघोटालों को दबाने कांगे्रसी ताबूत में आखरी कील ठोकने का काम कर रहे हैं। गुण्डागर्दी, खाली जमीन हमारी है का नारा पूरे प्रदेश में चल रहा है, सरकारी जमीनों पर कब्जा करने की होड़ मची हुई है। ऐसे में एक आम छत्तीसगढिय़ा शासन प्रशासन की करतूत को देख देख कर अपनी आंख मंूद लेना बेहतर समझने लगा है। अन्य राज्यों से आकर छत्तीसगढ़ में बसने वालों का हौसला इतना बुलंद हो गया है कि राजनीतिक पाटियों में उन्हें पदाधिकारी रूतबा दिया जा रहा है और सरकारी जमीनों में हेरफेरी करने की जिम्मेदारी सौंपी जा रही है। छत्तीसगढिय़ा पहले भी छला गया और आज भी छला जा रहा है। राज्य की खजाने की चाबी भले छत्तीसगढिय़ा नेता के हाथों में है लेकिन सारा माल गैर छत्तीसगढिय़ा को ही परोसा जा रहा है।