September 28, 2024

अग्रसेन जयंती – महाराजा श्री अग्रसेन त्याग, करुणा, अहिंसा, शांति, समृद्धि और सच्चे समाजवाद के एक अवतार थे : योग गुरु

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि   महान भारतीय महाराजा श्री अग्रसेन जी की जयन्ती हर साल हिन्दू पंचांग के आश्विन माह के शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा अर्थात नवरात्रि के पहले दिन मनाई जाती है। जिनकी जयन्ती मनाकर लोग उनके आर्दशों से प्रेरणा प्राप्त करते हैं।
योग गुरु अग्रवाल ने बताया अग्रसेन जयंती के दिन सभी अग्रवाल मिलकर श्रद्धा पूर्वक अनेक धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन करते हैं। अग्रसेन जयंती का शुभारंभ महाराजा श्री अग्रसेन के छाया चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित करके किया जाता है। इसके बाद ध्वजारोहण, पुष्पांजलि, महालक्ष्मी का पूजन तथा हवन का आयोजन किया जाता है। कही कही पर कलश यात्रा भी निकालते हैं। महाराजा अग्रसेन जी की शोभा यात्रा एवम भव्य झाकियाँ भी निकाली जाती हैं। अनेकों सामाजिक कार्यक्रमों जैसे भंडारा, स्वास्थ्य शिविर, रक्तदान शिविर इत्यादि का आयोजन किया जाता है। परीक्षा में सफल मेधावी छात्र छात्राओं को शिक्षा क्षेत्र में प्रोत्साहन करने के लिए सम्मानित किया जाता है। दिन में खेल कूद तथा शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रमों भजन, कीर्तन, नाटक, नाच, गायन प्रतियोगिताओं की प्रस्तुति भी की जाती हैं।

एक ईंट एक रुपये की रीति :  श्री अग्रसेन को समाजवाद का अग्रदूत कहा जाता है। अपने क्षेत्र में सच्चे समाजवाद की स्थापना हेतु उन्होंने नियम बनाया कि उनके नगर में बाहर से आकर बसने वाले व्यक्ति की सहायता के लिए नगर का प्रत्येक निवासी उसे एक रुपया व एक ईंट देगा, जिससे आगंतुक के लिए आसानी से निवास स्थान व व्यापार का प्रबंध हो जाए। महाराजा अग्रसेन ने तंत्रीय शासन प्रणाली के प्रतिकार में एक नयी व्यवस्था को जन्म दिया, उन्होंने पुनः वैदिक सनातन आर्य संस्कृति की मूल मान्यताओं को लागू कर राज्य के पुनर्गठन में कृषि, व्यापार, गौपालन के विकास के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की पुनः प्रतिष्ठा का बीड़ा उठाया। महाराजा अग्रसेन के राजकाल में अग्रोहा ने दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की की। कहते हैं कि इस की चरम स्मृद्धि के समय वहां लाखों व्यापारी रहा करते थे। उन्होंने समानता के लिए सरल और व्यावहारिक सिद्धांतों को अपनाया था, ताकि लोगों के बीच प्रेम और स्नेह बना रहे। उनके एक रुपया व एक ईंट रीती के कारण नए आने वाले परिवार और राज्य के अन्य परिवार की स्थिति बराबर हो जाती थी। इसलिए उनके शासन में कोई बेरोजगार नहीं था, हर कोई अपने मकान में रहता था। समाजवाद का इससे बेहतर और व्यावहारिक उदाहरण और क्या हो सकता है? लेने और देने की यह प्रथा उनके राज्य में प्रमुख और व्यावहारिक बन गयी, न तो लेने वाला शर्मिंदा महसूस करता और नहीं दानी गर्व महसूस करता।

महाराजा अग्रसेन ने एक ओर हिन्दू धर्मग्रंथों में वैश्य वर्ण के लिए निर्देशित कर्मक्षेत्र को स्वीकार किया और दूसरी ओर देशकाल के परिप्रेक्ष्य में नए आदर्श स्थापित किए। उनके जीवन के मूल रूप से 3 आदर्श हैं-लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था, आर्थिक समरूपता एवं सामाजिक समानता महाराजा अग्रसेन जी के 5175 साल पुराने सिद्धांतो पर ही आधारित, समानता, समाजवाद और अहिंसा के विचार भारत के वर्तमान संविधान में प्रतिपादित किए गए हैं। लेकिन, हम भारतीय अपने जीवन में इन आदर्शों का पालन करने में सक्षम नहीं हुए, ये शब्द सिर्फ हमारे संविधान में ही सीमित रह गए हैं। अब हमारे जनक को एक श्रद्धांजलि के रूप में इन आदर्शों को अपने जीवन में अपनाने के लिए निहित होना चाहिए। महाराजा श्री अग्रसेन जी ने अग्रवालों के लिए नीचे दिए अनुसार 20 सिद्धांतों का पालन करना निर्धारित किया हैं: कृषि, व्यापार और गौपालन में शामिल रहें, गोमाता और अन्य जानवरों की रक्षा करें, व्यवसाय और व्यापार के माध्यम से बड़े पैमाने पर देश की भलाई करें, दान, योगदान करें और कुलदेवी लक्ष्मीजी की आराधना करें, अहिंसा का पालन करें, जरूरत मंद और असहाय की सेवा करें, धर्म में आस्था रखें और वेदों का अनुसरण करें, शाकाहारी जीवन शैली अपनाएं, भारतीय पारंपरिक कपड़े, दृष्टिकोण और व्यवहार अपनाएं, बुरी आदतें और बुरे गुणों को त्याग दें, गरीब नागरिकों के लिए धन का दान दें, ज्ञान की सर्वोच्चता को स्वीकार करें, अतिथियों का सम्मान करें, सनातन हिन्दू धर्म और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की गरिमा को बनाए रखें, रक्त शुद्धता बनाए रखने के लिए अपना गोत्र छोड़कर वैवाहिक संबंध बनाए, अर्जित आय से भविष्य के लिए एक चौथाई हिस्से को बचा कर रखें, साधारण जीवन स्तर और ईमानदारी को बनाए रखें, विनम्र रहें और अनावश्यक रूप से बात न करें, साहस और दृढ़ संकल्प रखें, सामाजिक संगठनों के द्वारा लागू किए गए नियमों का पालन करें
भारतीय इतिहास में ऐसे बहुत कम सम्राट हुए हैं, जिन्हें किसी नए वंश-प्रवर्तक का श्रेय मिला हो। महाराजा अग्रसेन ऐसे ही अहोभागी सम्राट थे। श्री अग्रसेन ने कलियुग सम्वत के 108 वर्ष तक राज्य किया। *अग्रवाल वैश्य समाज का राष्ट्र रक्षा में योगदान* :जिस समाज की नींव समाजवाद के प्रवर्तक एवं राष्ट्र पुरुष महाराजा श्री अग्रसेन जी द्वारा रखी गई हो वह समाज राष्ट्र निर्माण के कार्य में भला पीछे कैसे रह सकता है। अग्रवाल समाज के लोगों ने अपने पितामह के पदचिन्हों पर चलते हुए राष्ट्र निर्माण के हर क्षेत्र में विशिष्ट भूमिका अदा की।  अग्रवाल समाज ने अपनी मातृ भूमि भारत वर्ष को अनेक नवरत्न दिए हैं।
प्रबंधन को समाज से जोड़ने वाले अग्रसेन :  इतिहास में कुछ राजा ऐसे हुए हैं, जिनकी राजनीति में दूरदर्शिता, सदभाव और धर्मप्रेम कूट-कूटकर भरा था। इसीलिए उनकी परिपक्व व पवित्र राजनीति-कूटनीति आज तक याद की जाती है। ऐसे ही एक राजा थे श्री अग्रसेन । दुनियाभर में फैले अग्रवाल समाज का भारत की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान रहा है। इसका एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो नहीं जानता कि वैश्य होने से पहले वे क्षत्रिय थे। वैश्य का मतलब है हानि-लाभ को ध्यान में रखकर व्यापार करना। क्षत्रिय का मतलब है सत्य की रक्षा, धर्म के लिए पराक्रम करना। महाराजा अग्रसेन श्रीराम के वंश में हुए और एक मानवीय घटना के  कारण क्षत्रिय से वैश्य बन गए। कई लोगों  को भ्रम है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और  शूद्र केवल वर्ण है। जबकि ये मनुष्यों की स्थितियां हैं। 24 घंटे में हम ब्राह्मण की  तरह पूजा-पाठ, क्षत्रिय की तरह पराक्रम,  वैश्य की तरह व्यापार और शूद्र की तरह  सेवा कर लेते हैं। महाराजा अग्रसेन के  चरित्र में यह स्पष्ट दिखता है। वे केवल  अग्रवाल समाज के पितृपुरुष हों ऐसा नहीं  है। संसार में प्रबंधन को परिवार, व्यवसाय  तथा समाज से जोड़ने का पहला प्रयोग उन्होंने ही किया। इसीलिए आज मैनेजमेंट के युग में अग्रसेनजी का व्यक्तित्व बहुत बड़े अध्ययन का विषय है।

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