गांधी के जन्म दिवस के ठीक अगले दिन लखीमपुर खीरी में विरोध प्रदर्शन करके वापस लौट रहे किसानों को गाड़ियों से रौंदने का, निर्ममता के फ़िल्मी दृश्यों को भी पीछे छोड़ देने का, जो कांड घटा है, वह एक लम्पट अपराधी से अमित शाह का दो नंबर बने गृहराज्य मंत्री के बिगड़ैल बेटे का कारनामा
दुनिया भर में वंश चलाने के लिए वारिस गोद लेने का रिवाज है। जो संतानहीन होते हैं या स्वयं की संतान को जन्मने के झंझट से बचना चाहते हैं, वे वारिस को गोद ले लेते हैं। मगर ब्रह्माण्ड की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा और उसका मातृ-पितृ संगठन, दुनिया का सबसे बड़ा “स्वयं-सेवा-भावी” आरएसएस सबसे अलग
एक किसी भी व्यक्ति या विचार का मूल्यांकन करने का सही तरीका उसे उसके देश-काल में – टाइम एंड स्पेस में – बांधकर समझना है। गांधी को समझना है, तो उन्हें भी उस समय की परिस्थितियों के साथ जोड़कर देखना होगा। गांधी की एक मुश्किल यह है कि उन्हें समग्रता में ही समझा जा सकता
चारण और भाटों ने कसीदे काढ़े, नई-नई उपमा और विशेषण गढ़े, “आसमां पै है खुदा (नहीं-नहीं, ईश्वर) और जमीं पै ये”– मार्का प्रचार के तूमार खड़े करने के लिए पूरी अक्षौहिणी सेना झोंक दी, कर्ज में डूबे, दिवालिया होने की कगार पर पहुंचे सरकारी खजाने को खोलकर दरबारियों में खैरात, ईनाम- इकराम और जागीरें बँटी,
अखिल भारतीय किसान सभा देश का सबसे बड़ा किसान संगठन है तथा पिछले तीन दशकों में पूरे देश में किसान आंदोलन के विस्तार में उसका अभूतपूर्व योगदान है। डॉ. अशोक ढवले किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा आज वे संयुक्त किसान मोर्चा के प्रमुख चेहरों में गिने जाते हैं। भारत के किसानों को सशक्त
मध्यप्रदेश में एमबीबीएस के छात्रों को अब आरएसएस संस्थापक हेडगेवार और जनसंघ के संस्थापक नेता पं. दीनदयाल उपाध्याय के विचार पढाए जाएंगे। चिकित्सा शिक्षामंत्री ने इस घोषणा के लिए तारीख सरकारी शिक्षक दिवस – 5 सितम्बर – की चुनी। बकौल उनके ये विचार एमबीबीएस के फाउंडेशन कोर्स में मेडिकल एथिक्स – नैतिक शिक्षा – के
5 सितम्बर के मुज़फ्फरनगर के इतवार की खासियतें इस बार कारपोरेट गोदी मीडिया के एक हिस्से को भी दर्ज करनी पड़ी। लगभग हरेक ने माना कि पिछली 25 वर्षों में — जबसे इस इलाके में किसानों के बड़े-बड़े जमावड़ों की शुरुआत हुयी है — यह सबसे बड़ी रैली थी। संयुक्त किसान मोर्चे ने ठीक ही
आरएसएस और भाजपा की दीदादिलेरी काबिलेगौर है। वे जितनी फटाफट द्रुत गति से अपने मुखौटे उतार रहे हैं, उससे जिन्हे अब भी यह भ्रम था कि पहले तोहमतें लगाकर बदनाम करना, उसके बाद नफरतें उभारना और आखिर में मॉब-लिंचिंग कर निबटा देने का काम सिर्फ किसी ख़ास धार्मिक समुदाय या वर्ण या महिलाओं के लिए
अपने 20 साल के नाजायज और सर्वनाशी कब्जे के दौरान अफ़ग़ानिस्तान से लोकतान्त्रिक संगठनों, आंदोलनों और समझदार व्यक्तियों का पूरी तरह सफाया करने के बाद अमरीकी उसे तालिबानों के लिए हमवार बनाकर, उन्हें इस खुले जेलखाने की चाबी थमाकर चले गए हैं। जाते-जाते इन्हें सिर्फ अपना असला बारूद, अरबों डॉलर और हवाई बेड़ा ही सौंप
बीस साल तक सौ जूते और सौ प्याज खाकर, खिलाकर सब कुछ तबाह और खंड-खंड करके अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका वापस चला ही गया। संयुक्त राज्य अमेरिका नाम के देश की सचमुच की खासियत यह है कि जो भी उसके साथ गया या जिसके भी वो पास गया, वह कहीं का नहीं रहा। न तंत्र बचा
26 अगस्त को नौ महीने पूरे करने वाले किसान आंदोलन ने भाजपा के ब्रह्मास्त्र आईटी सैल और पाले-पोसे कारपोरेट मीडिया के जरिये किये जाने वाले दुष्प्रचार और उसके जरिये उगाई जाने वाली नफरती भक्तों की खरपतवार की जड़ों में भी, काफी हद तक, मट्ठा डाला है। भारतीय जनता पार्टी और उसके रिमोट के कंट्रोलधारी आरएसएस
दिल्ली के चारों तरफ सीमाओं पर किसान पिछले नौ महीनों से बैठे है और किसान विरोधी तीन काले कानूनों का विरोध कर रहे हैं। हाल फ़िलहाल में किसानो द्वारा कई बड़ी राष्ट्रव्यापी कार्यवाहियां हुई हैं, जिनमें हज़ारों किसानों ने भागेदारी की है। किसानों द्वारा इस दौरान महत्वपूर्ण दिवसों को भी मनाया गया। 26 मई की
26 अगस्त को किसान आंदोलन के 9 महीने पूरे हो जाएंगे । इस किसान आंदोलन की ऐतिहासिकता और विशेषताओं के बारे में काफी कुछ लिखा जा चुका है, लिखा जाएगा। इसमें इसके विरोधियों को भी कोई संदेह नहीं है कि यह आंदोलन मानव जाति के संघर्षों की सूची में प्रमुखता के साथ दर्ज होगा। अनेक
26 अगस्त को नौ महीने पूरे कर रहे किसान आंदोलन को किसी परिचय या भूमिका की आवश्यकता नहीं है। यहां सीधे इसकी कुछ विशेषताओं पर आते हैं। इस असाधारण किसान आन्दोलन की इन सबसे भी कहीं ज्यादा बुनियादी और दूरगामी छाप छोड़ने वाली विशेषतायें पाँच हैं। पहली है : इस लड़ाई का नीतिगत सवालों पर
महात्मा गांधी का मानना था की विकास की धारा जब समाज के सबसे कमजोर व निचले वर्ग के उत्थान से प्रवाहित होगी तभी वह कल्याणकारी समृद्धकारी व स्थाई रूप से सफल होगी। आज भूपेश बघेल इन्हीं आदर्शों को मापदंड मानकर जनकल्याण को निकल पड़े हैं। उनकी हर नीति व गतिविधि में गांव गरीब किसान महिला
जो आपदा में कमाई और लूट के अवसर ढूंढ सकते हैं, अकाल मौतों को छुपाने में राहत महसूस कर सकते हैं, बर्बादी और विनाश में आल्हाद देख सकते हैं, वे भला उत्सव और समारोहों के मौकों को भी त्रासद और विभाजन का जरिया बनाने से क्यों बाज आने लगे!! ठीक यही काम, अपने नाम ‘डिवाइडर
“मोदी के न्यू इंडिया का मकसद आजादी के बाद भविष्य के उजाले की तलाश में लगे भारत को भूतकाल के अँधेरे में ले जाना है। आज की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि संवैधानिक व्यवस्था को ध्वस्त करने की आरएसएस और भाजपा की साजिशों से देश को किस तरह बचाया जाए।” यह बात शैलेन्द्र शैली
सर्वप्रथम मैं हुलेश्वर जोशी समस्त भारतीय नागरिकों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई देता हूँ। जैसा कि आपको ज्ञात है, कि आज 15 अगस्त 2021 को हम भारतीय नागरिक 75वीं स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। संभव है आपने उन लाखों वीर शहीद स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के योगदान को भी नहीं भूला होगा जिन्होनें आपकी आजादी
“मौजूदा निज़ाम अपनी नीतियों से सिर्फ अवाम की मुश्किलें ही नहीं बढ़ा रहा है, वह स्वतन्त्रता आंदोलन की ढांचागत, राजनैतिक और वैचारिक – हर तरह की उपलब्धियों को भी पलट रहा है।” शैलेन्द्र शैली स्मृति व्याख्यान माला — 2021 में “उदारीकरण के 30 साल और भारतीय युवा” विषय पर बोलते हुए एसएफआई के पूर्व महासचिव
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की पूर्व सांसद, अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की उपाध्यक्षा तथा नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आज़ाद हिन्द फौज की कैप्टेन लक्ष्मी सहगल की सुपुत्री सुभाषिणी अली ने नफ़रत फैलाने की योजनाबद्ध मुहिम के पीछे छुपी साजिश को बेनकाब करते हुए उसकी असली राजनीति को उजागर किया। उन्होंने कई अनुभव गिनाते हुए कहा