आरएसएस और भाजपा की दीदादिलेरी काबिलेगौर है। वे जितनी फटाफट द्रुत गति से अपने मुखौटे उतार रहे हैं, उससे जिन्हे अब भी यह भ्रम था कि पहले तोहमतें लगाकर बदनाम करना, उसके बाद नफरतें उभारना और आखिर में मॉब-लिंचिंग कर निबटा देने का काम सिर्फ किसी ख़ास धार्मिक समुदाय या वर्ण या महिलाओं के लिए
अपने 20 साल के नाजायज और सर्वनाशी कब्जे के दौरान अफ़ग़ानिस्तान से लोकतान्त्रिक संगठनों, आंदोलनों और समझदार व्यक्तियों का पूरी तरह सफाया करने के बाद अमरीकी उसे तालिबानों के लिए हमवार बनाकर, उन्हें इस खुले जेलखाने की चाबी थमाकर चले गए हैं। जाते-जाते इन्हें सिर्फ अपना असला बारूद, अरबों डॉलर और हवाई बेड़ा ही सौंप
बीस साल तक सौ जूते और सौ प्याज खाकर, खिलाकर सब कुछ तबाह और खंड-खंड करके अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका वापस चला ही गया। संयुक्त राज्य अमेरिका नाम के देश की सचमुच की खासियत यह है कि जो भी उसके साथ गया या जिसके भी वो पास गया, वह कहीं का नहीं रहा। न तंत्र बचा
26 अगस्त को नौ महीने पूरे करने वाले किसान आंदोलन ने भाजपा के ब्रह्मास्त्र आईटी सैल और पाले-पोसे कारपोरेट मीडिया के जरिये किये जाने वाले दुष्प्रचार और उसके जरिये उगाई जाने वाली नफरती भक्तों की खरपतवार की जड़ों में भी, काफी हद तक, मट्ठा डाला है। भारतीय जनता पार्टी और उसके रिमोट के कंट्रोलधारी आरएसएस
दिल्ली के चारों तरफ सीमाओं पर किसान पिछले नौ महीनों से बैठे है और किसान विरोधी तीन काले कानूनों का विरोध कर रहे हैं। हाल फ़िलहाल में किसानो द्वारा कई बड़ी राष्ट्रव्यापी कार्यवाहियां हुई हैं, जिनमें हज़ारों किसानों ने भागेदारी की है। किसानों द्वारा इस दौरान महत्वपूर्ण दिवसों को भी मनाया गया। 26 मई की
26 अगस्त को किसान आंदोलन के 9 महीने पूरे हो जाएंगे । इस किसान आंदोलन की ऐतिहासिकता और विशेषताओं के बारे में काफी कुछ लिखा जा चुका है, लिखा जाएगा। इसमें इसके विरोधियों को भी कोई संदेह नहीं है कि यह आंदोलन मानव जाति के संघर्षों की सूची में प्रमुखता के साथ दर्ज होगा। अनेक
26 अगस्त को नौ महीने पूरे कर रहे किसान आंदोलन को किसी परिचय या भूमिका की आवश्यकता नहीं है। यहां सीधे इसकी कुछ विशेषताओं पर आते हैं। इस असाधारण किसान आन्दोलन की इन सबसे भी कहीं ज्यादा बुनियादी और दूरगामी छाप छोड़ने वाली विशेषतायें पाँच हैं। पहली है : इस लड़ाई का नीतिगत सवालों पर
महात्मा गांधी का मानना था की विकास की धारा जब समाज के सबसे कमजोर व निचले वर्ग के उत्थान से प्रवाहित होगी तभी वह कल्याणकारी समृद्धकारी व स्थाई रूप से सफल होगी। आज भूपेश बघेल इन्हीं आदर्शों को मापदंड मानकर जनकल्याण को निकल पड़े हैं। उनकी हर नीति व गतिविधि में गांव गरीब किसान महिला
जो आपदा में कमाई और लूट के अवसर ढूंढ सकते हैं, अकाल मौतों को छुपाने में राहत महसूस कर सकते हैं, बर्बादी और विनाश में आल्हाद देख सकते हैं, वे भला उत्सव और समारोहों के मौकों को भी त्रासद और विभाजन का जरिया बनाने से क्यों बाज आने लगे!! ठीक यही काम, अपने नाम ‘डिवाइडर
“मोदी के न्यू इंडिया का मकसद आजादी के बाद भविष्य के उजाले की तलाश में लगे भारत को भूतकाल के अँधेरे में ले जाना है। आज की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि संवैधानिक व्यवस्था को ध्वस्त करने की आरएसएस और भाजपा की साजिशों से देश को किस तरह बचाया जाए।” यह बात शैलेन्द्र शैली
सर्वप्रथम मैं हुलेश्वर जोशी समस्त भारतीय नागरिकों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई देता हूँ। जैसा कि आपको ज्ञात है, कि आज 15 अगस्त 2021 को हम भारतीय नागरिक 75वीं स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। संभव है आपने उन लाखों वीर शहीद स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के योगदान को भी नहीं भूला होगा जिन्होनें आपकी आजादी
“मौजूदा निज़ाम अपनी नीतियों से सिर्फ अवाम की मुश्किलें ही नहीं बढ़ा रहा है, वह स्वतन्त्रता आंदोलन की ढांचागत, राजनैतिक और वैचारिक – हर तरह की उपलब्धियों को भी पलट रहा है।” शैलेन्द्र शैली स्मृति व्याख्यान माला — 2021 में “उदारीकरण के 30 साल और भारतीय युवा” विषय पर बोलते हुए एसएफआई के पूर्व महासचिव
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की पूर्व सांसद, अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की उपाध्यक्षा तथा नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आज़ाद हिन्द फौज की कैप्टेन लक्ष्मी सहगल की सुपुत्री सुभाषिणी अली ने नफ़रत फैलाने की योजनाबद्ध मुहिम के पीछे छुपी साजिश को बेनकाब करते हुए उसकी असली राजनीति को उजागर किया। उन्होंने कई अनुभव गिनाते हुए कहा
आदरांजलि देने का काम सिर्फ शब्दों से नहीं किया जाता। सच्ची आदरांजलि उस रास्ते पर चलकर दी जाती है, जिसे दिखाकर शैली हमारे बीच से गए हैं। यह रास्ता कैसे भी हालात हों, उनमे संघर्ष तेज करने, उसे आगे बढ़ाने और उसके आधार पर वामपंथी विकल्प तैयार करने तथा उसके अनुरूप संगठन बनाने का है।
शैलेन्द्र शैली स्मृति व्याख्यान-2021 में देश के सिद्ध और दुनिया के प्रसिद्ध पत्रकार पी साईनाथ ने “लुप्त होती पत्रकारिता और छीजता मीडिया” विषय पर दर्शकों-श्रोताओं को अपनी अनोखी सूचनाओं और असाधारण विश्लेषण से अवगत कराया। ‘लोकजतन’ द्वारा अपने संस्थापक सम्पादक की स्मृति में पखवाड़े भर तक चलाई जाने वाले व्याख्यानमाला में छात्र आंदोलन में शैली
प्रख्यात आलोचक वीरेंद्र यादव ने कहा कि आज देश के जो हालात हैं, उसमें तमाम वर्ग समाज को बचाने के लिए मोर्चे पर हैं। एक साहित्यकार और जनबुद्धिजीवी बतौर संविधान और जनतंत्र को बचाने के लिए हमें हस्तक्षेपकारी भूमिका निभानी होगी, जैसी कि प्रेमचंद ने निभायी थी। आजादी के आंदोलन के दौर में एक वक्त
यदि आपका बच्चा इंग्लिश मीडियम स्कूल में अध्ययनरत है और आप हिन्दी माध्यम से कम पढ़े लिखे व्यक्ति हैं; इसका तात्पर्य ये कि आपके बच्चे की बेसिक स्कूलिंग/ लर्निंग में पिछड़ने की लगभग गारंटी है। इन समस्याओं के निराकरण पर आधारित इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें। आपसे अनुरोध है कि इसे अन्य पालकों
शैलेन्द्र शैली स्मृति व्याख्यान-2021 में बोलते हुए अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की महासचिव मरियम ढवले ने उदारीकरण के दौर में आमतौर से और मोदी राज में खासतौर से महिलाओं की स्थिति भयावह रूप से खराब होने की बात कही। उन्होंने कहा कि कोरोना का बहाना लेकर जो पहलकदमी सरकार कर रही है, वह महिलाओं
“सर्कस के शेर, हाथी, कुत्ते और अन्य जानवर सर्कस में अधिकतर एक्ट बेहतर कर सकते हैं। यदि अन्य स्वजातीय जानवरों के साथ इनकी एक मानक टेस्ट या परीक्षा ली जाये तो सर्कस के ये जानवर अन्य जानवरों से अच्छे या कहें तो अधिक अंक लाएंगे। ख्याल रखना इन नम्बर्स के आधार पर आप इन सर्कस
“भारत के स्वतन्त्रता आंदोलन, उसके हासिल संविधान और सारी मुश्किलों को झेल कर भारत को अपना वतन चुनने वाले जम्मू कश्मीर के अवाम को अपमानित करके 5 अगस्त 2019 को कश्मीर से राज्य का दर्जा छीनकर उसे तीन टुकड़ों में बांटने वाली केंद्र सरकार को अपने आचरण पर शर्म करनी चाहिए और देश की जनता