Category: संपादकीय

मोदी मतलब मर्डर ऑफ डेमोक्रेटिक इंडिया, कार्पोरेटी हिंदुत्व लोकतांत्रिक भारत की हत्या कर रहा है : संजय पराते

“कार्पोरेटी हिंदुत्व लोकतांत्रिक भारत की हत्या कर रहा है। संवैधानिक मूल्यों को ध्वस्त किया जा रहा है। असहमति रखने वाले व्यक्तियों और संगठनों को फासीवादी औजारों से खामोश किया जा रहा है, समाज के लोकतांत्रिक माहौल – डेमोक्रेटिक स्पेस – को ख़त्म किया जा रहा है।” यह बात संजय पराते ने 19वें शैलेन्द्र शैली स्मृति

विग्रहों और विभाजनों को धो पोंछकर पैना करके एक दूसरे के खिलाफ खड़े करने के जतन

“ज्यों-ज्यों दिन की बात की गयी, त्यों-त्यों तो रात हुयी” की तर्ज पर पिछले चार दिनों में दो बड़ी और चिंताजनक घटनाएं घटी हैं। पहली : असम और मिजोरम की “सीमा” पर दोनों प्रदेशों (देशों नहीं, प्रदेशों) के सशस्त्र बलों में मुठभेड़ हो गयी। मेघालय के मुख्यमंत्री के मुताबिक़ असम ने एक आईजी पुलिस की

दैनिक भास्कर : मसला सेठ का नहीं, प्रेस का है

आखिरकार पिछले पखवाड़े देश के प्रमुख हिंदी अखबार दैनिक भास्कर पर मोदी-शाह के इनकम टैक्स और सीबीडीटी के छापे पड़ ही गए। पिछले कुछ महीनों से इस तरह की आशंका जताई जा रही थी। आम तौर से सत्तासमर्थक और खासतौर से भाजपा हमदर्द माने जाने वाले इस अख़बार ने कोरोना महामारी की दूसरी लहर के

इधर के घोड़े क्या गधे थे?

पेगासस जासूसी काण्ड में बाकियों को जो बुरा लगा हो सो लगा हो, अपन को तो अपने इधर के घोड़ों का अपमान बिलकुल भी नहीं भाया। पेगासस यूनानी पौराणिक गाथाओं के बड़े जबर घोड़े हैं – उनकी रफ़्तार और ऊंचाई तय करने की क्षमता इतनी है कि सवार को सीधे स्वर्गलोक तक पहुंचाने का माद्दा

पेरू में समाजवादी पेड्रो कैस्टिलो की विजय और कठिन चुनौतियाँ

कोरोना महामारी से तबाही झेल रहे पेरू का स्पेनिश उपनिवेशवाद से मुक्ति के बाद से 200 साल का इतिहास है, वहां पिछले 20 वर्षों से में लोकतंत्र जड़ पकड़ रहा है. 1985 के बाद से सत्ता में आने वाले पेरू के सभी राष्ट्रपति भ्रष्टाचार में उलझे हुए हैं, पिछले साल नौ दिनों में तीन राष्ट्रपति देश में आए.  पेरू के तीन राष्ट्रपति भ्रष्टाचार के

मखौल बनाना काफी नहीं, झूठ के सांड को सींग से पकड़ना होगा

“पेगासस से जासूसी!! हमे नहीं पता — कब, किसने, क्यों और किसकी कराई।” हर बड़कू और छुटकू यही जवाब पेले पड़ा है। इस जासूसी के कालखण्ड में सूचना प्रौद्योगिकी के मंत्री रहे नकफुलेजी ने कहा कि “आतंकवाद से बचाव के लिए किये गए उपायों पर संसद में चर्चा करना देशहित में नहीं !!” मतलब? क्या

अमानवीय राजकीय हत्या! सब कुछ याद रहेगा..!!

 “मैं कोई मूक दर्शक नहीं हूं, मैं संघर्ष का हिस्सा हूं। इसके लिए मैं कोई भी कीमत चुकाने के लिए तैयार हूं, कुछ भी कीमत।” “चर्च अपने गिरेबान में झांके और देखें कि किस तरह वह काम करता है। हम अगर गरीबों के लिए काम कर रहें है, तो हमें गरीबों की तरह और गरीबों

मंदिर : चौर्योन्माद-डीएनए वालों के घोटाले का नया पासवर्ड

घोटाले के अयोध्याकाण्ड की खबर पुरानी हो गयी है। मगर बटुकों की भागवत कथा अभी शुरू ही हुयी है, इसलिए दोहराने की आवश्यकता बनी हुयी है।  जिसे बिना किसी शक के आजाद भारत का सबसे बड़ा राजनीतिक, न्यायिक घोटाला और इतिहास का पिंडदान कहा जा सकता है, वह अयोध्या में कथित रूप से रामजन्मभूमि बताई

अजब गजब मध्यप्रदेश : जिंदगी में कभी शुमार नहीं हुये, अब मौत में भी गिनती में नहीं

भाजपा और उसकी सरकारों का सचमुच में कोई सानी नहीं है। आप एकदम अति पर जाकर इनके द्वारा किये जाने वाले खराब से खराब काम की कल्पना कीजिये, वे अगले ही पल उससे भी ज्यादा बुरा कुछ करते हुए नजर आएंगे। आप उनके आचरण की निम्नतर से निम्नतम सीमा तय कीजिये, वे पूरी ढिठाई के

शिकार की बजाय शिकारियों के बचाव की पतली गलियां तलाशने का समाजशास्त्र

दो साल पहले वर्ष 2019 के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार देश में  बलात्कार के 84 मामले हर रोज दर्ज किये जाते हैं। इन आंकड़ों का रखरखाव करने वाला सरकारी विभाग नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो अपनी रिपोर्ट में इन्हे दुष्कर्म कहता है।  पिछले दिनो में भी हर रोज इस तरह के दुष्कर्म (बलात्कार) की घटनाएं घटी

वायरस

हमारे सपूत किसी वायरस के शिकार हो गए हैं।उनमें नेतागीरी के लक्षण धीरे-धीरे उभरते जा रहे हैं।यह पुत्र के बिगड़ने की शुरुआत है।अभी इसकी रोकथाम हो सकती है। होली का सीजन था और हमारे चिरंजीव अपने जैसे चार निकम्मों को साथ लेकर लोगों के घरों में दस्तक दे रहा था।पता करने पर ज्ञात हुआ कि

पीने का बहाना चाहिए

हमारे मित्र रामलाल यूं तो ठलुहे हैं पर कभी बेकार में पीते नहीं,वे तब पीते हैं जब पीने का कोई कारण होता है।मसलन आज बहुत गर्मी है इसलिए पी लिया।ठंड बहुत लग रही थी इसलिए पी लिया।याने दारू दारू न हुई एयर कंडीशन हो गई जो अवसर पर पीने के बाद ठंडा- गरम करती है।

गंगा बहती हो क्यूँ? : नदियों का वैतरणी बनना और लाशों के अधिकार का प्रश्न

इन दिनों गंगा, यमुना, नर्मदा, केन, बेतवा सभी नदियों के वैतरणी नदी बन जाने की खबरें आ रही हैं। यहां ओड़िसा में कटक और बालासोर की सीमा पर बहने वाली वैतरणी की नहीं, हिन्दू धर्मशास्त्रों की वैतरणी नदी की बात हो रही है। यह यम की नदी है। यह नर्कलोक के रास्ते में पड़ने वाली

छत्तीसगढ़ : बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था से कोरोना को मिला ऑक्सीजन

वर्ल्डोमीटर के अनुसार, मई के पहले सप्ताह में इस दुनिया में कोरोना पीड़ित हर दूसरा व्यक्ति भारतीय था. जहां पूरी दुनिया में इस अवधि में कोरोना के मामलों में 5% की और इससे होने वाली मौतों में 4% की कमी आई है, वहीँ भारत में कोरोना के 5% मामले बढ़े हैं और इससे होने वाली

सिस्टम की बेशर्मी

हम समझते थे कि एक न एक दिन हमारे सिस्टम को शर्म आएगी पर नहीं आई बेशर्मी और ही बढ़ गई।हमें लगता था यह जनता का,जनता के लिए,जनता के द्वारा सिस्टम है किंतु यह तो    ” जानता ” का सिस्टम है।जो सिस्टम को जानता है वह राज्य करता है,समस्त अधिकारों का उपभोग करता है।जनता

पूछता है भारत, काली टोपी नेकरधारी बटुक कहाँ हैं!!

चुनाव के बीच भी जब नरेंद्र मोदी दलबदल सहित बंगाल में कोरोना की घर-घर डिलीवरी करने में लगे थे, तब चुनाव के बावजूद वहां की जनवादी नौजवान सभा, एसएफआई और जनवादी महिला समिति के रेड वालंटियर्स संक्रमण से पीड़ित लोगों को अस्पताल पहुंचाने, उनके लिए बैड और ऑक्सीजन के बंदोबस्त के लिए जूझ रहे थे।

सरकती जाए है रुख से फासिस्ट नकाब आहिस्ता-आहिस्ता

देश में कोरोना की दूसरी लहर भयावह होती जा रही है। जांच कम होने के बावजूद पिछले तीन दिन से हर रोज तीन लाख से ज्यादा नए मामले सामने आ रहे हैं। देश भर में मरीजों को बेड नहीं मिल रहा है। ऑक्सीजन गायब है। दवाइयां नहीं हैं। लाशों को जलाने की जगह, यहां तक

इलाज की दुकान : अस्पताल

भगवान दुश्मन को भी बीमार न करे।बीमार होने पर इलाज के लिए जहां जाना पड़ता है वह जगह डॉक्टर की दुकान होती है फ्ल्स मेडिकल स्टोर।मेडिकल स्टोर और डॉक्टर की डिस्पेंसरी एक दूसरे की पर्यायवाची होती हैं।एक के बिना दूसरे की कल्पना नहीं की जा सकती। बीमार व्यक्ति की हालत वही व्यक्ति भलीभांति समझ सकता

मोदी की दीदादिलेरी : निर्बुद्धि और संवेदनाशून्य समाज बनाने का प्रोजेक्ट

उस दिन शाम के प्रज्ञा शून्य भाषण और इन दिनों सारे कानूनों, परम्पराओं, संवेदनाओं और मानवता को ठेंगा दिखाकर की जा रही आपराधिक बेहूदगियों को देखकर दो घटनाएं याद आईं। पहली सितम्बर 2008 की है। दिल्ली में हुए बम धमाकों के बाद तब के गृह मंत्री शिवराज पाटिल जब शनिवार रात में प्रेस से बातचीत

सार्वभौमिक टीकाकरण की विदाई!

प्रधानमंत्री मोदी के हालिया संदेश से अब यह स्पष्ट हो गया है कि आजादी के बाद से अब तक किसी भी महामारी से लड़ने के लिए मुफ्त सार्वभौमिक टीकाकरण की सुपरीक्षित नीति को अब अलविदा कह दिया गया है। अब टीकाकरण के दायरे में वही लोग आएंगे, जिनकी अंटी में पैसे होंगे। कोरोना के खिलाफ
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