May 13, 2024

इलाज की दुकान : अस्पताल

भगवान दुश्मन को भी बीमार न करे।बीमार होने पर इलाज के लिए जहां जाना पड़ता है वह जगह डॉक्टर की दुकान होती है फ्ल्स मेडिकल स्टोर।मेडिकल स्टोर और डॉक्टर की डिस्पेंसरी एक दूसरे की पर्यायवाची होती हैं।एक के बिना दूसरे की कल्पना नहीं की जा सकती।
बीमार व्यक्ति की हालत वही व्यक्ति भलीभांति समझ सकता है जो कभी खुद बीमार हुआ हो।बीमार आदमी मौत की भय से भागता है और सीधे सरकारी अस्पताल या नर्सिंग होम की बेड पर गिरता है जहां उसका इलाज शुरू होता है।इस गिरने के पीछे मरीज का स्तर  महत्व रखता है।जिनकी औकात नहीं होती वे सरकारी अस्पताल की ओर जाते हैं और जो औकात वाले होते हैं वह निजी की राह पकड़ते हैं।अच्छा डॉक्टर एक मरीज से नर्सिंग होम का पूरा खर्च वसूल लेता है।वसूली जिन चीजों के माध्यम से होती है उसकी मोटी-मोटी बातें जान लीजिए, चाहें तो नोट कर लें वक़्त पर काम आएगा।रूम चार्ज,बेड चार्ज,विजिट चार्ज, फेन-कूलर चार्ज,लाइट चार्ज, मिसलेनियस चार्ज।बस कमी रहती है तो लाठी चार्ज की हालांकि पुलिस थाना भी सरकारी अस्पतालों में होता है।जितना महंगा इलाज होता है, महंगी दवाइयां होती हैं मरीज उतना ही जल्दी ठीक होता है।
अपने बल पर जो शख़्स मेडिकल स्टोर खोल लेता है वह बेमौत मरता है।वज़ह यह है कि डॉक्टर की लिखी पर्ची को उसका बाप भी नहीं पढ़ पाता।प्रायः सारे डॉक्टरों की हैंडराइटिंग पढ़ने के प्रतियोगिता रख दी जाय तो उसमें सफल केवल उनके ही मेडिकल स्टोर के कर्मचारी ही हो पाएंगे।
बीमार होने की खबर शहर में आग की तरह फैलती है और जान-पहचान वाले सहानुभूति प्रगट करने दौड़े चले आते हैं।आते साथ ही उनका पहला सवाल होता है क्या हुआ,कैसे हुआ,कब हुआ,क्यों हुआ?इसका जवाब पाने के बाद वे एमबी बीएस डॉक्टर की लिखी पर्चियां भले न समझ पाएं पर उसे देखेंगे अवश्य और दो-चार चम्मच सुझाव रोगी के साथ-साथ घर वालों को भी पिला जाएंगे।
अब रोगी अपनी हालत को समझ रहा है कि वह सन्निपात से जकड़ा है और मित्र खुली हवा में सोने का सुझाव दे रहे हैं। ऐसे में रोगी का बंटाधार समझ लो। बेहतर है उनके सुझाव एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल दें।
चुनाव के समय की एक दुर्घटना याद आती है दो प्रत्याशी वोट मांगने अपने मतदाता के यहां एक साथ पहुंचे, देखा,मतदाता बंधु दीनबंधु से मिलने की चेष्टा में गंभीर रूप से रोग सैया पर पड़े हैं। प्रत्याशी द्वय निकट के टेलीफोन बूथ की ओर लपके।आजकल की बात होती तो मोबाइलें निकलतीं।
क्रमशः अस्पताल से एंबुलेंस बुलाई गई। प्रतिद्वंदी द्वय में से एक ने मरीज की टांग पकड़ी दूसरे ने गर्दन और एंबुलेंस पर लाकर पटक दिया तथा दोनों ने भगवान से प्रार्थना की कि वोट डालने तक इसकी रक्षा करना। गनीमत है अस्पताल में मारुति मॉडल की इकलौती और गजब की एंबुलेंस है। निगम की कचरा गाड़ी और उसे एक साथ खड़ी कर दी जाए तो कौन बेहतर है, निश्चित करना मुश्किल हो।
हम यह सोच रहे थे कि इस तरह के दो एंबुलेंस होते तब बेचारे उस गरीब रोगी की गर्दन और टांग कटकर अलग-अलग अस्पताल पहुंचती।
रोगी के घर और मेडिकल स्टोर के बीच अस्पताल स्थित होता है और ऐसे मौके आते-जाते रहते हैं जब आदमी को बीमार होना पड़ता है। लिहाजा बीमारी हमें भी उसी बीच वाली शरणागृह रिक्शे में लाद कर ले गई। हमारा दुर्भाग्य चुनाव कुछ माह पूर्व निपट चुका था अन्यथा हम भी एंबुलेंस में अस्पताल जाते।
हमने देखा वहां के कर्मचारी,डॉक्टर सब नदारद हैं।पता चला कि हमारे से सीरियस मरीज मिनिस्टर साहब को निरीक्षण का दौरा पड़ गया है।सभी लोग उनकी तीमारदारी में चले गए हैं। एक सफाई कर्मचारी हमें मिला।उसने बताया साहब, मिनिस्टर साहब का दौरा है। हमने उससे कहा जा भैया तू भी हाजिरी दे आ। वाह तमक कर बोला हम बिना बुलाए भगवान के घर जाने वाले नहीं हैं, ऐसे कितने मिनिस्टर आए और गए। हम सोच रहे थे उन बड़े ओहदेदारों से तो यह छोटा मजूर ही बेहतर है जिसके पास आज भी अपना स्वाभिमान जिंदा है।
एक अदद बिस्तर की तलाश में कितने ही रोगी सरकारी अस्पताल के बरांडे में पड़े रहते हैं।बेड खाली हुआ कि बीमार लपके पर मुई बेड इतनी आसानी से कहां प्राप्त होती है? बीमार पड़ने के पूर्व रिजर्वेशन की सुविधा न होने के कारण कम से कम बेड प्राप्त हो जाती है अन्यथा…।
कौन साला कहता है जर, जोरू,जमीन के झगड़े होते हैं? वह आए सरकारी अस्पताल और देखे खुदा की कुदरत बिस्तर के लिए कैसे-कैसे झगड़े होते हैं।
पहले सभी तरह की बीमारियों के लिए एक चिकित्सक हुआ करता था।वह ही सिर दर्द, पेट दर्द,कान,दांत दर्द,हड्डी-पसली सबका इलाज कर देता था।आजकल एक बीमारी के लिए दस-दस डॉक्टर होते हैं।सबकी जांच अलग-अलग कमरों में अलग-अलग डॉक्टर, अलग- अलग फीस लेकर करते हैं।वैसे एक डॉक्टर, रोग की जांच और इलाज से संबंधित अन्य प्रतिष्ठानें भी स्थापित कर सकता है।जितनी पूंजी वह लगाएगा उतना ही वह अधिक कमाई करेगा।
सरकारी वाले डॉक्टर ऊपरी इंकम के लिए निजी तौर पर जांच प्रतिष्ठानें खोल रखते हैं।अब सरकारी मरीज का एक्सरे करना है तो अस्पताल की मशीन बिगड़ी रहेगी और डॉक्टर की निजी मशीन चौबीसों घण्टे चलती मिलेगी।इसी तरह ब्लड,शुगर आदि की जांच,ईसीजी,सबकी सुविधा सरकारी होती है पर मशीनें साल भर बंद रहती हैं।सुधार कार्य जिस रोज होता है उसके दूसरे दिन जांच मशीन चालू हालत में मिल जाएं तो वह मरीज का परम सौभाग्य होता है।
हर काबिल डॉक्टर खूबसूरत नर्सें अपने नर्सिंग होम में जरूर रखता है क्योंकि वह जानता है कि नर्सिंग होम काबलियत से नहीं चलता।वह खूबसूरती के बल पर चलता है। इसीलिए नर्सें खूबसूरत ही रखी जाती हैं।मरीज तो मरीज उन नर्सों को देखकर बहुत सारे स्वस्थ लोग भी बीमार पड़ जाते हैं।वहां भर्ती रोगी जल्दी डिस्चार्ज भी नहीं होना चाहता फलतः डॉक्टर की कमाई बढ़ती है।डॉक्टर जब बहुत मजबूर हो जाता है तो रोगी को जबरन डिस्चार्ज सार्टिफिकेट पकड़ाता है।
नर्स नर्सिंग कार्य में दक्ष हो न  हो उसे रोगियों से सुलटना आना चाहिए।दूसरी बात यह कि वह मेकअप के कार्य में कुशल हो।एक साथ दस-दस रोगियों को संभालना भी नर्स को आना चाहिए।कई बार तो वो महाभारत का कारण भी बन जाया करती हैं।
अस्पतालों में नर्सें इसलिए भी रखी जाती हैं क्योंकि वे पुरुषों की नब्ज पकड़ने में उस्ताद होती हैं। कोई माने चाहे न माने रोगी को एडमिट होते समय डॉक्टर का दर्शन होता है। यही उसका प्रथम यदि मर गया तो अंतिम दर्शन होता है। जीवित अवस्था में डिस्चार्ज के अवसर पर भी चार्ज करने के लिए डॉक्टर के दर्शन संभव हैं। अन्य किसी सूरत में तो समझ लीजिए कि वे रंगीन दूरदर्शन हैं।
सरकारी अस्पताल में मुफ्त बिस्तर और अलमारी के अलावा एक मूल्यवान सूची प्राप्त होती है जिस पर प्रस्तावित दवाइयों के नाम लिखे होते हैं। दवाइयां ऐसी होती हैं जो किसी भी हालत में अस्पताल से प्राप्त नहीं की जा सकतीं। इस मामले में मेडिकल स्टोर आपकी मदद करता है, बशर्ते मदद वहन करने की क्षमता आपके मेडिकल बिल में हो।प्राइवेट अस्पतालों में ऐसी दवाइयां लिखी जाती हैं कि वे शहर भर के मेडिकल स्टोर में नहीं मिलतीं बस डॉक्टर के मेडिकल स्टोर में ही मिलती हैं।
सरकारी हॉस्पिटल में दवाइयां मुफ्त भी मिल सकती हैं। सुबह ट्राली में भूसे जैसी स्वाद वाली गोलियां तथा इंजेक्शन लेकर लिखित देव्यानियां( नर्सें) आती हैं और गोलियां बांटती हैं।कभी- कभी डिस्पोजल इंजेक्शन लगाते वक्त ऐसा अवसर आता है कि जब निडिल और सिरिंज के बीच असहयोग आंदोलन छिड़ जाता है। वह ऐसे की निडिल आदमी की बांह पर झूल जाती है और सिरिंज नर्स के हाथ में। ऐसे समय भक्तों को महात्मा गांधी के बजाय चारों धाम याद आते हैं।
सरकारी अस्पताल के प्रत्येक वार्ड में पंखे लगे हुए हैं जिससे सिर्फ हवा भर नहीं आती बाकी सब कुछ आती है। मसलन बैलगाड़ी की चरमर-चरमर, बादलों की गड़गड़ाहट तो कभी  चमगादड़ों की  चिंचिहाट की आवाजें। इस वातावरण में अस्पताल की बैक्टीरिया को परिवहित करने का कार्य यहां के प्रशिक्षित मच्छर भली-भांति कर लेते हैं। प्राइवेट अस्पतालों में तो पंखे कौन कहे एसी तक लगे रहते हैं।इसका बिल तो मरीज को ही भुगतना पड़ता है न।हमारा दावा है कि किसी स्वस्थ आदमी को लगातार दो-चार बार सरकारी अस्पताल घुमा दिया जावे तो वह निश्चित ही बीमार पड़ जाएगा। अस्पताल से स्वस्थ एवं सकुशल डिस्चार्ज होते समय देखने लायक सीन होता है। एक के बाद एक स्वास्थ्य सेवक विदाई की मुद्रा लेने उपस्थित होते हैं।सिर्फ इतना कहने की कसर रह जाती है कि हमें आपके(बचकर) जाने का अत्यंत दुख है।

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