स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण की नीति रद्द करने की मांग की माकपा ने
रायपुर. निजी अस्पतालों के तंत्र पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के मद्देनजर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने प्रदेश के निजी अस्पतालों को सरकारी खजाने से अनुदान देने की नीति को वापस लेने की मांग की है। पार्टी ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से स्पष्ट है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत करना सरकार की जिम्मेदारी है और इसे निजी क्षेत्र के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता।
आज यहां जारी एक बयान में माकपा राज्य सचिवमंडल ने कहा है कि निजीकरण को बढ़ावा देने वाली कॉर्पोरेटपरस्त स्वास्थ्य नीति का सरकार के ही स्वास्थ्य मंत्री और कई विधायकों ने सार्वजनिक रूप से विरोध किया है। स्पष्ट है कि मंत्रिमंडल में पर्याप्त विचार-विमर्श किये बिना ही यह स्वास्थ्य नीति आम जनता पर लादी जा रही है, जिसके दुष्परिणामों को प्रदेश की आम जनता में कोरोना काल में भुगता है।
माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा है कि सरकार की नाक के नीचे सैकड़ों ऐसे निजी अस्पताल चल रहे हैं, जो न्यूनतम सुरक्षा उपायों और नियमन का पालन नही कर रहे हैं। इसके नतीजे में कई निजी अस्पताल आग लगने की घटनाओं के शिकार हुए हैं और कई मरीजों और उनके परिजनों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। ऐसे अस्पतालों के प्रबंधकों के खिलाफ आज तक कोई प्रभावी कार्यवाही करने में कांग्रेस सरकार असफल ही साबित हुई है।
माकपा नेता ने कहा कि प्रदेश के लाखों लोग महंगी स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण गरीबी रेखा के नीचे जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में स्वास्थ्य के क्षेत्र को उद्योग का दर्जा देने से निजी अस्पताल केवल लाभ-हानि के सिद्धांत से संचालित होने वाले संस्थान में तब्दील होकर रह जाएंगे और सेवाभाव की जगह केवल पैसे कमाने के अड्डे बन जाएंगे। इसलिए यह नीति सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को बर्बाद करने और सरकारी खजाने की लूट के दरवाजे खोलने वाली जनविरोधी नीति है। माकपा ने पुनः मांग की है कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकारी खर्च बढ़ाया जाए तथा सरकार के खजाने का उपयोग सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत बनाने के लिए किया जाए।