अबोध बालिका को बहला-फुसला कर बलात्संग करने वाले आरोपी को आजीवन सश्रम कारावास

सागर. न्यायालय नवम् अपर सत्र न्यायाधीश/ विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो एक्ट) सागर के न्यायालय ने आरोपी अबोध पीडिता के साथ दुष्कृत्य करने वाले आरोपी मनीष लोधी पिता धनप्रसाद लोधी उम्र 28 साल को धारा 366(ए), भादवि में दोषी पाते हुए 10 साल का सश्रम कारावास व 500 रूपए का अर्थदण्ड तथा 376(ए)(बी) भादवि एवं धारा 5/6 पॉक्सों एक्ट में आजीवन सश्रम कारावास (संपूर्ण प्राकृत जीवन काल) एवं 500 रूपये के अर्थदण्ड से दण्डित किया गया। राज्य शासन की ओर से उप-संचालक (अभियोजन) अनिल कटारे ने शासन का पक्ष रखा।
लोक अभियोजन के मीडिया प्रभारी सौरभ डिम्हा ए.डी.पी.ओ. ने बताया कि पीडि़ता जिसकी उम्र 11 साल होकर नाबालिक है, ने अपने माता-पिता के साथ थाना उपस्थित होकर रिपोर्ट दर्ज कराई कि दिनांक 14.01.2019 को दोपहर करीब 1ः30 बजे वह आरोपी मनीष लोधी के घर खेलने गयी थी वहा कोई नही होने से आरोपी पीडिता को अंदर वाले कमरे में ले गया और उसके साथ दुष्कर्म किया एवं धमकी दी कि अगर किसी को बताया तो जान से मार दूंगा। उक्त घटना के बारे में पीडिता ने घर आकर अपने माता-पिता को बताया। उक्त रिपोर्ट पर से थाना सुरखी में अपराध धारा 376, 366(ए), 506 भादवि एवं धारा 5/6 पॉक्सो एक्ट के अंतर्गत पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया। विवेचना के दौरान अभियोक्त्री/पीडिता की एम.एल.सी. एवं डी.एन.ए. जांच कराई गयी एवं न्यायालयीन कथन कराये गये। अभियोक्त्री का नाबालिग से संबधित आयु दस्तावेज प्रस्तुत किये गये, विवेचना के दौरान विवेचना अधिकारी द्वारा प्रकरण से संबधित महत्वपूर्ण साक्ष्य एवं वैज्ञानिक साक्ष्य संकलित किये गये। आरोपी का डी.एन.ए. परीक्षण कराया गया। विवेचना पूर्ण कर अभियोग पत्र माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया। माननीय न्यायालय के समक्ष अभियोजन अधिकारी उप-संचालक अनिल कटारे ने महत्वपूर्ण साक्ष्य प्रस्तुत कियें एवं प्रकरण के अभियुक्त को सम्पूर्ण विवेचना के आधार पर संदेह से परे प्रमाणित कराया एवं अंतिम तर्क के दौरान तर्क किया गया कि प्रकरण में अभियोक्त्री और उसके माता पिता के कथन को देखते हुए दोनों पक्ष के बीच समझौता हो जाने की संभावना प्रकट हो रही है। अभियुक्त पढा-लिखा व्यक्ति है,आरोपी द्वारा अपनी काम पिपासा को शांत करने के लिए अपने से कम आयु की अभियोक्त्री को परिचित होने के कारण नाबालिग जानते हुए अपनी हवस का शिकार बनाया। इस प्रकार के अपराध किये गये व्यक्ति को उसके विरूद्व अन्य साक्ष्य उपलब्ध होने पर चिकित्सकीय साक्ष्य का समर्थन होने पर लाभ नही देना चाहिए अन्यथा ऐसे व्यक्ति का मनोबल बढेगा। दण्ड के प्रश्न पर उप-संचालक द्वारा तर्क दिया गया कि घटना दिनांक को पीडिता की आयु मात्र 11 वर्ष की होकर नाबालिग थी। आरोपी द्वारा अभियोक्त्री को नाबालिग जानते हुए बहला-फुसला के अपने घर के अंदर ले जाकर जान से मारने की धमकी देकर उसके साथ बलात्संग किया। अतः अभियुक्त को कठोरतम दण्ड दिया जावे। बचाव पक्ष के अधिवक्ता द्वारा व्यक्त किया गया कि आरोपी नवयुवक है प्रथम अपराधि है और पी.जी. करने के बाद पी.एच.डी. कर रहा है।
माननीय न्यायालय द्वारा अपने निर्णय में व्यक्त किया गया कि यदि अबोध बालिका के विरूद्व किये गये अपराध में उसने यदि अपने माता-पिता के दबाव में किसी प्रकार से अपने कथन को अभियुक्त के पक्ष में मोड दिया है तो यह नही कहा जा सकता कि घटना के समय उसे पहुचाई गयी पीडा शांत हो जायेगी यदि ऐसा होता रहा तो ऐसे कृत्य करने वाले बाद में डरा घमका कर या प्रलोभन देकर समझौता कर साक्षियों को प्रभावित करते रहेगे। न्यायालय का यह कर्तव्य है कि ऐसी परिस्थिति को हतोतसाहित करें। अपराध करने के बाद जो पीडा अभियोक्त्री को तत्काल मे हुई है उससे अधिक पीडा उसे बाद में उसे अहसास करते हुए होती होगी इसमें कोई शंका नही है कि इस प्रकार की पीडा उसे जीवनभर हो सकती है इसका अनुमान लगाना मुश्किल है।
माननीय न्यायालय द्वारा उक्त प्रकरण के तथ्य परिस्थितियों एवं अपराध की गंभीरता को देखते हुए एवं अभियोजन के तर्कों से सहमत होकर आरोपी मनीष लोधी पिता धनप्रसाद लोधी उम्र 28 साल को धारा 366(ए), भादवि में दोषी पाते हुए 10 साल का सश्रम कारावास व 500 रूपए का अर्थदण्ड तथा 376(ए)(बी) भादवि एवं धारा 5/6 पॉक्सों एक्ट में आजीवन सश्रम कारावास (संपूर्ण प्राकृत जीवन काल) एवं 500 रूपये के अर्थदण्ड से दण्डित किया गया।