राष्ट्रीय शिक्षा नीति आत्मनिर्भर और बेहतर भारत निर्माण करेगी : डॉ. सुभाष सरकार
वर्धा. केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुभाष सरकार ने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के अध्यापक, अधिकारी और विद्यार्थियों से राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर संबोधित करते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 हमारे बच्चों और युवाओं को आत्मनिर्भर बेहतर भारत के निर्माण हेतु तैयार करेगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एक बहु-विषयक पाठ्यक्रम के साथ और समग्र शिक्षा प्रदान कर रही है। यह नीति विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देने में एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत सरकार आत्मनिर्भर भारत के विकास के उद्देश्य से विभिन्न प्रणालियों, प्रक्रियाओं और नीतियों का केंद्र बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।
केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुभाष सरकार का शनिवार 2 अप्रैल को विश्वविद्यालय में आगमन हुआ। उनके आगमन पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने सवांद कक्ष में उनका विश्वविद्यालय का स्मृतिचिन्ह, शॉल और सुतमाला देकर स्वागत किया। इस अवसर पर गालिब सभागार में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल की अध्यक्षता में राष्ट्रीय शिक्षा नीति, नवाचार और शोध विषय पर चर्चा का आयोजन किया गया। चर्चा में मुख्य अतीथी के रूप में केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री डॉ. सुभाष सरकार ने संबोधित किया। डॉ. सुभाष सरकार ने अपने वक्तव्य में कहा कि सभी को हिंदी भाषा व अन्य भारतीय भाषाओं खासकर अपनी मातृभाषा के संरक्षण और प्रचार हेतु कार्य करना है। सरकार उच्च गुणवत्ता प्रदान करने हेतु उच्च शिक्षा संस्थानों को विकसित करने की दिशा में अनेकों कदम उठा रही है। साथ ही,इस शिक्षा नीति मे पाठ्यक्रमों के अनुवाद पर भी काम हो रहा है। प्रयास है कि शिक्षा का माध्यम स्थानीय और भारतीय भाषाओं या द्विभाषी हो।
उन्होंने शिक्षकों से आग्रह किया कि विद्यार्थियों द्वारा बोले जाने वाली विभिन्न भारतीय भाषाओं से संबंधित सेमीनार या वर्कशाप का आयोजन करें| उन्होंने भारतीय भाषाओं का तकनीकी रूप से उपयोग करने का आवाहन किया। उनका कहना था कि शिक्षा समाज में ज्ञान के प्रसार में सहायता करती है। शिक्षित समाज में ज्ञान का तेजी से प्रसार होता है। प्राचीन शिक्षा प्रणाली का संदर्भ देते हुए उन्होंने कहा कि इस प्रणाली के अंतर्गत विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास पर ध्यान दिया जाता था तथा विनम्रता, सच्चाई, अनुशासन, आत्मनिर्भरता और सम्मान जैसे मूल्यों को बढ़ावा दिया जाता था|यह प्रणाली व्यक्ति के आचरण में व्यावहारिकता और सरलता के गुणों का विकास करती थी। प्राचीन भारत के विद्वानों जैसे-चरक, सुश्रुत, आर्यभट्ट, वराहमिहिर, मैत्रेयी, गार्गी आदि के विचारों एवं उनके द्वारा कार्यों को वर्तमान पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि तक्षशिला और नालंदा के समय से समग्र और बहु-विषयक शिक्षा की एक लंबी परंपरा रही है। भारत प्राचीन काल से ही शिक्षा का केंद्र रहा है।वे गुरुओं और आचार्यों के योगदान से सहस्राब्दियों से बढ़े, जिन्होंने छात्रों को मानवीय मूल्यों, ज्ञान और कौशल को विकसित करने में मदद की। गुरुकुलों ने छात्रों के सर्वांगीण विकास के अवसर प्रदान किए।प्राचीन भारत ने खगोल विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, गणित, योग, ललित कला, शल्य चिकित्सा, सिविल इंजीनियरिंग आदि के क्षेत्र में दुनिया को बहुत योगदान दिया है। संपूर्ण वैदिक-वांगमय, रामायण, महाभारत, पुराण, स्मृतिग्रंथ, दर्शन, धर्मग्रंथ, काव्य, नाटक, व्याकरण तथा ज्योतिष शास्त्र संस्कृत भाषा में ही उपलब्ध होकर इनकी महिमा को बढ़ाते हैं, जो भारतीय सभ्यता, संस्कृति की रक्षा करने में पूर्णत: सहायक सिद्ध होते हैं। आचार्य पाणिनि रचित संस्कृत व्याकरण के प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘अष्टाध्यायी’ की चर्चा करते उन्होंने कहा कि इस ग्रन्थ में आठ अध्याय हैं। कई भाषा को बोधगम्य एवं सुगम बनाने की परम्परा में आचार्य पाणिनी का योगदान अभिन्न है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की दिशा में विश्वविद्यालय में अनेक कार्यक्रम एवं उपक्रम चलाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत भारतीय भाषाओं में पढ़ाई कर इंजीनियर और डॉक्टर बनाने होंगे। इसके लिए अनुवाद बहुत बड़ा श्रेत्र है। हम मशीनी अनुवाद के साथ-साथ भाषाओं की स्थिति पर कार्य योजना बना रह है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय विभिन्न देशों के डिप्लोमेट और अधिकारियों को हिंदी का प्रशिक्षण दे रहा हैं और इस दिशा में भूटान के साथ-साथ यूरोप के देशों के लिए कार्य प्रारंभ किया गया है। उन्होंने विश्वविद्यालय द्वारा संचालित किए जा रहे विधि शिक्षा तथा भाषा अभियांत्रीकी जैसे पाठ्यक्रम शुरू करने की जानकारी दी।
कार्यक्रम में प्रतिकुलपति प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्ल ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का क्रियान्वयन, प्रतिकुलपति प्रो. चंद्रकांत रागीट ने विश्वविद्यालय की ओर से संचालित नये नवाचार कार्यक्रम, दूर शिक्षा निदेशक डॉ. के. बालराजू ने नवाचार और शोध कार्यक्रम तथादर्शन विभाग के अध्यक्ष डॉ. जयंत उपाध्याय ने भारतीय ज्ञान पद्धति पर विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम के दौरान विश्वविद्यालय के अध्यापक डॉ. विधू खरे दास, प्रो.कृष्ण कुमार सिंह, डॉ. वीर पाल सिंह यादव, डॉ. संदीप सपकाले, ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रायोजित अनुभव पर अपने मंतव्य प्रगट किए। डॉ. लेखराम दन्नाना ने मंगलाचरन प्रस्तुत किया तथा विश्वविद्यालय के कुलगीत से कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। कार्यक्रम का संचालन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष प्रो. कृपाशंकर चौबे ने किया तथा कुलसचिव कादर नवा़ज खान ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
इस अवसर पर शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुभाष सरकार के करकमलो से मेजर ध्यानचंद स्टेडियम पर मुक्ताकाशी व्यायामशाला (ओपन जिम) का उद्घाटन एवं शिलापट्ट का अनावरण किया । इस अवसर पर डॉ. वागीश राज शुक्ल और विद्यार्थियोंने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। शिक्षा राज्य मंत्री ने छात्रावास में विद्यार्थियों से चर्चा की तथा संतुष्टि भोजन कक्ष को भेट देकर विद्यार्थियों के भोजन की व्यवस्था का अवलोकन किया। इस अवसर पर प्रतिकुलपति द्वय प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्ल, प्रो. चंद्रकांत रागीट, कुलसचिव कादर नवा़ज खान, अधिष्ठाता गण, अध्यापक, कर्मचारी शोधार्थी व विद्यार्थी उपस्थित थे।