September 24, 2021
विश्व गैंडा दिवस – जैव विविधता एक प्राकृतिक संसाधन है जिससे हमारी जीवन की सम्पूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति होती है सरंक्षण जरुरी : महेश अग्रवाल
भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि गैंडे/राइनो की सभी पांँचों प्रजातियों के बारे में जागरूकता फैलाने और उन्हें बचाने के लिये किये जा रहे कार्यों की ओर ध्यान आकृष्ट करने हेतु 22 सितंबर को विश्व गैंडा दिवस मनाया जाता है। इसकी घोषणा वर्ष 2010 में पहली बार प्रकृति के संरक्षण हेतु विश्वव्यापी कोष दक्षिण अफ्रीका द्वारा की गई थी। कई दशकों से लगातार अवैध शिकार और निवास स्थान के नुकसान के कारण गैंडे की प्रजातियांँ विलुप्त होने की कगार पर हैं। हम जानते हैं कि हमारी पृथ्वी ही अकेला ग्रह हैं जिसपर जीवन पाया जाता है। इसीलिए यह जीवंत ग्रह कहलाता है। इस ग्रह पर ही वायुमंडल, स्थलमंडल तथा जलमंडल है। ये सभी मंण्डल मिलकर इस ग्रह पर जीवन को संभव बनाते हैं। लेकिन पृथ्वी के बहुत छोटे से भाग पर ही जीवन का अस्तित्व है। पृथ्वी के इस संकीर्ण क्षेत्र के पार किसी प्रकार का जीवन नहीं पाया जाता। पृथ्वी के इस संकीर्ण क्षेत्र में ऐसी क्या विशेषता है जिसने यहाँ पर जीवन को संभव बनाया है। यह इसलिए संभव हुआ है; क्योंकि यहाँ पर बहुत सी चीजों जैसे ऊर्जा, जीवित प्राणी तथा अजैव चीजों का उचित मिश्रण तथा उनके मध्य अन्योन्य क्रिया पाई जाती है। लाखों वर्षों से प्रकृति ने कुछ ऐसे नियंत्रण और संतुलन बनाए रखें हैं जिससे बिना किसी समस्या के जीवन के विभिन्न रूप विद्यमान हैं। लेकिन आज स्थिति बदल गई है। आज यह जीवन से परिपूर्ण ग्रह खतरे में हैं। यह मुख्य रूप से मानवीय हस्तक्षेप के कारण है। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने ठीक ही कहा था।” पृथ्वी के पास मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए सब कुछ है, परन्तु उसके लालच के लिए नहीं।” अगर हम इस अनोखे जीवनयुक्त ग्रह को बचाना चाहते हैं तो हमें अपने लालच पर नियंत्रण रखना ही होगा तथा हमें अपनी जीवन शैली और व्यवहार के प्रतिरूप को बदलना होगा। योग गुरु अग्रवाल ने बताया हमारे ऋषि मुनियों ने जानवरो की रक्षा एवं उनके प्रति हमारा लगाव बना रहें इसके लिए जानवरो के नाम से उनके गुणों एवं लाभ के अनुसार योग आसनों की खोज की | गेंडा एक विशालकाय शाकाहारी वन्य प्राणी है | हाथियों जैसा ही यह भारी भरकम शरीर वाला यह स्तनधारी पशु है जो असम और नेपाल के जंगलो में स्वछन्द विचरण करता है | इसका वजन लगभग दो से तीन टन तक होता है | सच पूछिए तो नेपाल और भारत में गेंडा को एक मंगलकारी पशु भी समझा जाता है |प्राचीनकाल में गेंडे के चर्म , सींग एवं मजबूत हड्डीया कवच , ढाल और अस्त्र बनाने के काम में लाये जाते थे | पुरातत्वो से स्पष्ट है कि ढाल ,तलवार की मुठ , कवच आदि बनाने में गेंडे के मजबूत चमड़े का खूब प्रयोग होता था | आदिकाल से ही गेंडे का शिकार वीरता का प्रतीक माना जाता रहा है | शौर्य प्रदर्शन करने के लिए भारत में सदियों से क्षत्रिय राजाओं में गेंडे के शिकार की परम्परा रही है | मुगल शासन और अंग्रेज शासन काल में गेंडे के शिकार में काफी वृद्धि हुयी | दरअसल अंग्रेज लोग आधुनिक अस्त्रों का उपयोग कर गेंडे का शिकार करते थे और उनके सींग एवं चमड़े को अनेक देशो के संग्रहालयो में भारी मूल्य में बेचते थे | ब्रिटिश संग्रहालयो में भारतीय गेंडे के भूसे भरे नमूने आज भी देखने को मिलते है | वन्य प्राणी विशेषज्ञों के अनुसार प्राचीनकाल में गेंडो की तकरीबन तीस प्रजातियाँ पाई जाती थी किन्तु अब इनकी मात्र पांच प्रजातियाँ शेष रह गयी है | अन्य प्रजातियाँ धीरे धीरे लुप्त हो गयी है | गेंडा स्वभावत: शाकाहारी और रात्रिचर होता है | यह अकेले या जोड़ो में रहता है | यह घास ,पत्तियों , कोंपलों , लताओं और मुलायम टहनियों को बड़े चाव से खाता है | यह मांद या गुफाओं में नही रहता है इसलिए इसकी चमड़ी अत्यधिक मोटी होती है जो सर्दी और गर्मी से सुरक्षा प्रदान करती है | गेंडा मुख्यत: रात्रि में स्वच्छन्द विचरण करता है दरअसल इसे ज्यादा गर्मी बर्दाश्त नही होती इसलिए दिन-भर कीचड़ में लेटा रहता है | घायल या क्रुद्ध होने पर यह उग्र रूप धारण कर लेता है | ऐसे भे भयंकर गुर्राहट के साथ सीधा दौडकर शत्रु पर अपने सींग से वार करता है | क्रोधित अवस्था मेह कई टन भारी वस्तु को भी हवा में उछालने की क्षमता रखता है | गेंडो जैसे विशालकाय प्राणी को अपने सींगो के कारण ही असमय मार दिया जाता है | इसके सींग प्रचीनकाल से ही दुर्लभ और बहुमूल्य वस्तु समझी जाती रही है | यही कारण है कि गेंडे शिकारियों की गोली का निशाना बनते रहे है |
कहते है कि गेंडे के सींग में खोई हुयी शक्ति , यौवन और पुरुषत्व प्रदान करने का चमत्कारी गुण मौजूद होता है | अरबवासियों का विश्वास था कि गेंडे के सींग से बनाये गये प्याले में पेय पदार्थ लिए जाए तो विष का असर नही होता | गेंडे के सींग से बने प्याले भारत में मिलते थे | एशिया में गेंडे के सींग का खूब निर्यात होता रहा है | गेंडे जैसे सुंदर और महत्वपूर्ण प्राणी का शिकार व्यर्थ है | इनके शिकार हमारा जैव संतुलन बिगड़ जाएगा | जाहिर है कि इतने बड़े और विशालकाय जन्तु का जीवनकाल बहत छोटा होता है | भारत की तरह ही अफ्रीका में भी काले और सफेद गेंडो की संख्या बढाने के प्रयास किये जा रहे है | गेंडो का पर्यावरण में बहुत महत्व है इस तथ्य को अस्वीकार नही किया जा सकता |अत: इनके संरक्षण के लिए हर सम्भव प्रयास करने की आवश्यकता है |