May 5, 2024

हिंदुत्‍व एक जीवन पद्धति है : प्रो. सुषमा यादव

वर्धा. महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के दर्शन एवं संस्कृति विभाग की ओर से भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित  ‘हिंदुत्‍व: वैचारिक वि-औपनिवेशीकरण का दर्शन’ विषय पर 29 अगस्‍त को आजादी के अमृत महोत्‍सव के अंतर्गत समिश्र पद्धति से आयोजित विशिष्‍ट व्‍याख्‍यानमाला में विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग की सदस्‍य एवं बीपीएस महिला विश्‍वविद्यालय, सोनीपत की पूर्व कुलपति प्रो. सुषमा यादव ने कहा कि हिंदुत्‍व एक जीवन पद्धति है। इसका चिंतन-दर्शन विशाल और उदार है। हिंदुत्‍व के वि-औपनिवेशीकरण के लिए हिंदू जीवन पद्धति को भारतीय दृष्टि से परिभाषित करना होगा।

महादेवी वर्मा सभागार में आयोजित कार्यक्रम की अध्‍यक्षता विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल ने की। प्रो. सुषमा यादव ने पाश्‍चात्‍य और भारतीय जीवन पद्धति को विस्‍तार से बताते हुए कहा कि आजादी के 75 वर्षों में भी हम पाश्‍चात्‍य संस्‍कृति से मुक्‍त नहीं हो पाये, और न ही अपना तंत्र बना सके। इसी जीवन पद्धति को हम अपना रहे है। हिंदुत्‍व दर्शन की बात करते हुए उन्‍होंने कहा कि हिंदुत्‍व में व्‍यक्ति के साथ-साथ प्रकृति भी शामिल है। हमें धारणीय विकास की संकल्‍पना को साकार करते हुए औपनिवेशिकता की जकड़नों से मुक्‍त होना होगा तभी हम आत्‍मनिर्भर और अखंड भारत को साकार कर पाएंगे।
अध्‍यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल ने कहा कि भारत का भाव वसुधैव कुटुंबकम् और बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय का है। हमें यूरोप की श्रेष्‍ठता की दासता से मुक्ति पाते हुए मन में भारतीय भाव को जगाना चाहिए। उन्‍होंने स्‍वामी विवेकानंद, विनायक दामोदर सावरकर, महात्‍मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक और अरविंद के विचारों का संदर्भ देते हुए कहा कि इन्‍होंने मानसिक गुलामी से मुक्ति की बात की है।  उनके विचार भारत को  श्रेष्‍ठ और एक बनाने में सहायक होंगे। स्‍वागत वक्‍तव्‍य दर्शन एवं संस्‍कृति विभाग के अध्‍यक्ष डॉ. जयंत उपाध्‍याय ने दिया। कार्यक्रम का संचालन दर्शन एवं संस्‍कृति विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. सूर्य प्रकाश पाण्‍डेय ने किया तथा गांधी एवं शांति अध्‍ययन विभाग के प्रो. नृपेंद्र प्रसाद मोदी ने आभार माना।  चंदन कुमार ने मंगलाचरण प्रस्‍तुत किया। इस अवसर पर प्रतिकुलपति द्वय प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्‍ल एवं प्रो. चंद्रकांत रागीट, प्रो. कृष्‍ण कुमार सिंह, प्रो. अवधेश कुमार सहित अध्‍यापक शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।

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