May 6, 2024

वर्ल्ड मैडिटेशन डे पर विशेष : रोग मुक्ति के लिए ध्यान सर्वोत्तम उपाय – योग गुरु महेश अग्रवाल

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक योग केंद्र  स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल कई वर्षो से निःशुल्क योग प्रशिक्षण के द्वारा लोगों को स्वस्थ जीवन जीने की कला सीखा रहें है वर्तमान में भी ऑनलाइन माध्यम से यह क्रम अनवरत चल रहा है | वर्तमान कोविड 19 महामारी में भी हजारों योग साधक अपनी योग साधना की निरंतरता से विपरीत परिस्थितियों में भी स्वयं स्वस्थ एवं सकारात्मक रहते हुए सेवा के कार्यों में लगे है |

योग गुरु अग्रवाल ने वर्ल्ड मेडिटेशन डे के अवसर पर ध्यान के बारे में बताते हुए कहा कि विविध प्रकार के योग हैं जिसे आप अपनी योग्यता, आवश्यकता, परिस्थिति और सीमा के भीतर कर सकते हैं, पर ध्यान ऐसा योग है जिसके अभ्यास की कोई सीमा नहीं है। हर व्यक्ति योग नहीं कर सकता है। यदि आप अधिक मद्यपान करते हैं तो आपके लिए प्राणायाम करना कठिन होगा। कुछ ऐसे योग हैं जो आप नहीं कर सकते यदि आप मांस, मछली, अण्डे खाते हैं, पर एक योग ऐसा है, ध्यान-योग, जो आप हर हालत में कर सकते हैं। *ध्यान-योग भारतीय संस्कृति का भाग है। 2500 वर्ष पूर्व महात्मा बुद्ध अपने हजारों शिष्यों को ध्यान-योग सिखाते थे और उनकी शिक्षा सारे संसार में फैली थी। उनके शिष्यों ने ध्यान योग के व्यावहारिक पक्ष को सारे विश्व में फैलाया। भगवान् बुद्ध के उपदेशों का सार-तत्त्व वही था। उनके शिष्य चीन गये और ध्यान योग के विज्ञान को स्थापित किया। चीनी ध्यान को चान कहते हैं। उनके शिष्य जापान गये और वहाँ ध्यान का प्रचार किया। जापानी में ध्यान को ‘झान’ अथवा संक्षेप में ‘झेन’ कहते हैं। *ध्यान, चान, झेन, मेडिटेशन, पूर्ण जागरण सब एक ही चीज है।
ध्यान में गहन शारीरिक और मानसिक विश्राम मिलता है, जिसकी अनुभूति हममें से कुछ लोगों को निद्रावस्था में भी होती है। अतः ध्यान द्वारा अनेक बीमारियाँ दूर की जा सकती हैं, अपूर्व स्वास्थ्य-लाभ किया जा सकता है।
हम शरीर और मन के अटूट पारस्परिक सम्बन्ध को समझ लें। युगों से यह माना जा रहा था कि शारीरिक व्याधि का मन से कोई वास्ता नहीं और मानसिक व्याधि का शरीर से कोई सम्बन्ध नहीं है। हाल ही में दोनों के बीच के घनिष्ठ आन्तरिक सम्बन्ध को मान्यता दी गयी है। वास्तव में ये दोनों मिलकर एक ही इकाई हैं। जैसे, मानसिक विश्राम से शरीर की थकान कम होती है और शारीरिक विश्राम से मन की।अतः यह स्पष्ट है कि किसी भी रोग का कारण निश्चित रूप से मन और शरीर, दोनों ही से सम्बन्धित है और दोनों के संतुलित इलाज से ही रोग निवारण सम्भव है।
रोग निवारण के लिए दवाओं द्वारा किए जाने वाले इलाज की अपेक्षा ध्यान अधिक समग्र एवं सम्पूर्ण विधि है। दवाओं से जो उपचार होते हैं उनसे किसी अंग विशेष के रोग दूर हो सकते हैं तथा शरीर के दूसरे अंगों पर उनका दुष्प्रभाव भी पड़ सकता है, जिसके कई उदाहरण भी दिए जा सकते हैं। पर ध्यान की परिधि में सम्पूर्ण व्यक्तित्व को लिया जाता है। ध्यान द्वारा उपचार की डोर रोगी के हाथ में आ जाती है। रुग्ण व्यक्ति में ध्यान द्वारा वह क्षमता आ जाती है जिससे वह रोग से लड़ सकने में समर्थ हो जाता है। यह उपचार मन और शरीर से एक साथ सम्बन्ध रखेगा। ध्यान द्वारा मन को रोगों को दूर करने का प्रशिक्षण दिया जा सकता है। लेकिन सबसे पहले तो ध्यान की विधि जान कर मन और शरीर पर नियंत्रण रखने की कला सीखनी होगी। जब व्यक्ति अपने मन तथा शरीर की आन्तरिक गतिविधियों के प्रति सजग हो जाता है, तब वह अपनी ऊर्जा तथा शक्ति को आवश्यकतानुसार दिशा प्रदान कर सकता है। रोगग्रस्त व्यक्ति ध्यान के अभ्यास से अपनी आन्तरिक ऊर्जा को बीमार अंग की ओर दिशान्तरित करने की कला सीख जाएगा।
ध्यान के शारीरिक प्रभाव – ध्यान शारीरिक क्रिया-कलापों के नियंत्रण का सबसे सशक्त उपाय है, साथ ही मानसिक क्रियाओं तथा घटनाओं के कारण हो रही शारीरिक प्रतिक्रियाओं के नियंत्रण का भी यह सशक्त माध्यम है। ध्यानावस्था में शरीर पर होने वाला सबसे गहरा परिवर्तन है- चयापचय की गति का मन्द पड़ जाना, क्योंकि ऑक्सीजन के प्रयोग तथा आवश्यकता एवं कार्बन डाइऑक्साइड की उत्पत्ति, दोनों में ही कमी आ जाती है। प्रयोगों से पता लगा है कि ऑक्सीजन व्यय में 20% तक कमी आ जाती है, क्योंकि श्वसन की गति धीमी पड़ जाती है। चयापचय की गति के मन्द पड़ जाने का कारण है, अनैच्छिक स्नायु संस्थान पर ध्यान के अभ्यास द्वारा प्राप्त नियंत्रण।
रक्तचाप पर ध्यान का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। यह ध्यानावधि में और उसके बाद भी सामान्य से बहुत नीचे गिर जाता है। इसलिये उच्च रक्तचाप से पीड़ित व्यक्तियों के लिये तो ध्यान विशेष लाभदायक उपचार है। हृदय गति भी अधिक स्वस्थ ढंग से चलने लगती है। रक्त संस्थान से सम्बन्धित एक और रोचक तथ्य यह है कि ध्यान के अभ्यास से रक्त प्रवाह भी बढ़ जाता है। साधक के लिए यह बढ़ा हुआ रक्त संचार अत्यन्त लाभदायक है।
कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा कम करने का सर्वोत्तम उपाय है, ध्यान। इससे रक्तचाप स्वतः सामान्य हो जायेगा और सभी प्रकार की चिन्तायें कम हो जायेंगी। चिन्ता स्वयं अनेक शारीरिक एवं मानसिक रोगों का मूल कारण है। अत: रोग मुक्ति के अनेक प्रचलित उपायों में ध्यान सर्वोत्तम उपाय है। इससे रोगों का जड़ से निदान होता है, मात्र ऊपरी लक्षणों का नहीं। ध्यानावस्था में रक्त में ऑक्सीजन तथा कार्बन-डाइ ऑक्साइड का अनुपात (मात्रा नहीं) निरन्तर एक समान बना रहता है। और अंततः अपने अस्तित्व की अतल  गहराई में स्थित किसी ‘तत्त्व’ के प्रति जागरूक होने की क्षमता अपने में ले आए तो इसी अवस्था को ध्यान कहा जाता है।

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