May 4, 2024

शिक्षक दिवस – प्रभावशाली शिक्षण के लिए व्यक्तित्व के शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक स्तरों को समन्वित करना आवश्यक है : महेश अग्रवाल

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि भारत में शिक्षक दिवस भूतपूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिन 5 सितंबर को मनाया जाता है। इसका मूल उद्देश्य दुनिया भर में शिक्षकों की स्थिति की सराहना, मूल्यांकन और सुधार करना है । आज इस अवसर पर योग केंद्र पर सामूहिक योग साधना के साथ शिक्षकों का सम्मान किया गया, प्रमुख रुप से योग गुरु महेश अग्रवाल का जन्मदिन दिन भी मनाया गया, डॉ. नरेंद्र भार्गव,  राकेश गर्ग, गीता गर्ग, संजय गुप्ता, सुनील शुक्ला,  दिलीप सिंह, किदवई जी,  सुदीपा रॉय, सुनीता जोशी, गीतांजली सक्सेना, परवीन किदवई, सुरेखा चावला, रेणुका, श्वेता केंदुलकर, शिखा  शुक्ला, लता बंजारी, आशा गजभिये, सारंगा नगरारे, शिप्रा जैन, ज्योति नायक, रेनू भदौरिया सहित योग साधक उपस्थित रहें  ।
योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि यदि आप सामान्य योग-कक्षाओं में जायेंगे तो पायेंगे कि उनमें भाग लेने वालों में अधिकतर शिक्षक और शिक्षाविद हैं। शिक्षा व्यवसाय से जुड़े इतने लोग योग का अभ्यास क्यों करते हैं? व्यक्तिगत रूप से मेरा ऐसा मानना है कि धीरे-धीरे योग अधिक-से-अधिक महत्वपूर्ण होता जायेगा क्योंकि इसका अभ्यास करने वाले स्कूली शिक्षकों की संख्या बढ़ती जा रही है। योग का अभ्यास करने का कारण यह है कि प्रतिदिन कक्षाओं में उपस्थित रहने के परिणामस्वरूप उनकी प्राणशक्ति का क्षय होता है। पहले लोग कठिन शारीरिक परिश्रम किया करते थे। वे लकड़ी काटते थे, कुएँ से पानी खींचते थे, जमीन पर हाथों से पॉलिश करते थे और ऐसे ही अन्य शारीरिक कार्य किया करते थे। अब वे कठिन काम नहीं करते हैं फिर भी बहुत थक जाते हैं। जब छुट्टियाँ आती हैं, शिक्षक वास्तव में क्लांत हो चुके होते हैं। उन लोगों ने इस बात को समझा है कि क्लांति को केवल निद्रा से दूर नहीं किया जा सकता है। कोई ऐसा उपाय होना चाहिए जिसके माध्यम से पढ़ाने के क्रम में क्षीण हुई ऊर्जा पुनः प्राप्त की जा सके। शिक्षण अत्यधिक थका देने वाला काम है लेकिन यह पता लगाना बड़ा मुश्किल है कि यह थकान कहाँ से आती है। योगाभ्यास के परिणामस्वरूप ऊर्जा-स्तर में वृद्धि होती है शिक्षक अपने कर्त्तव्य का सही ढंग से निर्वाह कर सकता है । योग उन सब की सहायता करता है।
प्रभावशाली शिक्षण के लिए व्यक्तित्व के शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक स्तरों को समन्वित करना आवश्यक है। यदि मन में विद्यमान प्रगति करने और सीखने की तीव्र अभीप्सा पर तनाव का आवरण पड़ जाता है, और शिक्षक के द्वारा उस पर ध्यान नहीं दिया जाता है, तो ऐसे में बच्चा एकाग्र नहीं हो पाता है। योग के अभ्यास ऐसी समस्याओं का सामना करने में मदद करते हैं। इसीलिए शिक्षकों को प्राय: कक्षा को लघु श्वसन अभ्यासों से आरंभ करना चाहिये
 योग और शिक्षा के बीच बड़ा गहरा संबंध है। योगियों ने निश्चयपूर्वक कहा है कि मानव अब तक पूर्णरूपेण मानव नहीं बन पाया है, वह अभी भी एक उच्चतर श्रेणी का पशु है, लेकिन योग के माध्यम से वह सचमुच मानव बन सकता है और विकास कर सकता है। जब हमारे बच्चे होते हैं तो हम चाहते हैं कि उनका विकास हो। यदि हम शिक्षाविद् और योगी हैं तो हमारा ध्यान इन सब लक्ष्यों पर होता है। हम कहाँ जा रहे हैं? वर्तमान शिक्षा प्रणाली में इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं है। पद्धतियाँ तो हैं, लेकिन नहीं है। हम नहीं जानते हैं कि मनुष्य का लक्ष्य किस दिशा में है। हम सोचते हैं कि उसे बस किसी व्यवसाय में जाना है, वह कलाबाज़ बनेगा, शिक्षक बनेगा, डॉक्टर बनेगा या बढ़ई बनेगा। लेकिन हम इससे परे एक उच्चतर प्रयोजन को नहीं देख पाते हैं। समाज के अतिरिक्त हमारा कोई आश्रय नहीं है। जब एक शिक्षक या शिक्षाविद् योगी होता है, तो वह अपने लिए साधन जुटा सकता है, उसे आश्रय मिल सकता है, क्योंकि उसका उच्चतर लक्ष्य उसके सामने होता है। यदि आप यह अच्छी तरह जानते हैं कि आप किस दिशा में जा रहे हैं तो मार्ग स्वतः बनते जायेंगे। लेकिन यदि आपको यह नहीं मालूम कि एक सच्ची मानवीय शिक्षा कैसी होना चाहिए तो आपकी पद्धतियाँ या सिद्धांत धरे-के-धरे रह जायेंगे। यदि आपका अभिप्राय गलत है तो उसे पूरा करने वाले मार्ग भी सही नहीं हो सकते हैं।
अंतत: शिक्षक के अपने विकास की अवस्था सबसे महत्त्वपूर्ण है । कक्षा में कोई परिवर्तन लाने का प्रयास करने के पूर्व शिक्षक को आत्मानुशासन के द्वारा अपने जीवन को परिवर्तित करने का प्रयास करना चाहिए। उसकी परिवर्तित-परिष्कृत दृष्टि ही शिक्षा प्रणाली को तरोताज़ा कर पायेगी।

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