May 4, 2024

कुछ करने के लिए बड़ा पद नहीं हौसला चाहिये, महिला कांस्टेबल की कामयाबी जानकर आप भी करेंगे सैल्यूट


नई दिल्ली. अपने देश में आपने एक मिसाल सुनी होगी कि पुलिस वालों की न दोस्ती भली न दुश्मनी. दरअसल देश में आए दिन पुलिस की छवि बिगड़ने वाली खबरें सामने आती रहती हैं. पुलिस चाहे भले ही किस राज्य की हो लेकिन उसका खौफ लगभग एक जैसा है. हालांकि हर पुलिसकर्मी ऐसा नहीं होता और अपवाद भी हर जगह होते हैं. यहां पर जिक्र उत्तर प्रदेश (UP) के फिरोजाबाद (Firozabad) में तैनात महिला कांस्टेबल रिंकी सिंह (Rinky Singh) का, जिनकी उपलब्धियों को हर कोई सैल्यूट कर रहा है.

काम से बनाई पहचान

रिंकी की गिनती उन पुलिसकर्मियों में होती हैं जिनपर विभाग नाज करता है. उन्होंने खाकी पर दाग नहीं लगने दिया. यही वजह है कि उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath), राज्यपाल आनंदी बेन पटेल और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने भी उन्हें सम्मानित किया है. आइए जानते हैं इस लेडी सिपाही की दिलेरी की कहानी.

बच्चों की मसीहा हैं कांस्टेबल रिंकी

फिरोजबाद में एंटी ट्रैफिकिंग यूनिट (Anti Trafficking Unit) में बतौर सिपाही अपनी सेवाएं दे रही हैं 30 साल की रिंकी सिंह हैं. नाबालिग बच्चों के लिए रिंकी किसी मसीहा से कम नहीं हैं.  उन्होंने बाल श्रमिकों को छुड़ाने और उनका बचपन बचाने के लिए बाकायदा एक अभियान चला रखा है. रिंकी अपने काम की हर छोटी-बड़ी खबरों पर पैनी नजर रखती हैं. उनके निशाने पर वो जगहें होती हैं जहां पर छोटे बच्चों से काम कराया जाता है. इनमें ढाबों, होटलो और  गैराज में जाकर जबरन या किसी मजबूरी में काम करने को मजबूर बच्चे किसी बंधुआ मजदूर की तरह काम कराये जाते हैं.

300 से ज्यादा की संवारी जिंदगी

आपको बताते चलें कि रिंकी ने बीते साल 2020 में 153 बाल श्रमिकों (Child Labors) को आजाद कराया था. उन्होंने करीब सौ ऐसे बच्चों को बेहतर जिंदगी दी है, जो पहले मंदिर-मस्जिद या बाजारों  से लेकर चौराहों तक भीख मांग कर अपनी गुजर बसर करते थे. इस तरह रिंकी की टीम अब तक करीब 300 से ज्यादा बच्चों को मुक्त करा चुकी है. उनकी टीम में 7 पुलिसकर्मी हैं. जिसमें दो महिलाएं 5 परुष शामिल हैं. रिंकी इन बच्चों को मजदूरी से आजाद कराकार उन्हें किसी अच्छी सामाजिक संस्था में रखती है. वो ऐसे बच्चों को सरकारी योजनाओं के तहत मुफ्त शिक्षा से लेकर मासिक भत्ता दिलाती हैं. ताकि वो आगे आसानी से पढ़ सकें और फिर से मजदूरी करने के लिए मजबूर ना हो.

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