प्रो. आनंद पाटील बने हिंदी विश्‍वविद्यालय के कुलसचिव

वर्धा. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के कुलसचिव के रूप में प्रो. आनंद पाटील ने कार्यभार ग्रहण कर लिया है। उन्‍होंने शुक्रवार, 10 मई को कुलसचिव के पद का पदभार संभाला। प्रो. पाटील विश्‍वविद्यालय के दूर शिक्षा निदेशालय में निदेशक के रूप में कार्यरत हैं। उन्‍हें कुलसचिव पद का अतिरिक्‍त दायित्‍व सौंपा गया है। कार्यभार ग्रहण करने के बाद उन्‍होंने कहा कि विश्‍वविद्यालय के प्रशासनिक एवं अकादमिक कार्यों को गति प्रदान करना उनकी पहली प्राथमिकता होगी। उनकी नियुक्ति पर विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. कृष्‍ण कुमार सिंह सहित अध्‍यापक, अधिकारी एवं कर्मियों ने उन्‍हें बधाई दी है। नांदेड जिले के माचनुर ग्राम में जन्‍मे प्रो. पाटील ने स्‍वामी रामानंद तीर्थ मराठवाड़ा विश्‍वविद्यालय, नांदेड से हिंदी, इतिहास एवं अर्थशास्‍त्र में बी.ए. तथा हैदराबाद केंद्रीय विश्‍वविद्यालय से हिंदी में एम.ए., एम.फिल. (स्‍वर्ण पदक) और पीएच.डी. की उपाधि प्राप्‍त की है। साहित्‍यालोचन, नाट्यालोचन, प्रयोजनमूलक हिंदी, अनुवाद अध्‍ययन, तुलनात्‍मक अध्‍ययन, पारिस्थितिकीय अध्‍ययन, मीडिया एवं पत्रकारिता तथा सिनेमा अध्‍ययन जैसे विषय उनके शोध व शैक्षिक रुचि के क्षेत्र हैं। वे उस्‍मानिया विश्‍वविद्यालय, तमिलनाडु केंद्रीय विवि में सहायक प्राध्यापक, तथा सहायक निदेशक (राजभाषा), प्रशासनिक एवं संपदा अधिकारी रहे हैं। पत्रकारिता एवं जनसंपर्क में उनका लंबा अनुभव रहा है। वे ईटीवी में पटकथा लेखक एवं कार्यक्रम सहायक तथा मीडिया मर्चंट, हैदराबाद में सहयोगी जनसंपर्क अधिकारी रहे हैं। दैनिक स्‍वतंत्र वार्ता एवं दैनिक हिंदी मिलाप, हैदराबाद में उन्‍होंने अनुवादक एवं उप संपादक के रूप में कार्य किया है। उन्‍होंने तमिलनाडु केंद्रीय विश्‍वविद्यालय में अपने कार्यकाल के दौरान हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु ‘हिंदी क्‍लब’ की स्‍थापना की और स्‍थानीय विद्यालयों को जोड़ कर शिक्षा में हिंदी को बढ़ावा दिया है। उन्‍होंने तमिलनाडु केंद्रीय विवि में हिंदी विभाग की स्‍थापना करने में योगदान दिया और हिंदी विभाग के संस्‍थापक अध्‍यक्ष रहे हैं। उनके अनेक ग्रंथ प्रकाशित हैं, जिसमें ‘संस्‍कृति बनाम अपसंस्‍कृतीकरण, हिंदी : विविध आयाम, विश्‍व के बीस अमर उपान्‍यास आदि शामिल हैं। ‘मौन संविधान : भयानक परिणाम पुस्‍तक के वे सह-लेखक हैं। उनके आलेख एवं रचनाएँ अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। वे स्वदेश पत्र में प्रति रविवार प्रकाशित होने वाले ‘वज्रपात’ स्तम्भ के लेखक के रूप में प्रसिद्ध हैं। वे मराठी, हिंदी और अंग्रेजी के साथ-साथ तमिल और तेलुगु भाषा के ज्ञाता हैं।

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