एनकाउंटर की तीन गोलियां, अनेक सुलगते सवाल
(प्रशांत सिंह)
यूपी के गैंगेस्टर विकास दुबे का गत् दिनों एनकाउंटर कर दिया गया।इसके साथ ही कहानी खत्म नहीं हुई वरन् अनेक कहानियां शुरू हो गई हैं।यूं तो एनकाउंटर में उसे तीन गोलियां लगी हैं पर सोशल मीडिया पर अनेक सवालों की गोलियां चल पड़ी हैं। विकास दुबे ब्राह्मण था यह सवाल नहीं है।वह कानून और समाज का मुजरिम था यह सत्य है।दीगर जाति का होता और कानून,समाज का अपराधी होता तो उसका भी यही हश्र होता।एनकाउंटर नहीं होता तो देश की न्याय व्यवस्था उसे फांसी की सजा सुनाती।न्याय के मंदिर में हर जाति,धर्म,सम्प्रदाय एक समान है।
विकास उज्जैन मध्यप्रदेश के महाकाल मंदिर में दर्शन करने के उपरांत पुलिस द्वारा पकड़ा गया।उसने सरेंडर किया या पुलिस ने पकड़ा यह अलग सवाल है।गिरफ्तारी होने के बाद उज्जैन पुलिस ने उसे यूपी एसटीएफ के हवाले किया।एसटीएफ उसे लेकर कानपुर के लिए रवाना हुई।कानपुर के हाइवे पर गाड़ी पलट गई और विकास एक जवान का पिस्टल छीन कर भागने लगा तब उसे गोली मार दी गई।
चली कितनी यह तो पता नहीं पर लगी तीन गोलियां थीं।इन गोलियों के साथ अनेक सवाल सुलगने लगे हैं।सबसे पहला सवाल यह कि विकास को उज्जैन पुलिस ने जब यूपी के एसटीएफ के हवाले किया था तो क्या उसे हथकड़ी नहीं लगाई गई थी,उसे क्या खुला हुआ सौंपा गया था?दूसरी बात क्या एसटीएफ ने भी उस दरिंदे को हथकड़ी नहीं लगाई थी ?
सवाल नम्बर दो-उज्जैन से कानपुर तक की सड़क क्या अच्छी है कि गाड़ी कहीं नहीं पलटी और कानपुर के हाइवे में आकर पलट गई।यानी कानपुर की हाइवे वाहनों के आवागमन के योग्य नहीं है।
सवाल नम्बर तीन-क्या गाड़ी का चालक अनट्रेंड था?अथवा वह एसटीएफ का चालक नहीं था ?यदि एसटीएफ का विभागीय वाहन चालक था तो क्या वह असावधान था जिससे गाड़ी पलट गई?यदि ऐसा है तो वाहन चालक पर सबसे पहले कारवाई होनी चाहिए।विकास के अलावा गाड़ी में अन्य एसटीएफ के जवान की जान को खतरा उत्पन्न हो गया था।जवानों की मौत विभाग के लिए क्षतिकारक होती।
चौथा सवाल यह कि वह जवान क्या इतना गाफ़िल था कि अपनी पिस्टल नहीं संभाल सका जिसे छीन कर विकास भागा?कुछ अजीब सा नहीं लगता है यह?पिस्टल कमर में खुंसा होता है।उसका हत्था लाइन यार्ड से गूंथा होता है जिसे सहज ही नहीं खोला जा सकता।लाइन यार्ड कंधे से फंसा होता है जिसे नहीं खोला जा सकता।कदाचित हाथ में भी पिस्टल हो तो लाइन यार्ड लगा ही रहता है।विकास का पिस्टल छीनना जरा हजम होने वाली बात नहीं है।
पांचवां सवाल यह है कि इतने खूंखार अपराधी को खुला हुआ गाड़ी में क्यों लाया जा रहा था?उसे तो हथकड़ी के साथ बेड़ियों में जकड़ा हुआ होना चाहिए था।पर ऐसा नहीं हुआ।गाड़ी आराम से पलटी,विकास आराम से पिस्टल छीना तथा आराम से भाग भी निकला, एसटीएफ ने भी उसे आराम से गोली मार दी।यह आराम का मामला था।कहीं यह एसटीएफ की सोची-समझी हुई चाल तो न् थी ?क्या ऐसा नहीं लगता कि उसका एनकाउंटर करना था इसलिए गाड़ी धीरे से पलटा दी गई।जवान ने खुला हुआ पिस्टल लूज हाथों से पकड़ा था ताकि उसे विकास आसानी से लूट ले।स्थान भी तय किया लगता है।हाइवे भीड़-भड़ाके वाला इलाका नहीं था।वाहनों का आवागमन जरूर ज्यादा रहता होगा।
अच्छा यह था कि गाड़ी कहीं जाम में फंसती, विकास खाली हाथ उतर कर भागता और उसे गोली मार दी जाती।शायद यह एनकाउंटर सवालों को जन्म नहीं दे पाता। एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि उसके राजनैतिक कनेक्शन थे।सफेदपोश विकास की मौत के बाद अब बेनक़ाब नहीं हो पाएंगे।ऐसा भी सवाल हवा में है कि विकास का एनकाउंटर उन्हीं सफेदपोशों की मंशा है जिन्हें अपना भेद खुलने का भय था।बहरहाल बहुत सारे सवालों का जवाब आगे चलकर सामने आएं जैसे उसके खाते, बेनामी संपत्तियां देश और देश बाहर की सामने आ रही हैं।विकास को तो आगे चलकर न्यायालय भी पूरी सुनवाई और मौका देने के बाद फांसी ही देता।तब शायद समाज में छिपे सफेदपोश भी नहीं बच पाते।देखिये अब आगे-आगे होता है क्या ?