May 8, 2024

षट्कर्म विधि से पाएं शरीर की शुद्धि और रोगों से मुक्ति

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि कोरोना वायरस की दूसरी लहर से पूरा देश त्राहि कर रहा है। ऐसे में शरीर को स्वस्थ्य रखने के लिए योग करना बहुत ही जरूरी है लेकिन षट्कर्म का अपना एक अलग महत्व है। आमतौर पर इन क्रियाओं को योगी लोग करते हैं। लेकिन इसे आम व्यक्ति भी आसानी से कर सकता हैं। षट्कर्म करने से शरीर अंदर से साफ और शुद्ध हो जाता है यानि शरीर के विषाक्त तत्व बाहर निकल जाते हैं। इसमें शरीर को 6 तरीके से डिटॉक्स किया जाता है।  हमारे शरीर में तीन तरह के दोष होते है-वात, पित्त और कफ जिसका असंतुलन सामान्यतः किसी को भी हो सकता है| इस षट्कर्म का अभ्यास  करने से आप  इन दोषो और अन्य रोगों से मुक्ति पा सकते है।

षट्कर्म क्रिया के अंतर्गत नेति, कपालभांति, धौति, नौलि, बस्ति और त्राटक क्रिया आती हैं। इस क्रिया से शरीर के सारे अंग तो मजबूत होते हैं साथ ही कई रोगों से मुक्ति मिलती है । टॉक्सिन हटने से हड्डियां मजबूत होती है। हार्मोंस बढ़ाने में मदद करती है। इम्यूनिटी पॉवर बढ़ाने के साथ एनर्जी लेवल को भी बढ़ता है। आपको बता दें कि इनमें से कुछ क्रियाएं बहुत कठिन होती हैं इसलिए इनका अभ्यास अनुभवी योगाचार्य के सानिध्य में करना चाहिए। आइये जानते है कैसे करें इन्हें। *1- नेति क्रिया* – इस क्रिया के को 4 तरीकों से किया जाता है। जो सूत्र नेति, जल नेति, क्षीर -दूध नेति, घृति नेति -तेल नेति और दुग्ध नेति होती। इन्हें करने सर्दी-जुकाम, एलर्जी, बुखार, गले नाक की  अच्छी तरीके से सफाई हो जाती है।

*सूत्र नेति* – इस क्रिया के द्वारा शरीर का शुद्धिकरण होता है। इस क्रिया के लिए पहले धागे का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन अब यह आसानी से मेडिकल स्टोर में मिल जाता है। इस क्रिया में पहले इस सूत्र नेति को पानी से साफ करके नाक से धीरे-धीरे डाला जाता है जिसे मुंह से निकाला जाता है। मिर्गी के दौरे या अधिक चक्कर आते है तो सूत्र नेति को करने से बचें। किसी भी तरह की एलर्जी, नाक के अंदर मांस या हड्डी बढ़ जाएं तो सूत्र नेति फायदेमंद है।इससे नाक और गले की आंतरिक सफाई होती है और इससे गलें में खराश व नाक का संक्रमण दूर किया जा सकता है|
*जल नेति*  – इस किया में हमें जल का प्रयोग करना होता है | इसके लिए एक तरफ से नाक के होल में पानी डाला जाता है वह दूसरी तरह के होल  से आसानी से निकल आता है।  इसके लिए नलीदार बर्तन का उपयोग करते हैं|  लेकिन आपको पानी नाक से खींचना नहीं है.  ऐसा करने से आपकों परेशानी का अनुभव हो सकता है |  इस जल में आप चाहे तो थोड़ा सा सेंधा नमक भी डाल सकते है।  जल नेति करने से  माइग्रेन, सर्दी जुकाम खाँसी में लाभ मिलता है।

*क्षीर -दूध नेति* – इस नेति को दूध से किया जाता है। ये जल नेति की तरह किया जाता है। बस जल की जगह दूध का इस्तेमाल किया जाता है| इस नेति को करने से पित्त, वात, डिप्रेशन, आंखों की ज्योति के साथ सिरदर्द में फायदेमंद है।
*घृति नेति -तेल नेति* – इसे गाय के घी या फिर तिल के तेल से किया जाता है। इसे भी जलनेति और क्षीर नेति की तरीके से किया जाता है।
*2- धौति क्रियाएं* – यह 2 तरह की होती है पहली वस्त्र धौति और दूसरी जल धौति – *वस्त्र धौति* -धौति का मतलब धोना और साफ करना। इस क्रिया को करने से पाचन प्रणाली ठीक रहती है। इसके साथ ही पित्त और कफ को दूर करने के साथ शरीर को पूरी तरह नॉर्मल करता हैं। इस क्रिया में 21 फीट लंबी धोती यानी कपड़े की 1-2 इंच चौड़ाई का कपड़ा होता है। इसे करने के आधा घंटे पहले पानी में भिगो दें। इसके बाद इसे थोड़ी सी आगे मोड़ मुंह से अंदर डाले। ये आसानी से आपके अंदर चली जाएगी। इसके बाद इसे आराम-आराम से निकाल लें। इससे कफ की समस्या से निजात मिलेगा।  *जल धौति* – इस क्रिया को करने से एसिडिटी और कफ की समस्या से निजात मिलता है। इसके लिए करीब 2 लीटर गर्म पानी में नीबू और सेंधा नमक मिलाएं। मल विसर्जन करते समय जिस प्रकार बैठते हैं पानी पेट भर पी लें । पानी पीने के बाद खड़े होकर दाएं हाथ की तर्जनी तथा मध्यम उंगलियों को गले में डाल कर पेट के पानी को बाहर निकालें।
*3.वस्ति क्रिया* – वस्ति कर्म दो प्रकार का है – जल वस्ति और शुष्क वस्ति। *जल वस्ति* का अभ्यास जल में और *शुष्क वस्ति* का अभ्यास भूमि (सूखे) पर किया जाता है। नाभि पर्यन्त जल में बैठकर उत्कट आसन लगाएँ और गुदा प्रदेश को सिकोड़ें और फैलाएँ (आकुंचन और प्रसारण), इसी को जल वस्ति कहा गया है। इस अभ्यास के लिए किसी बड़े पात्र में या नदी, तालाब में नाभि तक जल में स्थित होना चाहिए और उत्कट आसन लगाएँ एवं गुदा द्वार का आकुंचन और प्रसारण करें, जैसे अश्व आदि जानवर मल त्याग के समय करते हैं। अधिक से अधिक गुदा द्वार को सिकोड़ें और फैलाएँ। ऐसा करने से पहले जल थोड़ी-थोड़ी मात्रा में अंदर जाता है फिर अभ्यास हो जाने पर जल की मात्रा बढ़ जाती है। और आंतों में चिपका मल जल को बाहर करते समय निकल जाता है। इससे आंतरिक अंगों की सफ़ाई हो जाती है। चूँकि गंदगी निकलती है अतः यह क्रिया बहते पानी में करें | इसके बाद  5 योगासन करें | *जिसमे ताड़ासन, तिर्यक ताड़ासन, कटिचक्रासन, त्रियक भुजंगासन, उदारकर्षण आसन*
*कुंजल क्रियाः* इस क्रिया का अभ्यास से पेट व गले का संक्रमण दूर किया जा सकता है. इस क्रिया में चार से पांच गिलास पानी पीना होता है, इसमें गुनगुना पानी, दो चममच सैंधा नमक डालकर पीना होता है. पानी पीने के बाद उल्टी कर सारा पानी निकाल देना होता है. जिससे आंतरिक हिस्सों में हुए संक्रमण को साफ किया जा सके।
*षट्कर्म करते समय बरतें ये सावधानी* – सूत्र नेति करने वाले एक दिन पहले रात को गाय का घी या तिल का तेल नाक में डाल लें। ऐसा करने से आपकी नाक मुलायम हो जाएगी। जिससे सूत्र नेति करते समय  खून नहीं आएगा। हाई ब्लड प्रेशर , हार्ट संबंधी समस्या हैं तो वह बिना योगाचार्य की मौजदूगी में करने से बचें। जलनेति करते समय मुंह बंद न रखें यानी सांस मुंह से लेनी है। इसके साथ ही नाक से पानी को खिंचना नहीं है। इससे वह माथे में पानी, घी, तेल चढ़ जाएगा। जिससे आपको दर्द की समस्या हो सकती है।
योग गुरु महेश अग्रवाल ने कहा कि  सभी निरोगी रहें के दर्शन को साथ लेकर चलने वाला आज अपना देश कोरोना के कहर से जूझ रहा है |  एक शहर से पूरी दुनिया भर में फैल जाने वाले इस वायरस ने सभी की नाक में दम कर रखा है और वैज्ञानिक चिकित्सा विज्ञान में इसका हल खोज रहे हैं. संकट की इस घड़ी में हमें अपने आयुर्वेद और भारतीय मनीषा की ओर एक बार फिर ध्यान से देखने की जरूरत है. *आयुर्वेद में यह प्राचीन काल से स्पष्ट है कि वात-पित्त और कफ का असंतुलन होना ही रोग होना है कई बार यह असंतुलन मौसम और जलवायु परिवर्तन पर होता है तो कई बार सूक्ष्म परजीवी कारकों यानी कि जीवाणु-विषाणु के आधार पर |  आयुर्वेद वात-पित्त-कफ के संतुलन पर जोर देता है और इसके लिए योग व आसन की कई प्रक्रियाएं हैं| इन्हीं में शामिल *षटकर्म क्रियाएं शरीर का आंतरिक शोधन करती हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर किसी भी  संक्रमण से दूर रखती हैं*|  इसलिए जरूरी है कि किसी योगाचार्य की देखरेख में इनका अभ्यास किया जाना चाहिए.
*इसे करते रहने से सर्दी-जुकाम और खांसी की शिकायतों से मुक्ति मिलती है. कोरोना के प्रारंभिक लक्षण यही हैं, इसलिए इस क्रिया के जरिए संक्रमण से बचाव किया जा सकता है |*

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