May 2, 2024

‘सनातन परंपरा और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम’ विषय पर अंतरराष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम सनातन परंपरा का अनुसरण करने वाले गंभीर व्‍यक्तित्‍व हैं : डॉ. भीमराय मेत्री

हिंदी विश्‍वविद्यालय में श्रीराम लला की प्राण-प्रतिष्‍ठा समारोह के निमित्त

दीपोत्‍सव, अंतरराष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी और सुन्‍दरकाण्‍ड का आयोजन

वर्धा.  महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय में अयोध्‍या में 22 जनवरी को आयोजित प्रभु श्रीराम लला की प्राण-प्रतिष्‍ठा समारोह के आलोक में विश्‍वविद्यालय एवं महाराष्‍ट्र राज्‍य हिंदी अकादमी, मुंबई के संयुक्‍त तत्‍वावधान में ‘सनातन परंपरा और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम’ विषय पर आयोजित अंतरराष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी की अध्‍यक्षता करते हुए कुलपति डॉ. भीमराय मेत्री ने कहा कि सनातन परंपरा का अर्थ है ऐसी परंपरा जो कभी समाप्‍त नहीं होती हो, जो लोक मंगल का विधान करती हो, लोक का कल्‍याण चाहती हो, जो शाश्‍वत है, ऐसी सनातन परंपरा को मैं बार-बार प्रणाम करता हूँ और उस सनातन परंपरा में रहने के लिए मैं अपने आप को गौरवान्वि‍त महसूस करता हूँ। सनातन परंपरा हजारों वर्षों के तप से निकली परंपरा है, जिसमें सब कुछ पावन ही पावन है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम उस सनातन परंपरा के मार्ग का अनुसरण करने वाले गंभीर व्‍यक्तित्‍व हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम लोक उद्धारक, पतित पावन, भक्‍त वत्‍सल और कृपानिधान है। उनमें उदारता कूट-कूट कर भरी है। वे धैर्य के पर्वत हैं। असामान्‍य परिस्थिति में भी विचलित होने वाले नहीं हैं। वे त्‍याग की प्रतिमूर्ति हैं। वे दया, करुणा, क्षमा आदि के साथ दीनों के उद्धारक के रूप जाने जाते हैं। वे समरसता में विश्‍वास करने वाले हैं। कुलपति डॉ. मेत्री ने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम शक्ति, शील एवं सौंदर्य के उपासक हैं। वे जीवन में चरित्र पर सर्वाधिक बल देते हैं और लोक मर्यादा को ध्‍यान में रखकर कार्य करते हैं। उनका रूप कामदेव से भी सुंदर हैं। “कोटि मनोज लजाव निहारे”। ऐसे दिव्‍य पावन चरित्र को, लोक-उद्धारक पतित पावन रूप को, लोक का मंगल का विधान करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम को मैं बार-बार प्रणाम करता हूँ। इस अवसर पर कुलसचिव डॉ. धरवेश कठेरिया मंच पर उपस्थित थे।

            विशिष्‍ट वक्‍ता के रूप ऑनलाइन संबोधित करते हुए मुंबई विश्‍वविद्यालय के प्रो. करुणाशंकर उपाध्‍याय ने कहा कि आचार्य तुलसीदास, भवभूति, संत नामदेव और संत कबीर ने राम के उदात्त गुणों का वर्णन अपने काव्‍य में किया है। संत कबीर ने अपने दोहे में राम नाम की खेती करने की बात कही है आज विश्‍व में राम व्‍याप्‍त हैं। राम का लोक कल्‍याणकारी रूप सर्वत्र दिखाई दे रहा है। क्‍वांगटोंग विश्‍वविद्यालय, चीन के डॉ. विवेकमणि त्रिपाठी ने कहा कि राम के बिना सनातन संस्‍कृति की कल्‍पना नहीं की जा सकती है। राम लोक के तथा लोकमंगल की कामना का भी नाम हैं। वाराणसी के प्रो. श्रीनिवास पांडेय ने कहा कि राम का व्‍यक्तित्‍व विराट है। वे जड़ व चेतना में विद्यमान हैं। हमें राम के दर्शन पर गंभीरता से काम करने की आवश्‍यकता है। विषय प्रवर्तन करते हुए अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. कृष्‍ण कुमार सिंह ने कहा कि तुलसी के राम में आदि से अंत तक मर्यादा जुड़ी हुई है। राम का संपूर्ण जीवन मर्यादा का और अव्‍यर्थ लक्ष्‍य एवं अव्‍यर्थ वाक् का साक्षी है। साहित्‍य विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. अखिलेश कुमार दुबे ने कहा कि राम सनातन के साक्षात स्‍वरूप हैं। उनमें शक्ति, शील और सौंदर्य विद्यमान हैं। संगोष्‍ठी का शुभारंभ दीप प्रज्‍ज्‍वलन एवं प्रभु श्री राम की प्रतिमा पर पुष्‍पार्पण कर किया गया। हिंदी साहित्‍य विभाग की प्रो. प्रीति सागर ने संचालन तथा तुलनात्‍मक साहित्‍य विभाग के अध्‍यक्ष डॉ. रामानुज अस्‍थाना ने धन्‍यवाद ज्ञापित किया। मंगलाचरण संस्‍कृत विभाग के शोध छात्र साहिबुदेव शर्मा द्वारा किया गया। राष्‍ट्रगान से कार्यक्रम का समापन किया गया। इस दौरान अधिष्‍ठातागण, विभागाध्‍यक्ष, अध्‍यापक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे।

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