May 3, 2024

NASA की स्टडी में खुलासा : 9 साल बाद चांद की स्थिति में होगा बदलाव, दुनिया पर मंडरा रहा भयानक खतरा


ह्यूस्टन. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) की नई स्टडी के अनुसार चांद हमेशा से समुद्री लहरों पर असर डालता है और चांद अपनी कक्षा (Moon Orbit) में जरा सा भी बदलाव करते है तो धरती के कई तटीय इलाकों में बाढ़ का खतरा मंडराने लगता है. नासा की यह स्टडी पिछले महीने नेचर क्लाइमेट चेंज (Nature Climate Change) में प्रकाशित हुई है.

18.6 साल में चांद बदलता है अपनी जगह

नासा की स्टडी के अनुसार, चांद का खिंचाव और दबाव साल दर साल संतुलन बनाए हुए हैं, लेकिन 18.6 साल में अपनी जगह पर हल्का सा बदलाव करता है. इस दौरान आधे समय चांद धरती की लहरों को दबाता है, लेकिन आधे समय ये लहरों को तेज कर देता है और उनकी ऊंचाई बढ़ा देता है, जो खतरनाक है.

18.6 साल की सर्कल का आधा हिस्सा शुरू होने वाला

नासा (NASA) ने बताया कि चांद के 18.6 साल की सर्कल का आधा हिस्सा शुरू होने वाले है, जो धरती की लहरों को तेज करेगा. अगले 9 साल में यानी साल 2030 तक वैश्विक समुद्री जलस्तर काफी ज्यादा बढ़ चुका होगा और इसकी वजह से दुनिया के कई देशों में तटीय इलाकों में बाढ़ आ सकती है.

1880 से 8-9 इंच बढ़ चुका है समुद्री जलस्तर

नेशनल ओशिएनिक एंड एटमॉस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) के मुताबिक साल 1880 से अब तक समुद्री जलस्तर 8 से 9 इंच तक बढ़ चुका है और इसमें से एक तिहाई यानी करीब 3 इंच बढ़ोतरी पिछले 25 सालों में हुई है. रिपोर्ट के अनुसार साल 2100 तक समुद्री जलस्तर 12 इंच से 8.2 फीट तक बढ़ सकता है और यह दुनिया के लिए काफी खतरनाक होगा.

2030 तक बहुत ज्यादा बढ़ जाएंगे न्यूसेंस फ्लड

NOAA की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में हाई टाइड की वजह से अमेरिका में 600 बाढ़ आई थी. अब NASA की एक नई स्टडी से खुलासा हुआ है कि साल 2030 तक अमेरिका समेत दुनिया भर में कई जगहों पर न्यूसेंस फ्लड (Nuisance Floods) की मात्रा बढ़ जाएगी. इसके साथ ही हाई टाइड के समय आने वाली लहरों की ऊंचाई करीब 3 से 4 गुना ज्यादा हो जाएगी. बता दें कि हाई टाइड की वजह से आने वाली बाढ़ को न्यूसेंस फ्लड (Nuisance Floods) कहते हैं.

चांद की स्थिति बदलना होगा खतरनाक

नासा की स्टडी के अनुसार, हर बार चांद की स्थिति बदलना खतरनाक होगा और तटीय इलाकों पर आने वाले न्यूसेंस फ्लड (Nuisance Floods) की संख्या भी बढ़ती जाएगी. इससे बचने के लिए दुनियाभर की सरकारों को योजनाएं बनानी होंगी और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करना होगा.

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