May 2, 2024

डॉक्टर्स डे पर विशेष : डॉक्टर बनकर अपने बच्चों को समय तो नहीं दे पाए, लेकिन खुशी है कि हजारों लोगों की जान बचा सके

बिलासपुर. डॉक्टर को भगवान का दूसरा रूप इसलिए कहा जाता है, क्योंकि जो त्याग जीवन में वो करता है शायद ही आम इंसानकरता हो। कुछ ऐसी ही त्याग की कहानी का इस विशेष दिन पर जिक्र करना आवश्यक है। बिलासपुर के जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ. मनोज सैम्युअल और कोटा में पदस्थ पीजीएमओ उनकी पत्नी डॉ. रेणुका सैम्युअल दोनों ही पेशे से डॉक्टर हैं। इन्होंने पूरी मेहनत और ईमानदारी से अपनी सेवाएं लोगों को दी। इसके चलते वह अपने बच्चों को उतना समय नहीं दे पाए, जितना की एक माता-पिता को अपने बच्चों को देना चाहिए। इस सबके बीच डॉ. मनोज सैम्युअल का कहना है उन्हें इस बात का दु:ख तो है कि वह अपने बच्चों को पूरा समय नहीं दे पाए, लेकिन सबसे बड़ी खुशी इस बात की है उन्होंने अपने राज्य और देश के लोगों के लिए सच्ची सेवा दी है और इसी की बदौलत वह हजारों लोगों की जिंदगियां बचा पाए हैं।

डॉ. मनोज सैम्युअल ने बताया उनका जन्म1 जुलाई 1960 को बिलासपुर जिले के तखतपुर में हुआ। वहीं उन्होंने प्राथमिक शिक्षा ली। माता स्टॉफ नर्स और पिता फॉर्मासिस्ट थे। माता-पिता मेडिकल लाइन से थे तो उन्होंने भी डॉक्टर बनने के लिए जबलपुर मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया। इसके बाद पहली पोस्टिंग अंबिकापुर जिले के आदिवासी क्षेत्र जनकपुर में हुई। उस समय घोर जंगली क्षेत्र जनकपुर कुमारपुर में सेवा देने से लोगों से आत्मीय जुड़ाव हुआ। तब लोग डॉक्टर क्या होता है जानते भी नहीं थे, लेकिन चार साल तक वहां सेवा देने के दौरान उनसे एक परिवार की तरह संबंध बने। उस समय एपेडेमिक की समस्या अधिक थी। काफी लोग बिना उचार के मर जाते थे। इलाज के उतने संसाधन नहीं थे। इस पर खाट में लिटाकर लोगों को डिप लगाकर उनका उपचार किया और सैकड़ों जिंदगियां बचाई। आज भी वहां से लोगों के फोन आते हैं। इसके बाद रायगढ़, खरसिया, तखतपुर और अब बिलासपुर में सेवाएं दे रहा हूं।

टीम वर्क से कोविड ड्यूटी में सभी चुनौतियों पर खरे उतरे
डॉ. सैम्युअल बताते हैं कोरोना फस्ट फेज के दौरान वह रेलवे हॉस्पिटल के प्रभारी थे। उस समय लोगों की जिंदगी बचाने से महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं था। इसमें सबसे अहम चीज थी उनके अंदर के आत्मविश्वास को जगाना। इसके लिए हॉस्पिटल से जो भी कोरोना संक्रमितठीक होकर डिस्चार्ज होता था तो उसे सीएमएचओ और वह अपनी टीम के साथ तालियां बजाकर विदा करते थे। इससे दूसरे मरीजों को ठीक होने के लिए आत्मबल मिला। बच्चे बड़े होने और पत्नी के डॉक्टर होने से कोविड ड्यूटी में घर की कोई बाधा सामने नहीं आई और पूरी ईमानदारी से ड्यूटी की। इसके बाद कोविड वैक्सीनेशन की जिम्मेदारी मिली उसे भी चुनौती के रूप में स्वीकार करके पूरी कर रहे हैं।

कोविड से जंग में लोगों का साथ जरूरी
डॉ. मनोज सैम्युअल का कहना है कोरोना की इस लड़ाई में लोगों का सहयोग काफी जरूरी है। वह कोविड वैक्सीनेशन कराने के साथ ही सेनेटाइजर, और मास्क लेकर चलना न भूलें। बाहर से घर आने पर अपने हांथ-पैर अच्चे से धुलें। यदि हम कोविड नियमों का पालन सही से करेंगे तो कोरोना से जंग भी जल्द जीत पाएंगे।

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