May 13, 2024

स्कूल के सुनहरे दिनों की कहानी कु.रितिका की जुबानी

बारहवीं की पढ़ाई के बाद विद्यार्थी के जीवन मे एक नया मोड़ आता है और वह अपने जीवन का लक्ष्य तय करके आगे की पढ़ाई की तैयारी करता है । इसी के साथ ही उसके जीवन मे स्कूल की खट्टी-मीठी सुनहरी यादें हमेशा के लिए कैद हो जाती है। और समय समय पर किसी चलचित्र की भांति उभर कर सामने आती रहती है। इस वर्ष बारहवीं की पढ़ाई पुरी करने वाली सरस्वती उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की छात्रा कु.रितिका थवाईत ने अपने स्कूल के प्रारंभिक दिनों से लेकर बारहवीं तक की 14 वर्ष के सफर को अपने शब्दों मे लिखा है जिसे हम यहां ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर रहे है……..
रास्ता मंजिल का दिखाने वाला एक वो खुबसूरत सफर था, कोई और नाम मत देना उसे वो दूसरा मेरा घर था।
अरुण कक्षा से लेकर बारहवीं कक्षा तक मै कभी स्कूल जाने से रोयी नही लेकिन आज स्कूल छुटने से मन बहुत उदास है। वो पहली बार खुशी से स्कूल वाली रिक्शा से स्कूल जाना, उस रिक्शे मे ही मेरी पहली दोस्त प्राची से मुलाकात होना, साथ मे विशाल और साहिल शशांक से भी बात करना, घर से स्कूल तक का सफर बड़े मजे आते थे, रिक्शे मे बैठता कोई नही था सब पीछे मे लटकर जाते थे। वो हटरी वाली स्कूल की बदबु, वो गलियों मे जोर जोर से चिल्लाना, टिफिन बॉटल का यूं ही कहीं खो जाना,हस्तकला प्रतियोगिता, आचार्यो का रोज चॉक चोरी करना, सबके साथ खो खो कबड्डी खेलना,बड़े दीदी लोग के साथ मस्ती करना, साल मे एक बार फैन्सी कपड़ो मे जाना। थोड़े बड़े हुए तो नये दोस्त बने,मेरी दोस्ती सम्प्रति से हुई और बहुत कमाल की हुईं, रिक्शा के बाद उसके साथ ही स्कूल जाना, विपिन भी साथ आया, तीनो साथ ही स्कूल जाते थे। हमारी यारी सबसे प्यारी थी,दोस्त तो बहुत थे लेकिन किसी से मतलब भी नही थी।
दूसरी कक्षा मे मेरी श्रुति और सुहानी से बात हुई, तीसरी कक्षा मे बहुत से नये दोस्त आये, तब तनिशा प्रतिभा श्रेया दिशा से हुई वो हर साल डांस मे भाग लेना, और बदले मे सिर्फ पेन मिलना, सब एक बाथरूम मे घुस जाते थे और वही डांस करते रहना। परीक्षा मे सबको आन्सर्स बताना,
क्लास के लड़को को राखी बांधना और उनसे गिफ्ट लेना, आचार्यो का सबके घर संपर्क मे जाना, दिवाली छुट्टी मे मर मर के गृहकार्य पुरा करना वो b सेक्शन मे जाने से शर्माना और सहेलियों को वही धक्का देकर भाग जाना, हर साल विवेकानंद जयंती पर खुशी से रैली मे जाना, रंगोली, पाककला , कृष्ण सजाव जैसे मेरा हर प्रतियोगिता मे भाग लेना पाचवी कक्षा की तो बात ही निराली हैं,लड़की तरफ से मै और लड़का तरफ से विशाल कप्तान बना। सब टीचरों की फेवरेट बनना, और बनती भी क्यूँ ना टॉपर जो थी, हर बार टॉप करती थी और पाचवीं मे पूरे स्कूल मे टॉप की थी, उस टाइम सुहानी दूसरा और तनिशा तीसरा आई थी। वो मेधावी छात्र के लिए चयन होना, पहाड़ा प्रतियोगिता मे मेरे वजह से दूसरा स्थान आना और B सेक्शन वाले का पहला आने पर खुश होना, इसी समय बगल वाले मन्दिर मे जाकर खूब खेला करते थे, एक दिन वहां के मालिक ने शिकायत लगाया और शिकायत मे नाम मेरा ही आया। पहली बार स्कूल की तरफ से गांव यात्रा मे गौद गांव गये, उसके बदले में सबको एक कॉपी मिले और वो कॉपी एक याद बनकर मेरे पास ही रह गये नृत्य के लिए भालेराय मैदान गए तो सबको हमारे डांस का सी डी कैसेट भी मिला।
हटरी वाले स्कूल मे सिर्फ पांचवीं क्लास ही थे तो हम उस समय बड़े शिशु मंदिर मे ही पढ़ने के सपने देखते थे,फिर सच मे हटरी वाले स्कूल से बड़े शिशु मंदिर जाने का दिन आया। स्कूल तो सरस्वती शिशु मंदिर ही था पर वहा के लोग अलग थे, आचार्य अलग थे, पुरा माहौल ही अलग था। आज भी याद है वहां का पहला दिन, किस क्लास मे बैठने के लिए भटक रहे थे, समझ कुछ आ नही रहा था बस इधर उधर ही घूम रहे थे।
इसी दिन बारहवीं की एक दीदी के मुंह से किसी भैया को गाली देते हुए सुना, तब पता चला की स्कूल के नाम तो एक ही हैं पर दोनो स्कूलों मे बहुत फर्क है।  यहाँ अपने पुराने सिनियरो से भी मुलाकात हुई, सब सहेलियों के दीदी भैया से भी पहचान हुई, शॉर्ट रिशेष मे अगर अपने दीदी भैया दिख जाते तो अलग ही रोल मारते थे, अगर वो गलती से क्लास आ जाए तो वो तेरे भैया आये है कहकर सब बताते थे।
आचार्य भी हमको उन्हीं के बहन है बोलकर पहचानते,और हम भी अपने भैया दीदी के नाम से पहचान करवाते। तभी क्लास मे कुछ और भी लोग थे जिसे हम नहीं पहचानते थे, वो लोग उसी स्कूल के थे और हम लोग हटरी वाले स्कूल के थे। बस इसी बात से होती थी लड़ाई, इन्ही लड़ाइयों की वजह से कइयों ने सेक्शन बदल कर की पढाई।
छठवीं सातवीं आठवीं तो बस ऐसे ही निकल गए, नौवीं मे हम फ्रॉक से सलवार कुर्ती मे आने लग गये। प्रार्थना के समय हॉल जाते तो वहां भी फूल कामेडी चालू रहती, वहां के माहौल से अगर थोड़ा सा भी हंस देते तो सबकी नज़र हम पर ही रहती।
1 घंटा का प्रार्थना बड़ा बोर लगता था अगर कभी लेट हो जाते तो सबके सामने से कान पकड़ कर जाना पड़ता था।
बर्थडे पर सबके सामने खड़े कराकर बधाईयां देते, किसी किसी दिन सुभाषितानी भी बोलवाते, कौन अध्यक्ष और किसको क्या पद मिल रहा है सब बड़े ध्यान से सुनते, सभी मिलकर टीचर्स डे बहुत प्यार से मनाते। विज्ञान मॉडल मे हम भी भाग लिया करते थे, घोष की आवाज सुनते ही सब क्लास के बाहर आ जाया करते थे।
नवमीं क्लास के लास्ट दिन ट्रुथ एंड डेयर  यादगार बन गयी,अब आगे बोर्ड का क्लास था मन मे डर की तूफान आ गयी खुशकिस्मती से 10th मे ही सारे मजे कर लिए, उस समय दोस्त भी वैसे ही बन गए,लड़की तरफ से कप्तान अपनी ही बेस्टि बनी,
फिर क्या हमें उसकी बातें माननी पड़ी । हर कालखंड मे कुछ ना कुछ खाते रहते थे, पानी खत्म होने पर लड़के लोग से बॉटल भरवाते थे। कभी वो नीचे पहुँच जाते तो ऊपर से ही फेंक कर देते थे। रोज लड़को को चाॅक से मारना और उनका भी बराबर हमसे बदला लेना। याद है वो समोसा पार्टी, मोती के माले से खेलना और याद है वो पानी छिड़कने वाला बदला। क्लास बंक भी बहुत किये,कभी भाग गए तो कभी बाथरूम मे ही छिप गए। गणित वाले टीचर से मार भी बहुत खाये, पहली बार स्कूल मे रोई क्योंकि हाफ ईयर्ली मे कम नंबर आये कंप्यूटर क्लास मे गेम खेलने के लिए दीदी जी को भी बहलाए। ऐसे करते करते ये बोर्ड क्लास भी निकल गये.आगे सबके बिछड़ने का दुःख भी था,हमारे ग्रुप मे हम तीनों के छोड़ सबने अलग अलग सब्जेक्ट्स ली।
अब पहले जैसा कुछ भी नही था,  बस थोड़ी देर के लिए मुलाकात वरना दूर से ही देख लेना काफी था। कईयों का पहला प्यार भी वहीं देखा,और फ्रेंडशिप मे भी बदलाव देखा। स्कूल के बाद फ्रेंड्स के साथ गुपचुप पार्टी, क्लास के लड़को का बदमाशी, फिजिक्स की एक्स्ट्रा क्लास, फिर प्रेक्टिकल एक्जाम 11th के लास्ट दिन चल रहे थे,तभी सब तरफ कोरोना वाली खबर फैल रहे थे। अप्रैल मे एनुअल एक्जाम थी, हमें मार्च मे ही छुट्टी मिल गयी थी। पूरे देश मे संपूर्ण लॉकडॉउन लग गयी, हमारी अप्रैल वाली एक्जाम कैंसल और 11th मे जनरल प्रमोशन मिल गयी।
सब अचानक से हुआ, पता नही था, हमारा 12th क्लास बर्बाद हो जायेगा। 12th मे आनलाइन क्लास से पढ़ाई हुई और हर महीने असाइनमेंट कॉपी जमा हुई। तभी महीने मे एक बार दोस्तो से मिलना हो जाता था, घर मे सारा दिन स्कूल के यादो मे ही गुजर जाता था। मजे तो बहुत करने थे, हम लोगो के काफी सपने थे, काफी चीजे हम लोगो ने सोच रखी थी, पर सब अधूरे रह गए। फेयरवेल भी सबके साथ मनाना था,पर कॉमर्स अलग और बायो ग्रुप अलग फेयरवेल मनाये। पार्टी तो कर ली, लेकिन अपने ही साथ नही थे, यहां तक पहुँच कर सबके असली चेहरे देख लिए थे। आखिरी के दिनों में स्कूल खुले भी, गए भी, और मजे भी किये। चार दिन की खुशी थी, फिर से कोरोना की लहर थी। टाटा , बाय बाय हो गया स्कूल से, एक्जाम की तैयारी मे लग गए लगन से।
बोर्ड की तारीखे भी आई, एक्जाम पोस्टपोन्ड भी हो गया, और एक्जाम घर बैठे भी दिला लिए। वक़्त ने हम बदकिस्मतो पर ऐसी मार मारी की ना तो हम अपनी पुरानी यादें समेट पाए, और ना आखिरी लम्हें साथ जी पाए। अब बस एक आखरी मुलाकात बाकी है,उस पल भी कई लोग साथ नहीं होंगे,फिर सबके अपने नये रास्ते,नयी जिंदगी और नये दोस्त होंगे। कल सुबह हम यहां नहीं होंगे,  कभी फैमिली थे अब विजिटर्स बनेंगे, ग्रूप फोटो वो आखरी थी, जिसमे आखिरी बार हम साथ थे। अब पता नही ये 14 साल मे जो दोस्त बने उनमे से जिंदगी भर कौन साथ  निभायेंगे,क्या पता जो आज है हमारे ,वो शायद कल नही होंगे। यादों का सिलसिला तो बहुत लम्बा हैं और याद करने को पूरी जिंदगी पड़ी हैं। बाकी जो अपने हैं वो हमें याद करते रहना, वक़्त मिल गया तो हमसे मिलते रहना!!
कु.रितिका थवाईत 
चांपा
छत्तीसगढ़

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