May 6, 2024

छत्तीसगढ़ के किसानों के हितों के संरक्षण के लिए संशोधित मंडी एक्ट क्यों और किसके इशारे पर रोका गया है?

रायपुर. छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करना और दबाव पूर्वक रिमोट कंट्रोल से संचालित करने का कुत्सित प्रयास असंवैधानिक है। हाल ही में देश के सबसे बड़ी अदालत को भी भाजपा सरकार के खिलाफ़ कड़े कमेंट करने पड़े। छत्तीसगढ़ के किसानों के हितों के संरक्षण का बिल, छत्तीसगढ़ कृषि उपज मंडी (संशोधन) विधेयक 2020 राजभवन में किसके इशारे पर रोका गया है? उल्लेखनीय है कि केंद्र की मोदी सरकार के द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों में किसानों के बजाय पूंजीपतियों को लाभ देने के प्रावधान किए गए हैं, जिससे छत्तीसगढ़ के किसानों को बड़े पूंजीपतियों के शोषण से बचाने के लिए लोकतांत्रिक सीमा में रहकर छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने 2 दिनों का विशेष सत्र बुलाकर अक्टूबर 2020 में ही कृषि उपज मंडी (संशोधन) विधेयक 2020 पास किया है। संशोधन विधेयक के अनुसार उक्त कानून के तहत कृषि, उद्यान कृषि, पशु पालन, मधुमक्खी पालन, मत्स्य पालन या वन संबंधी सभी उत्पाद चाहे वह प्रसंस्कृत या विनिर्मित हो या ना हो, को कृषि उपज कहा गया है। विधेयक में राज्य सरकार राज्य में कृषि उपज के संबंध में ज़रूरत पड़ने पर मंडी स्थापित कर सकेगी और निजी मंडियों को “डिम्ड मंडी“ घोषित कर सकेगी। संसोधन विधेयक के अनुसार किसानों के हित को देखते हुए मंडी समिति के सचिव, बोर्ड या मंडी समिति का कोई भी अधिकारी या सेवक जिसे सक्षम प्राधिकारी द्वारा नियुक्त किया गया है, कृषि उपज का व्यापार करने वालों को क्रय विक्रय से संबंधित लेख तथा अन्य दस्तावेज को पेश करने का आदेश दे सकता है, तथा कार्यालय, भंडारगार आदि का निरीक्षण भी कर सकता है। किसानों के हितों के संरक्षण के लिए किए गए नए प्रावधानों में कीमत प्राप्त करने ऑनलाइन भुगतान के लिए इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म की स्थापना का भी उल्लेख है। इतने महत्वपूर्ण विधेयक जिससे छत्तीसगढ़ की 80 प्रतिशत कृषक आबादी का हित संरक्षित होता है, उसका विगत 1 वर्ष से अधिक समय से राजभवन में लंबित होना चिंतनीय है। प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि राजभवन की भूमिका प्रदेश के संविधानिक प्रमुख और स्वाभाविक अभिभावक के रुप में होती है, अतः यह सामुहिक जिम्मेदारी है कि गरिमा और मर्यादा कायम रहे। अध्ययन के नाम पर बिल को रोकने का यह पहला उदाहरण नहीं है पत्रकारिता विश्वविद्यालय के संदर्भ में भी छत्तीसगढ़ पत्रकारिता के पुरोधा और छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्न दृष्टा स्वर्गीय चंदूलाल चंद्राकर से संबंधित विधेयक भी राजभवन में लंबे समय से लंबित है। राजभवन के संवैधानिक अधिकारों का सदुपयोग प्रदेश की जनता खासकर बहुसंख्यक आबादी “किसानों“ के हितों के संरक्षण के लिए होना चाहिए, ना कि लंबित रखकर संवैधानिक मान्यता और मर्यादा को खंडित करने की।

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