कांग्रेस के ‘विकास निधि अनशन’ पर शिवसेना ने साधा निशाना, ‘सामना’ के जरिए कही ये बात
मुंबई. शिवसेना (Shivsena) के मुखपत्र सामना में कांग्रेस (Congress) पार्टी के 11 विधायको के अनशन पर बैठने की खबरों पर निशाना साधा है. सामना में लिखा है कि कांग्रेस के 11 विधायकों ने अनशन पर बैठने की ठानी है. उनका कहना है कि विकास निधि का समान वितरण नहीं हुआ और निधि वितरण में पक्षपात किया गया है. उनका ऐसा भी कहना है कि सरकार में कांग्रेस की उपेक्षा हो रही है और कांग्रेस अकेली पड़ गई है. इस संदर्भ में ये 11 लोग दिल्ली जाकर सोनिया गांधी से शिकायत करने वाले हैं. महाराष्ट्र के विरोधी दल को इन घटनाओं के कारण आनंद की लहर आ रही होगी लेकिन ये उनका भ्रम है.
महाराष्ट्र में कांग्रेस के नेता इस बारे में खुलकर कभी कुछ नहीं बोले, जबकि बालासाहेब थोरात, अशोक चव्हाण और नितिन राऊत जैसे नेता सरकार में हैं और सरकार 5 साल चलाने के लिए लगातार मेहनत कर रहे हैं. महाराष्ट्र की ‘आघाड़ी’ सरकार चले और राज्य पर लगी राजनीतिक पनौती हटे, इसके लिए तीन पार्टियों की सरकार बनी है. देश की स्थिति ठीक नहीं है. खुद राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में कई कारणों से अस्थिरता व बेचैनी है. देश में मोदी की सरकार है ही, लेकिन संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक सक्रिय विरोधी दल की भी उतनी ही आवश्यकता है. कांग्रेस को अब एक सशक्त विरोधी दल की भूमिका अदा करनी चाहिए, ऐसा जनमत भी तैयार हो चुका है.
लेकिन सत्ताधारियों से सवाल पूछने की बजाय कांग्रेस के विधायक खुद जिस सरकार में शामिल हैं, उसी के विरोध में अनशन पर बैठ रहे हैं. ये लोकतंत्र आदि है, यह स्वीकार है, लेकिन इसके कारण जिसने ये सरकार बनाने की अनुमति दी, उन सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर भी यह एक प्रकार का अविश्वास व्यक्त करने जैसा होगा. मामला विकास निधि के समान वितरण का हो या कोई अन्य मामला हो, राजनीतिक शिष्टाचार यह है कि विधायकों को अपनी बात अपने नेता के समक्ष रखनी चाहिए. श्री बालासाहेब थोरात, अशोक चव्हाण और नितिन राऊत जैसे पार्टी के और सरकार के अनुभवी और समझदार नेता हैं. दूसरी तरफ अजीत पवार और जयंत पाटील जैसे राष्ट्रवादी के मंझे हुए नेता हैं.
कांग्रेस का कहना है कि सरकार में राष्ट्रवादी को ज्यादा महत्व मिलता है इसलिए राष्ट्रवादी ने विकास निधि ज्यादा ली है. इस पर हम क्या बोलेंगे? वित्त मंत्री अजीत पवार ही इस आरोप का उत्तर दे सकते हैं. हर पार्टी का मंत्री अपने-अपने कार्यकर्ताओं को महत्व देता ही है. लेकिन विधायकों की बात करें तो वे जनप्रतिनिधि होते हैं और उनके मामले में भेदभाव नहीं होना चाहिए। कांग्रेस के महाराष्ट्र के विधायकों को विकास निधि चाहिए. निर्णय सरकार को लेना है. विधायक अनशन पर बैठने वाले होंगे तो यह कांग्रेस का मामला है. विरोधियों को बैठे-बिठाए मुद्दा मिलेगा और कांग्रेस नेतृत्व के समक्ष कठिनाई बढ़ेगी, सो अलग. हालांकि, राजनीतिक पेंच छुड़ाने में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे सक्षम तो हैं ही.