May 7, 2024

समापन : मातृभाषा में चिंतन से सभ्‍यता को ठोस आधार प्राप्‍त होगा – प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल

वर्धा. महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल ने कहा कि विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों में दार्शनिक क्षमता का विकास एवं समीक्षात्‍मक विचार और रचनात्‍मक द्दष्‍टि‍ के साथ दर्शन को आगे बढ़ाना समय की आवश्‍यकता है। विश्‍वविद्यालय में अखिल भारतीय दर्शन परिषद के 65 वें अधिवेशन के संपूर्ति सत्र की अध्‍यक्षता करते हुए प्रो. शुक्‍ल संबोधित कर रहे थे।

अखिल भारतीय दर्शन परिषद् एवं महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के दर्शन एवं संस्‍कृति विभाग के संयुक्‍त तत्‍वावधान में अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के पाँच दिवसीय अधिवेशन का समापन शनिवार 21 अगस्‍त को किया गया। प्रो. शुक्‍ल ने कहा कि महात्‍मा गांधी और आचार्य विनोबा भावे की तत्‍वभूमि पर आयोजित यह अधिवेशन कोरोना की त्रासदी के समय हो रहा है। उन्‍होंने गांधी और विनोबा के सर्वोदय, स्‍वराज और स्‍वातंत्र्य के चिंतन का उल्‍लेख करते हुए कहा कि सर्वोदय की चिंतन परंपरा के केंद्रीय विषय पर आयोजित यह अधिवेशन दार्शनिक चिंतन को पाथेय देगा। प्रो. शुक्‍ल ने राष्‍ट्रीय शिक्षा‍ नीति का जिक्र करते हुए कहा कि इस शिक्षा नीति में दार्शनिक पद्धति‍ को विशेष महत्‍व दिया गया है तथा तार्किक और रचनात्‍मक सोच विकसित कर समस्‍या का समाधान इस नीति के केंद्र में है। भारत की भाषा में चिंतन से ही सभ्‍यता को ठोस आधार प्राप्‍त होगा। हमें मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने की दिशा में राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति बल प्रदान करती है। प्रो. शुक्‍ल ने अपने उद्बोधन में सर्वोदय की अवधारणा और दार्शनिक क्षमता के विकास में भारतीय दर्शन परिषद् की भूमिका को भी व्‍याख्‍यायित किया।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् के पूर्व अध्‍यक्ष प्रो. एस. आर. भट्ट ने अपने उद्बोधन में कहा कि सर्व के उदय से ही व्‍यक्ति, समाज, राष्‍ट्र तथा समस्‍त सृष्टि का उदय होगा। उन्‍होंने सर्वोदय को स्‍थानीय और वैश्विक रूप में व्याख्‍यायित करते हुए बताया कि भारतीय ऋषि-मुनियों के दिखाए रास्‍ते से ही सर्वोदय की कल्‍पना साकार की जा सकती है। प्रो.भट्ट ने मानव और प्राकृतिक संसाधन के साथ मन, बुद्धि और आत्‍मा के उचित उद्घाटन पर बल दिया। उन्‍होंने कहा कि भौतिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्‍कृतिक विकास से सर्वोदय संभव हो सकता है। भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् के अध्‍यक्ष प्रो. रमेशचंद्र सिन्‍हा ने कहा कि मानव समाज का उदय और उत्‍थान ही संपूर्ण विकास है। उन्‍होंने महात्‍मा गांधी के सत्‍याग्रही सिद्धांत का उदाहरण देते हुए बताया कि सर्वोदय के साथ अध्‍यात्‍मि‍कता जुड़ी हुई है।

सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्‍ययन विश्‍वविद्यालय की कुलपति प्रो. नीरजा ए. गुप्‍ता ने सर्वोदयी विचार को समाज में ले जाने के लिए महात्‍मा गांधी तथा नरसी मेहता के जीवन आदर्शो के अनुसरण पर बल दिया। उन्‍होंने कहा कि कर्म, ज्ञान और भक्ति योग से हम अनासक्ति, निष्‍काम कर्म और स्थिर प्रज्ञा की अवस्‍था तक जा सकते हैं। भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् के सदस्‍य सचिव प्रो. सच्चिदानंद मिश्र ने कहा कि सर्वोदय को भारतीय परंपरा में देखने की आवश्‍यकता है। भारतीय सभ्‍यता सर्वे भंवतु सुखिन: की व्‍यापक दृष्टि से सबके कल्‍याण की कामना करती है। सबका समग्र विकास और सबके प्रति समान भाव ही सर्वोदय है। उन्‍होंने 21 वीं शताब्‍दी में पर्यावरणीय संकट का उल्‍लेख करते हुए क‍हा कि हमें मनुष्‍य के साथ पशु के कल्‍याण पर भी ध्‍यान देना होगा। अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्‍यक्ष प्रो. जटाशंकर ने अपने उद्बोधन में कहा कि सर्वोदय की अवधारणा भौतिक, नैतिक और अध्‍यात्मिक विकास से जुडी हुई है और यह संपूर्ण विश्‍व के कल्‍याण की बात करती है। सृष्‍टि का सर्वांगीण उदय सर्वोदय के सिद्धांत के केंद्र में है।

इस अधिवेशन के प्रधान सभापति‍ प्रो. डी .आर. भंडारी ने महात्‍मा गांधी के एकादश व्रत का संदर्भ देते हुए कहा कि अहिंसक समाज ही सर्वोदयी हो सकता है। गांधी जी के ग्राम स्‍वावलंबन और सत्‍ता का विकेंद्रीकरण ही सर्वोदयी समाज के स्‍थापना के विचार को दृढ़ करता है। परिषद् के महामंत्री प्रो. ज्‍योति‍स्‍वरुप दुबे ने अधिवेशन का प्रतिवेदन प्रस्‍तुत किया। उन्‍होंने बताया कि अधिवेशन के दौरान व्‍याख्‍यानमालाओं में 212 शोध पत्रों का वाचन किया गया। इस दौरान उन्‍होंने परिषद् द्वारा इस वर्ष दिए जाने वाले पुरस्‍कारों की घोषणा भी की।

इस अवसर पर विश्‍वविद्यालय के जनसंचार विभाग की ओर से अधिवेशन पर केंद्रित ‘मीडिया समय’ विशेषांक का ऑनलाईन लोकार्पण किया गया। सम्‍पूर्ति सत्र में स्‍वागत वक्‍तव्‍य संस्‍कृति विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. नृपेंद्र प्रसाद मोदी ने दिया। कार्यक्रम का संचालन दर्शन एवं संस्‍कृति विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. सूर्यप्रकाश पाण्‍डेय ने किया तथा दर्शन एवं संस्‍कृति विभाग के अध्‍यक्ष एवं अधिवेशन के स्‍थानीय सचिव डॉ. जयंत उपाध्‍याय ने धन्‍यवाद ज्ञापित किया। डॉ. जगदीश नारायण तिवारी और डॉ. वागीश राज शुक्‍ल ने मंगलाचरण एवं गणपति वंदना प्रस्‍तुत  की। विश्‍वविद्यालय के यूटयूब, फेसबुक और ट्विटर पर कार्यक्रम का सीधा प्रसारण किया गया।

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